1984 के बाद प्रणव दा फिर सेंटर स्टेज पर

Publsihed: 23.Jan.2009, 20:51

पीएम की हालत क्या खराब हुई। अटकलों का बाजार गर्म हो गया। राजनीतिक समीक्षकों की बन आई। ये होगा, तो क्या होगा। वो होगा, तो क्या होगा। मुंह से कोई नहीं बोल रहा। पर आशंकाएं सबकी एक सी। ज्योतिषियों की भी बन आई। तरह-तरह की भविष्यवाणियां। भविष्यवाणियां क्या, अटकलें कहिए। अपन इसे क्या कहें, क्या यह संयोग। बुधवार को एक ज्योतिषी अपने कैबिन में घुसा। शिगूफा छोड़ गया था- 'पीएम की हेल्थ गड़बड़ होगी। अप्रेल तक कुछ भी हो सकता है।' वह शिगूफा तो अच्छी-खासी भविष्यवाणी निकली। बुधवार को तो सिर्फ मनमोहन की फैमिली को ही पता होगा। गुरुवार की एंजियोग्राफी बुधवार को तो तय हो ही गई होगी। अपन एंजियोग्राफी के भुगतभोगी। यों एक दिन पहले तय करना भी जरूरी नहीं। अब ज्योतिषी महाशय का कहा सही निकला। सो अगली बात भी बता दें। कहा है- 'अप्रेल में चुनाव हुए। तो आडवाणी का कोई चांस नहीं। मई में हुए तो कुछ-कुछ चांस।' पर चुनाव होंगे अप्रेल-मई में। यानी चित्त भी मेरी पट भी। लगते हाथों तीसरी बात भी बता दें। कह गए थे- 'लोकसभा दो ही साल चलेगी।'

वैसे लंगड़ी लोकसभा का कोई पता नहीं होता। चले तो चले, नहीं चले तो नहीं चले। पर मनमोहन सिंह के दिल की हालत इतनी बुरी होगी। यह खुद मनमोहन सिंह ने नहीं सोचा होगा। सोनिया गांधी का सोचना तो दूर की बात। सरकार को अपने पीएम के दिल की भनक नहीं थी। वरना गुरुवार को ही संसद सत्र का ऐलान न करती। सोनिया को भी ऐसी भनक होती। तो गुरुवार को प्रणव दा को बंगाल कांग्रेस का अध्यक्ष न बनाती। बंगाल की बात चली। तो बताते जाएं- प्रियरंजन दासमुंशी ने भी दिल के मामले में लापरवाही की। वक्त पर बाईपास करवा लेते। तो यह हालत न होती। मनमोहन ने दासमुंशी का सूचना प्रसारण मंत्रालय संभाल ही लिया था। अब सोनिया ने बंगाल कांग्रेस के अध्यक्ष की जिम्मेदारी भी प्रणव दा को दे दी। बंगाल कांग्रेस की जिम्मेदारी लेकर प्रणव दा सोनिया से मिले। तो उनने पीएम की जिम्मेदारी पर बात की। हां, इस बार प्रणव दा ने कोई जल्दबाजी नहीं दिखाई। ताकि सनद रहे, सो बता दें। इंदिरा गांधी की हत्या के वक्त भी प्रणव दा नंबर दो थे। बंगाल के किसी कस्बे में थे। हेलीकाप्टर से कोलकाता पहुंचे। वहां से दिल्ली फोन करके कहा- 'नंबर दो के नाते मुझे जिम्मेदारी लेनी पड़ेगी।' यह बात कांग्रेस में आग की तरह फैल गई। ज्ञानी जैल सिंह ने कुछ कांग्रेसियों से सलाह की। राजीव गांधी को प्रधानमंत्री पद की शपथ दिला दी। कांग्रेस संसदीय दल की मीटिंग भी नहीं हुई थी। राजीव गांधी मंत्री भी नहीं थे। उस समय के नंबर दो देखते रह गए थे। तब खुन्नास में प्रणव दा ने कांग्रेस छोड़ दी थी। इस बार फिर प्रणव दा नंबर दो। मनमोहन के दिल की बीमारी से अटकलें शुरू हुई। तो वह किसी अटकलबाजी में नहीं आए। पीएम एंजियोग्राफी कराने गए। तो प्रणव दा अफगानिस्तान में थे। खबर तो नासाज थी। तीनों नाड़ियों में ब्लाकेड। अठारह साल पहले बाईपास हुई थी। छह साल पहले फिर एंजियोप्लास्टी करनी पड़ी थी। अब फिर ब्लाकेड। एम्स वालों के तो हाथ-पांव फूल गए। पीएम को घर भेजकर बंदोबस्त शुरू हुआ। पीएम अस्पताल से लौटे। तो प्रणव दा अफगानिस्तान से लौटे। हालचाल पूछने सात रेसकोर्स गए। शुक्रवार को मनमोहन की हालत बिगड़ गई। सोचा नहीं था, तलवार की धार पर जी रहे थे। रमाकांत पांडा की टीम आज बाईपास करेगी। रमाकांत मुंबई के एशियन हार्ट इंस्टीटयूट के डाक्टर। अब तक पांच सौ ऑपरेशन कर चुके। सबसे ज्यादा इनकम टैक्स देने वालों में। पीएम अस्पताल जाने वाले थे। तो घर में वाहे-गुरु के सामने अरदास हुई। सोनिया हाल-चाल जानने को मौजूद थी। मनमोहन स्वस्थ होकर लौटें। यह कामना आडवाणी ने भी की। उनने प्रणव दा से पीएम का हालचाल भी पूछा। मनमोहन एम्स गए, तो प्रणव दा सीधे दस जनपथ गए। सोनिया से पूछा- 'आदेश दीजिए।' बाहर अटकलें लग रही थी- 'कुछ ऐसा-वैसा हुआ। तो प्रणव नहीं, राहुल।' प्रणव दा ने बाहर निकल कहा- 'कुछ नहीं हुआ। ऐसा होता रहता है। ऑपरेशन है, हो जाएगा। ज्यादा भीड़ मत लगाइए।' अब तक सारी बागडोर प्रणव दा के हाथ। वह कार्यकारी प्रधानमंत्री नहीं होंगे। पर आफिशियल काम वही देखेंगे।

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