मिड टर्म से पहले राहुल का टर्मिनल

Publsihed: 11.Oct.2007, 13:47

अपन ने सितंबर में लिखा- 'यूपीए सरकार चार महीनों की मेहमान।' मंगलवार को यूपीए-लेफ्ट में युध्द विराम की नौटंकी ही हुई। युध्द विराम नहीं। यों तो लेफ्टिए धर्म-कर्म के विरोधी। पर दुर्गापूजा पर वोटरों को लुभाने में विघ्न न पड़े। सो दशहरे तक की मोहलत दी। अपने मुख्तार अब्बास नकवी की नजर में तो यह युध्द विराम में कमर्शियल ब्रेक। जो दोनों ने अपना कमर्शियल फायदा देखकर लगाई। तब तक कांग्रेसी हुकमरान अल बरदई से बतिया लेंगे।

यों अल बरदई ने कहा- 'भारत लिखकर देगा। तभी रिएक्टरों की निगरानी पर बात।' पीछे-पीछे अमेरिकी प्रवक्ता सीन मैककार्मेक का बयान आया- 'अमेरिका करार की अड़चनों में मदद को तैयार। पर पहल भारत को करनी होगी। वाजिब समय भी भारत को चुनना होगा।' सो यूपीए सरकार की खस्ता हालत देख अमेरिका नरम हुआ। अब वक्त की बंदिश नहीं। यों बात अमेरिका की चली। तो बताते जाएं। अमेरिका कांग्रेस में नया अड़ंगा पेश हो गया। तीन मेंबरों ने नए प्रस्ताव में कहा- 'भारत से एटमी व्यापार पर सख्ती से नियंत्रण हो।' प्रस्ताव का मकसद परमाणु प्रसार पर निगरानी रखना। यानी बात फिर वही। एटमी ईंधन देकर अमेरिका अपन पर चौकसी रखेगा। पर सोनिया की नजर में एटमी करार विरोधी विकास के दुश्मन। पर सरकार उसी विकास विरोधी ताकत से बातचीत में मशगूल। पर सोनिया को इटली से आए समर्थन पर अपन चौंके। इटेलियन डिप्टी पीएम मासिमो बुधवार को दिल्ली में थे। बोले- 'करार सकारात्मक।' पर करार तो तब होगा। जब सोनिया-मनमोहन सरकार बचेगी। अपन को अप्रेल तक चुनाव होने में शक नहीं। भले ही गुजरात-हिमाचल के ट्रायल में कांग्रेस डूबे। कांग्रेस को डूबने का डर न होता। तो कर्नाटक के चुनाव भी साथ करा देती। पर वहां सुप्रीम कोर्ट के डर से एसेंबली भंग नहीं की। कांग्रेस का दूसरा मकसद- 'कुछ देर गवर्नर के माध्यम से रूल करना।' इस बीच मौका मिले- तो घोड़ामंडी से एमएलए खरीदना। एक पेशकश देवगौड़ा को भी होगी- 'बेटे रेवन्ना को डिप्टी सीएम बनाकर फिर गठजोड़ कर लें।' देवगौड़ा को अपने एमएलए बिकने का भी खतरा। सो वह बुधवार को दिल्ली आकर चिल्लाए। अपन बाप की इस चिल्लाहट पर हैरान। बेटा कुमारस्वामी तो केंद्र के फैसले पर खुश। पर बात गुजरात-हिमाचल की। कांग्रेस को डूबती देख लेफ्ट तो एक धक्का और देगा। यों लेफ्ट ने मंगलवार को मीटिंग में कांग्रेस को पी-पीकर कोसा। येचुरी ने कहा- 'गठबंधन के लिए बीजेपी ने अपना एजेंडा तक छोड़ा। यूनिफार्म सिविल कोड, आर्टिकल 370, अयोध्या तीनों। पर कांग्रेस अमेरिका का एजेंडा छोड़ने को तैयार नहीं।' लेफ्ट के मुंह से बीजेपी की तारीफ। जैसे रावण के मुंह से राम-राम। पर बात गुजरात-हिमाचल की। जहां इलेक्शन कमीशन ने बुधवार को चुनाव की घंटी बजा दी। यों अपन बता दें। दोनों प्रदेशों में कांग्रेस को कुछ नहीं मिलना। हिमाचल में कांग्रेस जाएगी। गुजरात में आएगी नहीं। पहले बात गुजरात की। बुधवार को बीजेपी पर पहला एटम बम गिरा। जब सुरेश मेहता ने कहा- 'मैं बीजेपी छोड़ूंगा। पार्टी में लोकतंत्र खत्म।' यह तो शुरूआत। काशीराम राणा-केशुभाई का मिसाइल भी जल्द। पर बावजूद इसके मोदी सब पर भारी। घर के भेदियों पर भी, कांग्रेस पर भी। अब बात हिमाचल की। वहां तो सचमुच चुनाव एटम बम की तरह गिरे। एसेंबली की मियाद नौ मार्च तक। पर गुजरात के साथ निपटाने का एलान हुआ। तो बीजेपी के साथ कांग्रेस भी चौंकी। अपन ने प्रेमकुमार धूमल से पूछा। तो वह सकते में दिखे। बीजेपी दिसंबर 2003 में एमपी, छत्तीसगढ़, राजस्थान जीती। तो बाग-ओ-बाग थी। इंडिया शाइनिंग का नारा देकर चुनाव में कूद गई। पर वह डूबने वाला कुआं निकला। कांग्रेस का कुआं तो गुजरात-हिमाचल में ही। राहुल का इम्तिहान तो दिसंबर में ही हो जाएगा। अप्रेल किसने देखा।

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