पाक हो या बांग्लादेश। दोनों पड़ोसी अपना सिरदर्द। पाक से आतंकियों की घुसपैठ। तो बांग्लादेश से आबादी की घुसपैठ जारी। जहां तक पाक की बात। तो वहां राजनीतिक हालात नए मोड़ ले चुके। बेनजीर के बाद नवाज शरीफ को भी कबूल करना पड़ा मुशर्रफ को। दस सितंबर को घुसने नहीं दिया गया था। पर पच्चीस नवंबर का न्योता देने खुद गए। अमेरिका के दबाव में दोनों को कबूल किया। अब अमेरिकी दबाव में वर्दी भी उतरेगी। इमरजेंसी भी हटानी पड़ेगी।
सोमवार को अपनी यूरोपीयन यूनियन की राजदूत डेनिल समाजदा से मुलाकात हुई। वह बोली- 'इमरजेंसी में चुनाव होगा। तो ईयू आब्जर्वर नहीं भेजेगा। भले ही बेनजीर-नवाज चुनाव में हिस्सा लें। इमरजेंसी में फ्री एंड फेयर चुनाव नहीं हो सकते। ' यूरोपीयन यूनियन की बात चली। तो बताते जाएं। तीस नवंबर से दिल्ली में भारत-ईयू का सालाना सम्मेलन होगा। तो बात एटमी करार की भी उठेगी। वैसे ईयू ने कोई साफ नीति नहीं बनाई। जब पूछा, तो बोली- 'पहले भारत आईएईए से बात तो कर ले।' पर अपन बात कर रहे थे बांग्लादेशी घुसपैठियों की। यों तो बांग्लादेशी घुसपैठिए कांग्रेस-लेफ्ट का वोट बैंक। पर बाकायदा वीजा लेकर आई तस्लीमा मुस्लिम वोट बैंक में अड़चन बनी। तो दोनों पल्ला झाड़ने पर आमादा। तस्लीमा की हालत देख अपन को शाहबानो याद आ गई। शाहबानो भी मुस्लिम वोट बैंक में अड़चन बनी थी। तो कांग्रेस-लेफ्ट ने कट्टरपंथियों से दबाव में कानून बदला। अब कट्टरपंथी शाहबानों की तरह तस्लीमा से खफा। तो लेफ्ट-कांग्रेस तस्लीमा से पल्ला झाड़ने की फिराक में। तस्लीमा ने मुस्लिम औरतों की हालत पर लिखा। तो कट्टरपंथियों ने बांग्लादेश छुड़ा दिया। अब अपने कट्टरपंथियों ने कोलकाता छुड़ा दिया। बजरिया राजस्थानी व्यापारी हवाई जहाज पर बिठाकर जयपुर भेज दिया। ताकि चुनाव से पहले राजस्थान में सांप्रदायिक हिंसा फैले। अपन किसान आंदोलन के वक्त ही बता चुके। लेफ्ट की निगाह अब राजस्थान पर। वैसे राजस्थान में बीजेपी का अपना घर भी ठीक नहीं। प्रदेश अध्यक्ष बदला जाए या नहीं। इस पर सोमवार की पार्लियामेंट्री बोर्ड में भी चर्चा हुई। पर अपन को लगता है- फैसला गुजरात-हिमाचल के बाद ही होगा। गुजरात की बात चली। तो बता दें। नरेंद्र मोदी ने तस्लीमा को न्योता दे। लेफ्ट-कांग्रेस दोनों के पसीने छुड़ा दिए। बीच में हिमाचल का जिक्र भी आया था। तो बता दें- कनफ्यूजन खत्म हुआ। धूमल अभी-अभी लोकसभा चुनाव जीतकर आए थे। पर बीजेपी ने उन्हें एसेंबली टिकट भी थमा दिया। पर शांताकुमार को पालमपुर से टिकट नहीं। यानि सरकार बनी, तो धूमल सीएम। पर अपन बात कर रहे थे तस्लीमा की। सोमवार को तस्लीमा राजनीतिक अखाड़ेबाजी का मुद्दा रही। झेंप मिटाने के लिए येचुरी बोले- 'बीजेपी का दोहरा चरित्र। तस्लीमा के लिए अलग, एम.एफ. हुसैन के लिए अलग। जिसे भारत नहीं आने दे रहे।' पर मल्होत्रा ने ईंट का जवाब पत्थर से दिया। बोले- 'कौन रोकता है एम.एफ. हुसैन को आने से। वह आएं, मुकदमों का सामना करें।' पर बात तस्लीमा की। कोलकाता के पुलिस कमिश्नर गौतम मोहन से लेफ्टियों ने बयान दिलाया- 'तस्लीमा अपने आप कोलकोता छोड़कर गई।' इस बयान के फौरन बाद सीताराम येचुरी दिल्ली में बोले- 'तस्लीमा ने खुद कोलकाता छोड़ा।' पर झूठ के पांव नहीं होते। गुरुदास दासगुप्त सीपीएम के झूठों से अच्छी तरह वाकिफ। सो वह गरज कर बोले- 'बांग्ला लेखिका के नाते तस्लीमा को कोलकाता में रहने का हक। बुध्ददेव सरकार को उसे फौरन बुलाना चाहिए। ' पर शाम ढलते-ढलते येचुरी के झूठ की पोल खुद तस्लीमा ने खोली। एक बांग्ला चैनल से बोली- 'कोलकाता छोड़ने का फैसला मैंने नहीं किया। मैं मजबूर थी। मजबूरी में चुप रही। मैं जल्द से जल्द कोलकाता लौटना चाहती हूं।' पर असली बात अपने दिग्गी राजा ने कही। बोले- 'नंदीग्राम से ध्यान हटाने के लिए लेफ्ट ने तस्लीमा का विवाद खड़ा किया।'
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