कांग्रेस टाडा में सजायाफ्ता को टिकट देने की फिराक में। जिसे देश की अदालत ने मुजरिम माना। छह साल कैद की सजा सुनाई। कांग्रेस उसे मुजरिम मानने को तैयार नहीं। अपन नहीं जानते कांग्रेस के इस रुख से अदालत कितनी प्रभावित होगी। यों नेताओं के मामले में अदालतों का रवैया काबिल-ए-तारीफ नहीं। फिर भी जब टाडा अदालत ने संजय दत्त को सजा सुनाई। तो अदालत ने देश की न्यायपालिका का झंडा बुलंद किया। जी हां, अपन संजय दत्त की ही बात कर रहे हैं। अमर सिंह ने संजय दत्त को ठीक उस समय दाना फेंका। जब वह अपनी नई बीवी मान्यता के शिकंजे में। दिल्ली की एचटी कांफ्रेंस याद करा दें। जब वीर सिंघवी ने संजय दत्त से पूछा। तो उनने राजनीति में आने के फैसले को टाला था। पर सामने बैठी मान्यता ने कहा- 'इन्हें राजनीति में आना चाहिए।' अमर सिंह ने इसी कमजोर कड़ी को पकड़ा। संजय दत्त को लखनऊ की टिकट दे दी। साथ ही कहा- 'संजय नहीं, तो मान्यता।' मान्यता के नाम से प्रिया दत्त भड़क गई। वैसे अपन बता दें- संजय दत्त को छह साल की सजा हुई। वह चुनाव नहीं लड़ सकते।
सुप्रीम कोर्ट स्टे दे, तभी लड़ सकेंगे। प्रिया दत्त तो छोड़िए। यह कांग्रेस को भी नहीं जंचा। सो कृपाशंकर ने संजय दत्त को टिकट का न्योता दे दिया। दिग्विजय सिंह यों भी विवाद खड़े करने में माहिर। उनने ए आर अंतुले का समर्थन कर दिया था। उन्हीं दिग्गी राजा ने कहा- 'संजय दत्त पर टाडा के तहत मुकदमा चलाना ही गलत था।' बात दिग्गी राजा की चली। तो बताते जाएं। वह शुक्रवार को बीजेपी की बुझती आग में घी डालने गए। उनने भैरों बाबा से आधे घंटे क्या गुफ्तगू की। न भैरों बाबा बताएंगे, न दिग्गी राजा। बात भैरों सिंह शेखावत की चली। तो बताते जाएं- गुरुवार को उमा भारती मिली थी। तो शुक्रवार को गोविंदाचार्य मिले। आजकल दोनों आडवाणी के विरोधी। पर भैरों बाबा साफ कर चुके। वह आडवाणी के खिलाफ नहीं। न उनके पीएम पद में रोड़ा। बात पीएम पद की चली। तो अभिषेक मनु सिंघवी की खाम ख्याली बताते जाएं। उनने कहा- 'बीजेपी में एक अनार, सौ बीमार। वाजपेयी, आडवाणी, शेखावत, मोदी। पहले बीजेपी आपस में फैसला कर ले।' सिंघवी ने तो यह भी कहा- 'मोदी ने खुद को इंडस्ट्री से प्रोजेक्ट कराया।' पहले बात वाजपेयी की। वह कितनी बार संन्यास का एलान कर चुके। आडवाणी के हक में बयान दे चुके। उस पार्लियामेंट्री बोर्ड की मीटिंग वाजपेयी की रहनुमाई में हुई थी। जिसमें आडवाणी को पीएम पद का उम्मीदवार तय किया। शेखावत खुद मना कर चुके। मोदी को लेकर कांग्रेस की तिलमिलाहट जगजाहिर। दर्द है कि छुपता नहीं। पर बात सिंघवी की चल ही पड़ी। तो उनकी नई मुसीबत बताते जाएं। राहुल गांधी का मिलिबेंड के साथ पिकनिक मनाना महंगा पड़ गया। जी हां, अपन ब्रिटिश विदेशमंत्री की ही बात कर रहे हैं। जिनकी राहुल के साथ पिकनिक का जिक्र अपन ने कल किया। पिकनिक से पहले भी मिलिबेंड ने भारत विरोधी बयान दिए। आतंकियों को भारत के सुपुर्द करने की मुखालफत की। मुंबई हमले में आईएसआई का हाथ मानने से भी इनकार। इतना क्या कम था। जो राहुल से पिकनिक के बाद बोले- 'आतंकवाद की जड़ में कश्मीर समस्या।' सो यह सिर्फ प्रणव दा की कूटनीतिक विफलता नहीं। राहुल बाबा की भी कूटनीतिक नादानी। सो मुसीबत में फंसे सिंघवी बोले- 'मिलिबेंड की बयानबाजी अफसोसनाक। उसे राहुल के साथ दौरे से न जोड़िए।' मिलिबेंड ने तेरह जनवरी को भारत विरोधी स्टैंड लिया। चौदह की रात राहुल के साथ बिताई। पंद्रह को कश्मीर वाला बयान। ताकि सनद रहे सो याद करा दें। मुंबई पर हमले के बाद जरदारी का भी यही तर्क था। तब अपन ने मुंह तोड़ जवाब दिया था। आतंकवाद का किसी मुद्दे की आड़ में समर्थन बर्दाश्त नहीं होगा।
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