कहावत है ना- गांव बसा नहीं, भिखारी पहले आ गए। बीजेपी में सत्ता आने से पहले पीएम के दावेदारों की हालत वही। लालकृष्ण आडवाणी जिन्ना विवाद में फंसे। तो बहुतेरे खुश हुए थे। मुरली मनोहर जोशी से लेकर यशवंत सिन्हा तक। मदन लाल खुराना से लेकर उमा भारती तक। खुराना-भारती का नाम अपन ने जानबूझ कर लिया। खुराना-भारती जैसे लोग भले बीजेपी में न रहें। रहेंगे बीजेपी वाले ही। जैसे अपने भैरों सिंह शेखावत। बीजेपी में नहीं। पर बीजेपी की राजनीति के स्तंभ। सो शेखावत का एक बयान बीजेपी आलाकमान की नींद उड़ा गया। शेखावत ने अब कोई लुकाव-छुपाव नहीं रखा। जैसा अपन ने आठ जनवरी को लिखा था। असली झगड़ा वसुंधरा का। आडवाणी को लेकर कोई झगड़ा नहीं। अब भैरों बाबा ने साफ-साफ कह दिया- 'मैं पीएम पद का दावेदार नहीं। पर वसुंधरा की जगह जेल में।'
शेखावत को वसुंधरा पर गुस्सा इस हद तक होगा। अपन ने सोचा तक नहीं था। बात वसुंधरा की चली। तो बताते जाएं- किरोड़ी लाल मीणा अपनी मंत्री बीवी के साथ दिल्ली आए। तो सोनिया से मिलकर बोले- 'गहलोत को वसुंधरा के खिलाफ कार्रवाई को कहो।' अपन याद दिला दें। पत्नी गोलमा को शपथ दिलाकर शेखावत के घर ले गए थे किरोड़ी। पर लाख टके का सवाल। क्या सभी मिलकर भी वसुंधरा का कुछ बिगाड़ पाएंगे। वसुंधरा इतनी कमजोर भी नहीं। बात सिर्फ सिर पर आडवाणी का हाथ होने की नहीं। पांच साल में अपना वोट बैंक भी बनाया राजस्थान में। तभी तो 76 सीटें जीती बीजेपी। पर बात शेखावत की। निशाने पर वसुंधरा के सरपरस्त आडवाणी ही। तभी तो लोकसभा चुनाव लड़ने का इशारा चुनौती बना। शेखावत भले न कहें। पर जब सारी दुनिया समझ रही है। तो आडवाणी कैंप भी समझता ही होगा। पर कल्याण सिंह की दावेदारी ने अपन को चौंकाया। कल्याण की जब वाजपेयी से ठनी थी। तो आडवाणी ने आखिर तक कल्याण का साथ दिया। अब वही कल्याण सिंह भी आडवाणी के रास्ते का कांटा। उनने कहा- 'आतंकवाद के खिलाफ इंदिरा, पटेल या कल्याण चाहिए।' शेखावत की खुन्नस की वजह वसुंधरा। तो कल्याण की खुन्नस की वजह अरुण जेटली। जो अजित सिंह को गठबंधन में बुलंदशहर देने को तैयार। जेटली ठहरे आडवाणी के खास। तो कल्याण का निशाना भी आडवाणी पर। यह तो रही आडवाणी के खिलाफ शेखावत-कल्याण की तीरअंदाजी। पर चौथा नाम सबसे ज्यादा गंभीर। जिसे सुनकर तो कांग्रेस की नींद उड़ गई। कांग्रेस के प्रवक्ता मनीष तिवारी कपड़े फाड़ने लगे। यह नाम है नरेंद्र मोदी। मोदी के नाम की गंभीरता समझती है कांग्रेस। मोदी को पीएम बनाने की बात बीजेपी के किसी बागी ने नहीं उठाई। अलबत्ता इस बार मांग उठी इंडस्ट्री लॉबी से। अपन ने 13 जनवरी को लिखा ही था- 'अहमदाबाद बना नरेंद्रपुर।' बाइव्रेंट गुजरात ने सारे रिकार्ड तोड़ दिए। दो दिन में दस लाख करोड़ के एमओयू हुए। दस लाख युवाओं को रोजगार मिलेगा। तीन दिन में 'नैनो' के लिए जमीन मिलने से रतन टाटा तो खुश थे ही। बुधवार को अनिल अंबानी और सुनील मित्तल भी बाग-ओ-बाग हो गए। तभी तो दोनों ने कहा- 'मोदी को सीएम नहीं, पीएम होना चाहिए। तब देश का विकास होगा।' अपन जानते हैं- आडवाणी कैंप में कोई खलबली नहीं। यह गुब्बार कई बार उठ कर शांत हो चुका। मोदी खुद आडवाणी से पहले अपनी दावेदारी खारिज कर चुके। आखिर आडवाणी आड़े वक्त में भी मोदी के सरपरस्त बने रहे। अपन 15 सितंबर का लिखा ही याद करा दें। जब बेंगलुरु वर्किंग कमेटी में मोदी सब पर भारी पड़े। तभी अपन ने लिखा था- 'बेंगलुरु का संदेश- आडवाणी पीएम हों। तो मोदी देश के गृहमंत्री हों।' सो मोदी के नाम पर मिर्ची कांग्रेस को लगी। मनीष तिवारी बोले- 'इंडस्ट्री ने हिटलर की पीठ भी ऐसे ही थपथपाई थी। फिर जर्मनी और दुनिया का हश्र सबने देखा।'
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