पहले पाकिस्तान की अदालतें। अब अपनी। दोनों आतंकियों के निशाने पर। पर आप सोचेंगे। पाक में तो अदालतों का बाजा मुशर्रफ ने बजाया। तो अपन को मुशर्रफ आतंकियों से कम नहीं लगते। यह संयोग ही समझिए। बुधवार को एक अमेरिकी अखबार ने मुशर्रफ को सबसे बड़ा आतंकी लिखा। भले ही यह जार्ज बुश को न जचे। वैसे भी अपन कारगिल को नही भूले। जहां मुशर्रफ की आतंकियों से सांठगांठ थी। पर फिलहाल बात शुक्रवार को राम-लक्ष्मण-शिव की नगरियों पर आतंकी कहर की।
राम की जन्मभूमि अयोध्या की बगल में है फैजाबाद। कहते हैं लखनऊ को लक्ष्मण ने बसाया। भले ही सेक्युलर न माने। वाराणसी तो शिव की नगरी है ही। तीनों जगह शुक्रवार को बम फटे। वह भी अदालतों में। वकील निशाने पर रहे। पर बात मुशर्रफ-आतंकी गठजोड़ की। जो कारगिल हारे। पर हिम्मत नहीं। सरहद को छोड़ अपने मंदिर-मस्जिद निशाने पर रख लिए। पहले मालेगांव-हैदराबाद की मस्जिदें निशाने पर। अब हिंदुओं से जुड़े लखनऊ, वाराणसी, फैजाबाद। पिछले साल सात मार्च को शिव की नगरी वाराणसी के संकट मोचक मंदिर में बम फूटे। कहते हैं संकट मोचक मंदिर संत तुलसीदास ने बनवाया। लखनऊ में तो छह साल पहले चार सितम्बर को बम फूटे। फैजाबाद में उससे पहले 14 अगस्त 2000 में बम फूटे। यों मायावती ने विस्फोटों के बाद कहा- 'केंद्र ने कोई खुफिया जानकारी नहीं दी।' पर अपन को नहीं भूला। अजमेर की दरगाह के पास जब पिछले महीने ही बम फूटे। तो यूपी को खासकर होशियार किया था। वैसे लोकसभा में जब आडवाणी ने सवाल उठाया। तो शिवराज पाटिल से कुछ जवाब नहीं बना। यों तो अपने यहां की हर आतंकी वारदात की जड़े सीमापार। पर शुक्रवार की वारदात से बंगाल का गहरा रिश्ता। बंगाल में कट्टरपंथी सिर उठाने लगे। यों अपन इसकी जड़ में जाएंगे। तो सेक्युलर सीपीएम जिम्मेदार दिखेगी। जिसने अपने कॉडर से नंदीग्राम में बेगुनाह मुसलमान मरवाए। पर बुधवार को जब कोलकाता में फौज बुलानी पड़ी। तो उसके पीछे कांग्रेस का हाथ। आपको याद होगा 22 नवम्बर को अपन ने जब लिखा- 'नंदीग्राम पर कितना झूठ बोलेगी सीपीएम।' तो उसमें अपन ने एक ईदरिश अली का जिक्र किया। जिसने उस प्रदर्शन की रहनुमाई की। जो नंदीग्राम के साथ तस्लीमा नसरीन विरोधी बन गया। ताकि सनद रहे। सो बता दें ईदरिश अली कोलकाता का बड़ा कांग्रेसी नेता। पोल खुली। तो शुक्रवार को कांग्रेस ने इदरिश पर कार्रवाई की बात कही। वैसे जैसे बुध्ददेव कठमुल्लाओं के सामने झुक कर सेक्युलरिज्म भूल गए। तस्लीमा को हवाई जहाज पर बिठाकर जयपुर भेज दिया। वैसे ही कांग्रेसियों के सेक्युलरिज्म की भी पोल खुल गई। शुक्रवार को गुरुदास गुप्त ने जब लोकसभा में मामला उठाया। तो प्रणव दा चुप्पी साधकर बैठे रहे। उकसाने पर भी एक शब्द नहीं बोले। शाम को सीसीएस ने तस्लीमा पर खासकर चर्चा की। अब अहम सवाल यह- क्या कठमुल्लाओं से डर कर यूपीए सरकार तस्लीमा का वीजा रद्द करेगी? कठमुल्लाओं की यही मांग। पर कांग्रेस और सीपीएम की ही पोल नहीं खुली। बीजेपी की भी पोल खुली। जो कहने को तो कहती है- 'तस्लीमा को भारतीय नागरिकता मिले।' पर तस्लीमा बीजेपी रूल स्टेट में पहुंची। तो बीजेपी सरकार के हाथ-पांव फूल गए। कुछ घंटों में ही दिल्ली पैक कर दिया। अपन तस्लीमा के बारे मे बताते जाएं। बांग्लादेश की लेखिका तस्लीमा ने एक दशक पहले 'लज्जा' लिखा। तो कठमुल्लाओं ने मुस्लिम विरोधी कहकर फतवा जारी किया। बेचारी तस्लीमा तब से कोलकाता में। सीपीएम पर बड़ा नाज था। पर खोखले निकले। सीपीआई-एफबी-आरएसपी भी इस खोखलेपन से रंजोगम। तीनों बोले- 'नंदीग्राम के बाद तस्लीमा प्रकरण सीपीएम के मुंह पर धब्बा।' पर बात तस्लीमा की नहीं। बात यूपी में हुए बम धमाकों की। जिसने यूपीए सरकार की लुंजपुंज नीति की पोल खोली। लुंजपुंज सरकार की लुंजपुंज शैली देखिए। आडवाणी ने घेरा। तो पाटिल बोले- 'पूरी जानकारी अगले हफ्ते दूंगा।' ऐसा बेखबर होममिनिस्टिर तो पहले कभी नहीं रहा।
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