गुजरात का सीएम कोई कांग्रेसी होता। तो वाइब्रेंट गुजरात का उद्धाटन सोनिया या राहुल करते। अपन मनमोहन की अनदेखी नहीं कर रहे। पर होता वही। नरेन्द्र मोदी ने खुद उद्धाटन किया। तो कोई लालकृष्ण आडवाणी की अनदेखी नहीं की। वह विकास का राजनीतिकरण नहीं चाहते। सो चौथा वाइब्रेंट गुजरात इनवेस्टर मेला। सोमवार को नरेन्द्र मोदी के हाथों ही शुरू हुआ। मोदी को सीएम बने सवा सात साल हो गए। दो बार एसेंबली चुनाव जीते। सिर्फ कांग्रेस-यूपीए-लेफ्ट नहीं। पूरी दुनिया के एनजीओ भी लगे थे। फिर भी मोदी जीते। कांग्रेस-यूपीए-लेफ्ट ने भारत में कितनी बदनामी की गुजरात की। अमेरिका से वीजा तक रुकवाया मोदी का। पर अकेले मोदी ने दस का दम दिखा दिया। सवा सात साल पहले मोदी सीएम बने। तो मुश्किलों के दौर में था गुजरात। सूखे और भूकंप से उबरा भी नहीं था। जब मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली। सत्ता नहीं कांटों का ताज था।
भ्रष्टाचार के आरोप भी झेल रही थी केशुभाई सरकार। बात भ्रष्टाचार की चली। तो बताते जाएं- अबके राजस्थान में भ्रष्टाचार के कितने आरोप लगे। कांग्रेस ने बाईस हजार करोड़ का भ्रष्टाचार बताया। लंबे-चौड़े इश्तिहार छपवाए। अब जब वही इश्तिहार अपने भैरों बाबा ने गहलोत को याद कराए। तो अपन ने राजनीति का नया करिश्मा देखा। जैसे आरोप भैरों बाबा ने लगाए हों। कांग्रेस के आरोप कांग्रेस को याद दिलाए। वसुंधरा खुद आरोप याद कराकर जांच की मांग करती। तो इतना बवंडर न होता। कटघरे में कौन- वसुंधरा या गहलोत। अब गहलोत का काम अपने आरोपों को साबित करने का। कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव में रक्षा सौदों के कितने आरोप लगाए। अपने जार्ज के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज की। फिर क्या हुआ। पांच साल बीतने को। एक भी आरोप साबित नहीं हुआ। सो भैरों बाबा ने यही तो कहा- 'अपने आरोप साबित करो।' बात शेखावत की चल ही पड़ी। तो बताते जाएं- मराठा शरद पवार-ठाकुर अमर सिंह धोखा न देते। थर्ड फ्रंट आगे आकर पीछे न हटता। तो वह देश के राष्ट्रपति होते। वैसे भैरों बाबा की बात चली। तो बताते जाएं- वह भी मोदी के प्रशंसक। दिसंबर 2008 में मोदी दूसरी बार जीते। तो शपथ ग्रहण समारोह में मौजूद थे। शेखावत बीजेपी में भले शामिल नहीं हुए। पर कुर्सी से हटकर बीजेपी के हर जश्न में दिखे। येदुरप्पा के शपथ ग्रहण में भी पहुंचे। बात येदुरप्पा की चली। तो बताते जाएं- विकास में मोदी को टक्कर देने का माद्दा किसी कांग्रेसी सीएम में तो नहीं। किसी में माद्दा है, तो वह येदुरप्पा में। अपन बात कर रहे थे मोदी के वाइब्रेंट गुजरात की। जिसमें तीन लाख करोड़ इनवेस्टमेंट के एमओयू होंगे। एल एंड टी 25000 करोड़ लगाएगी। यूनिवर्सल सेक्सेस एक लाख करोड़ लगाएगी। स्टेट बैंक तीस हजार करोड़ इनवेस्ट करेगा। ओएनजीसी भी तीस हजार करोड़ लगाएगी। बात ओएनजीसी की चली। तो याद करा दें। एनडीए राज में सुबीर राहा ओएनजीसी के चेयरमैन थे। राहा के वक्त ओएनजीसी ने रिकार्ड तरक्की की। पर यूपीए राज आते ही पुराने दिन लौट आए। पेट्रोलियम मंत्रालय के मंत्री-अफसर पीएसयू को लूटने लगे। राहा ने पीएसयू पर सरकारी बोझ की शिकायत की। तो मणिशंकर अय्यर बिफर गए थे। तब वही पेट्रोलियम मंत्री थे। लोकसभा स्पीकर ने भी कहा था- 'पीएसयू का बेजा इस्तेमाल बंद किया जाए।' पर मंत्री बिफर गए, तो बिफर गए। उनने राहा की छुट्टी कराकर दम लिया। दो साल पहले ही हटा दिया। अब खुलासा हुआ है- अफसरों को कारें-मोबाइल मुहैया करानी पड़ती हैं ओएनजीसी को। मोटे-मोटे गिफ्ट, होटलों के बिल भी देने पड़ते हैं। पर बात हो रही थी मोदी के नए गुजरात की। जिनने संसाधनों पर पहला हक अल्पसंख्यकों का नहीं बताया। पर विकास में किसी को नजरअंदाज भी नहीं किया। इसीलिए तो हर इनवेस्टर अहमदाबाद पहुंच गया। वैसे नाम में कुछ नहीं रखा। पर मोदी ने अहमदाबाद को नरेन्द्रपुर बना दिया।
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