अपने भैरों बाबा ने बीजेपी ज्वाईन नहीं की। कई नेता मनुहार कर चुके। पर राजनीति शुरू हो चुकी। मेरठ, हिसार, आगरा में रैलियां हो चुकी। अब पंद्रह दिसम्बर को भिवानी में। अब के धनतेरस पर जन्मदिन भी कुछ ज्यादा ढोल-नगाड़ों से मना। जन्मदिन का एक रोचक किस्सा बताएं। एक भक्त माला पहनाकर खुशी के मारे रोने लगा। बोला- 'पांच साल से माला लेकर आ रहा था।
पर सुरक्षाकर्मी अंदर ही घुसने नहीं दे रहे थे।' शेखावत राष्ट्रपति बन जाते। तो उसे अबके भी माला पहनाने का मौका नहीं मिलता। पर उसे माला पहनाने से ही खुशी। शेखावत पांच साल तक राजनीतिक संन्यास में रहे। भले ही अब बीजेपी ज्वाईन नहीं की। पर बीजेपी शेखावत के द्वार पर आने लगी। संघ के प्रचारकों की विदाई का मामला ही लें। संघ के नेता मिलने आए। तो उनने हमेशा उनकी विदाई की सलाह दी। जो अब परवान चढ़ती दिखाई देने लगी। बस जल्दी ही शुरू होगी। या तो वे संघ लौट जाएंगे। या बीजेपी के होकर रह जाएंगे। शादी करके घर बसाएं, राजनीति करें। ताकि किसी के कुकर्म का ठीकरा संघ के सिर न फूटे। अब तक कईयों के कुकर्म संघ के सिर फूट चुके। कॉडर बेस पार्टियों के कुकर्म भी अब सामने आने लगे। सीपीएम कॉडर का कुकर्म अपन ने नंदीग्राम में देखा ही। बीजेपी में भी लगभग ऐसी ही हालत। पर बात हो रही थी भैरों बाबा की। अब उमा भारती को ही लो। बीजेपी में वापसी की तैयारियां कोई यूं ही शुरू नहीं हुई। अपने भैरों बाबा की भी अहम भूमिका। भैरों बाबा को बीजेपी के भ्रष्ट नेताओं से कोफ्त। सो उनकी कोशिश ईमानदारों को लौटाकर लाने की। ताकि भ्रष्टाचारियों पर ईमानदार हावी हों। तब जाकर पार्टी शेखावत के ज्वाईन करने लायक बनेगी। सो पिछले दिनों उमा की शेखावत से दो मुलाकातें हुईं। जिनका नतीजा अब जल्दी ही निकलेगा। भले ही मुरली मनोहर जोशी को खबर न हो। पर गुरुवार को वीएचपी के बदले तेवरों से अंदाज लगाइए। वीएचपी की मीटिंग में मोदी को समर्थन तय हो गया। फैसले का ऐलान करते हुए गिरिराज किशोर ने खासकर बताया- 'मीटिंग में विष्णुहरि डालमिया, अशोक सिंहल के अलावा तोगड़िया भी थे।' तोगड़िया ने यह फैसला कैसे कबूल किया होगा। अपने पल्ले नहीं पड़ा। तोगड़िया ने मोदी के खिलाफ जितना जहर उगला। उतना तो लेफ्टियों और कांग्रेसियों ने भी नहीं उगला। लेफ्टियों-कांग्रेसियों की बात चली। तो बताते जाएं। गुरुवार को लोकसभा में तब कांग्रेस अजीब मुश्किल में फंस गई। जब लालूवादियों ने मोदी को गिरफ्तार करने की मांग कर दी। मुद्दा बनाया- 'आजतक में दिखाया गया आपरेशन कलंक।' आपरेशन कलंक में कई तोगड़ियावादियों ने डींग हांकी थी- 'मोदी ने हमें खुल खेलने के तीन दिन दिए थे।' लालूवादी देवेंद्र यादव ने मामला उठाया। मुलायमवादी रामजीलाल सुमन ने समर्थन किया। नंदीग्राम में फंसे बुध्ददेववादियों ने भी हल्ला किया। पर कांग्रेसियों के चेहरों पर फिक्र की रेखाएं दिखीं। चुनाव के वक्त सांप्रदायिक धु्रवीकरण मुनाफे का सौदा नहीं। पर अपन बात कर रहे थे उमा की। संघ परिवार से हरी झंडी हो चुकी। वाजपेयी तो पहले ही चाहते थे। आडवाणी भी खिलाफ नहीं थे। मोदी को गुजरात में सख्त जरूरत। सो उमा विरोधी वैंकैया, अनंत, जेतली की तिकड़ी कमजोर पड़ गई। मेल-मिलाप का सेहरा उमा के गुरु विश्वेसर तीर्थ स्वामी के सिर बंधे। तो किसी को ऐतराज नहीं। सो बुधवार को उनने ही पहल की। पुरानी शर्तें छोड़ गुरुवार को उमा अहमदाबाद पहुंची। तो मोदी बोले- 'पूज्य स्वामी जी ने राष्ट्रवादी-हिंदुत्ववादी ताकतों को एकजुटता की बात सही समय कही। मैं उनका अभिनंदन करता हूं। साथ ही वीएचपी के फैसले का भी। गुजरात में राष्ट्रवाद और विकास जीतेगा। स्थिर शासन को नई ताकत मिलेगी।' यानि गुजरात में मोदी-उमा जुड़ेंगे। तो यूपी की गलती नहीं होगी।
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