अपन को वह तेरह अप्रेल 2008 का दिन याद। जब अर्जुन सिंह ने राहुल को पीएम प्रोजेक्ट करने की बात कही। अर्जुन सिंह से पूछा था- 'जैसे 1984 में युवा राजीव ने देश की कमान संभाली। क्या 2009 में राहुल को प्रोजेक्ट करना चाहिए?' अर्जुन सिंह का सधा सा जवाब था- 'क्यों नहीं। उनमें अपने पिता की सभी विशेषताएं मौजूद।' आपको याद करा दें। यह सवाल हुआ क्यों था। शरद पवार ने कहा था- 'मनमोहन को प्रोजेक्ट करके यूपीए को मिलकर चुनाव लड़ना चाहिए।' पवार के इस कथन ने कांग्रेस में खलबली मचाई। कांग्रेस राहुल का नाम जपना शुरू कर चुकी थी। पवार के बयान को साजिश माना गया। पवार ने पहले सोनिया के खिलाफ विदेशीमूल का फच्चर फंसाया। अब राहुल के रास्ते में रोड़ा। सो कांग्रेसी तिलमिलाए हुए थे। अपन जरा इतिहास की कुछ और परतें खोल दें।
अर्जुन सिंह ने नरसिंह राव के खिलाफ मोर्चा खोला। तो शरद पवार ने राव का साथ दिया था। अर्जुन-पवार में तब से छत्तीस का आंकड़ा। पर अर्जुन के बयान पर बवाल हो गया। उसकी वजह राहुल नहीं। मनमोहन से छत्तीस का आंकड़ा था। वह भी याद दिला दें। अर्जुन ने राव के खिलाफ मोर्चा खोला। तो हथियार बने थे मनमोहन सिंह। मनमोहन तब राव के वित्तमंत्री थे। उनने नेहरू-इंदिरा की समाजवादी नीति छोड़ उदारवाद अपनाया। तो अर्जुन आर्थिक नीतियों को गरीब विरोधी बताने लगे। खुलेआम बगावत पर उतर आए। जगह-जगह से बुलावा आने लगा। नारे लगने लगे। ठाकुर गद्गद हो गए। ऐसे ही एक दौरे पर तब अपन अर्जुन के साथ तिरुअंतपुरम में थे। जब राव का कारण बताओ नोटिस मिला। अर्जुन ने वहीं से जवाब फैक्स किया था। जिसे अपन ने पहले ही देख लिया था। उसी अर्जुन ने अब राहुल का नाम लिया। तो राहुल को पीएम बनाने के बयान ऐसे आने लगे। जैसे बरसात में मेढक निकल आते हैं। वायलार रवि तक तो ठीक था। करुणानिधि तक का समर्थन में बयान आया। तो मनमोहन के कान खड़े हुए। साजिश की बू आई। सो सोनिया के कान भरवाए गए। सोनिया ने अर्जुन को तलब करके फटकारा था। शकील अहमद से ऐसे बयानों को चापलूसी कहलवाया। यह भी कहलवाया- 'सोनिया-राहुल को चापलूसी पसंद नहीं।' पर बात महीनाभर उठती रही। फिर जब 15 अगस्त को सोनिया एआईसीसी में झंडा फहराने आई। तो अपन लोगों ने पूछा- 'राहुल पीएम बनाए जाएंगे।' सोनिया ने कहा- 'प्रधानमंत्री पद खाली नहीं।' दूसरा सवाल हुआ- 'यूपीए 2009 में भी सत्ता में आया। तो क्या मनमोहन ही पीएम होंगे?' जवाब था- 'निश्चित ही।' पर कांग्रेसी हैं कि मानते नहीं। अर्जुन चुप हुए। तो दिग्गी राजा गाहे-ब-गाहे बोलते रहे। अब जब उमर अब्दुल्ला सीएम बने। तो सिंघवी ने इशारा किया- 'थर्ड जनरेशन का युग आ गया।' गुरुवार को अपने प्रणव ने बात आगे बढ़ा दी। प्रणव दा कभी खुद पीएम बनना चाहते थे। कांग्रेस ने 1984 में राजीव को पीएम बनाया। तो कांग्रेस छोड़ दी थी। पर अबके वह अर्जुन से भी आगे निकले। बोले- 'वह दिन बहुत दूर नहीं। जब राहुल अपने पिता का पद संभालेंगे।' अब वही शकील अख्तर। जो पिछले साल चापलूसी बता रहे थे। बोले- 'मैं भी कहता हूं राहुल में पीएम बनने की सभी विशेषताएं। युवा वर्ग राहुल की तरफ देख रहा है।' तो क्या मनमोहन अगले पीएम नहीं होंगे? इस सवाल पर बिदके। बोले- 'बिना वजह विवाद खड़ा मत करो।' पर पिछले साल अर्जुन ने यही बात कही। तो आपने चापलूस कहा था? शकील भाई इस सवाल पर सफाई देने लगे- 'नहीं, मैंने उन्हें चापलूस नहीं कहा। मैंने कहा था- बयानों की झड़ी लग गई, तो चापलूसी होगी।' पर अब आडवाणी के सामने राहुल को प्रोजेक्ट करने की पूरी तैयारी। सो अब कोई नहीं कहेगा- चापलूसी। खुद शकील बोले- 'राहुल देश को दिशा देने के काबिल हो गए हैं।'
आपकी प्रतिक्रिया