अपन ने कल मनमोहन की जुबानी गोलाबारी बताई। गोलाबारी का असर दिखने लगा। पाक आखिर मानने लगा- कसाब पाकिस्तानी ही। जैसी जुबानी गोलाबारी भारत-पाक में चली। कुछ वैसी ही जुबानी राजनीतिक गोलाबारी देश में भी तेज हो गई। मनमोहन सरकार बचाने वाले अमर सिंह बोले- 'मनमोहन ने पाक के खिलाफ निर्णायक फैसले की मोहलत मांगी थी। वह मोहलत अब खत्म। समाजवादी पार्टी समर्थन वापसी पर फैसला करेगी।' पर इससे भी ज्यादा मजेदार राजनीतिक जुबानी जंग बीजेपी में शुरू। अपने भैरों बाबा लालकृष्ण आडवाणी पर जहर बुझे तीर चलाने लगे। भैरों बाबा इसे मानेंगे नहीं। पर जब उनने पीएम के विकल्प खुले होने की बात कही। तो कसक आडवाणी के खिलाफ ही दिखी। यों अपनी भी शुरू से यही राय थी। आडवाणी से शेखावत बेहतर च्वायस होती। पर अब एनडीए अपना फैसला बदलने से रहा। पहले संघ ने हरी झंडी दी।
ताकि सनद रहे। सो याद दिला दें- अपन ने यहीं पर बारह सितंबर 2007 को लिखा था- 'आडवाणी ताकतवर होकर मुंबई से लौटे।' मुंबई में संघ परिवार की मींटिंग हुई थी। जहां आडवाणी को पीएम प्रोजेक्ट करने का फैसला हुआ। अपनी बात सही साबित हुई दस दिसंबर को। जब बीजेपी पार्लियामेंट्री बोर्ड ने ऐलान किया- 'आडवाणी होंगे प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार।' फिर एनडीए ने भी मुहर लगाई। सो अब शेखावत इस चैप्टर को फिर से नहीं खुलवा सकते। यह बात बुधवार को राजनाथ सिंह ने साफ कर दी। जब उनने कहा- 'जो लोग गंगा मैया में डुबकी लगा चुके हों। वे कुएं में नहीं नहाते।' शेखावत इशारा समझ गए होंगे। उपराष्ट्रपति रहकर अब लोकसभा चुनाव लड़ना कुएं में नहाना ही हुआ। यानी बीजेपी की तरफ से टिकट की साफ मनाही। साथ ही राजनीतिक संन्यास की सलाह भी। अपन को याद आती है 1998 की। जब सीताराम केसरी कांग्रेस अध्यक्ष थे। सोनिया चाहती थी- नरसिंह राव को टिकट न दिया जाए। सो उनने सीताराम केसरी से कहलवा दिया- 'नरसिंह राव को टिकट नहीं मिलेगा।' पर अब तो पूरी रणनीति से ऐलान हुआ। बाकायदा आला स्तर पर गुफ्तगू हुई। राजनाथ सिंह बोलेंगे, यह तय हुआ। फिर अपन लोगों को सुबह दस बजे एसएमएस आया- 'राजनाथ सिंह ग्यारह बजे पहले मीडिया वर्कशाप का उद्धाटन करेंगे। फिर 'बाइट' देंगे। आईए, ग्यारह बजे अशोका रोड पहुंचिए।' यह बुलावा इसीलिए था। राजनाथ सिंह ने सीताराम केसरी वाला बयान दोहरा दिया। दो टूक कहा- 'आडवाणी ही पीएम पद के उम्मीदवार होंगे।' राजनाथ सिंह अगर राजपूत। तो शेखावत उससे बड़े राजपूत। सो उनने ईंट का जवाब पत्थर से दिया। बोले- 'मैंने कहां टिकट मांगा है। जनता चाहती है, तो मैं लड़ूंगा।' वैसे खरी बात बता दें- भैरों बाबा आडवाणी से उतने खफा नहीं। जितने राजनाथ सिंह से। अपन इसका इतिहास भी बता दें। शेखावत जब राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ रहे थे। तो राजनाथ सिंह को लगता था- हारने के लिए नहीं लड़ना चाहिए। यह बात लुकी-छिपी नहीं। अलबत्ता जगजाहिर थी। प्रियरंजन दासमुंशी ताल ठोककर कह रहे थे- 'राजनाथ सिंह हमारे साथ।' यह बात अपन ने जुलाई 2007 में कई बार लिखी। वैसे आडवाणी की राय भी तब राजनाथ जैसी थी। जब थर्ड फ्रंट ने गच्चा दे दिया था। उनने शेखावत से कहा भी था- 'अब फैसला आपको करना है।' पर जब शेखावत ने लड़ने का फैसला कर लिया। तो आडवाणी जी-जान से लग गए। शेखावत जब हारे। तो आडवाणी की आंखों में आंसू झलक आए थे। अब वही शेखावत आडवाणी के खिलाफ मोर्चा खोलेंगे। अपन को भरोसा नहीं होता। वसुंधरा राजे का गुस्सा आडवाणी पर उतारेंगे। अपना मन नहीं मानता। हां, वसुंधरा को लेकर आडवाणी-शेखावत में तनातनी हुई। पर बात यहां तक पहुंचेगी। जिस बीजेपी को पाला-पोसा। पचपन साल गुजारे। उस पार्टी की इच्छा के खिलाफ जंग-ए-चुनाव में उतरेंगे। अपन को नहीं लगता- बाबोसा इस उम्र में.....। इस उम्र में क्या खाक मुस्लमां होंगे।
आपकी प्रतिक्रिया