देवगौड़ा ने पहले कांग्रेस को धोखा दिया। फिर बीजेपी को। अब अपने एमएलए धोखे में रखे। बेंगलुरू से कहकर आए- 'कांग्रेस से बात करूंगा।' पर दिल्ली आकर लंबी तानकर सो गए। देवगौडा के बैठे-बैठे सोने की आदत से तो सब वाकिफ। हकीकत दूसरी। अपन ने कल बुधवार को हुई देवगौड़ा-पृथ्वीराज चव्हाण गुफ्तगू का जिक्र किया। पिछले बुधवार सेंट्रल हाल में हुई थी गुफ्तगू। गुफ्तगू का राज मंगलवार को तब खुला। जब केबिनेट ने एसेंबली भंग करने का फैसला कर लिया। तो चव्हाण ने देवगौड़ा को फोन पर कहा- 'थैंक्यू'।
तो क्या देवगौड़ा ने अपने बेटे कुमारस्वामी को भी धोखा दिया? अपन असली नाटक तो नहीं जानते। पर बाप-बेटे में मनमुटाव शुरू तो हो चुका। देवगौड़ा ने अपने साथ बेटे की विश्वसनीयता भी बर्बाद कर दी। लालू की नजर में यह कलयुग की निशानी। देवगौड़ा- लालू का टकराव कौन नहीं जानता। देवगौड़ा की वजह से लालू को सीएम पद छोड़ना पड़ा था। वैसे सीपीएम ने ज्योति बसु को पीएम बनवाने से इनकार कर दिया था। तो ज्योति बसु ने देवगौड़ा का नाम सुझाया। तब लालू ने ही बाकियों को देवगौड़ा के लिए राजी किया। पर बाद में देवगौड़ा ने लालू को हू-ब-हू ऐसे ही धोखा दिया। जैसे अब पहले धर्म सिंह को और येदुरप्पा को दिया। लालू बोले- 'देवगौड़ा ने कर्नाटक में जो कुछ किया। वह घोर कलयुग का सबूत।' पर अपन बात कर रहे थे बाप-बेटे में मनमुटाव की। देवगौड़ा दिल्ली आकर सफदरजंग वाले घर में सो गए। तो उधर बेटा कुमारस्वामी अपनी जगहसाई पर रात भर नहीं सोया। सुबह उठकर बोला- 'मैं अपनी क्षेत्रीय पार्टी बनाऊंगा।'वैसे अपन एक और बात बता दें। येदुरप्पा की सरकार गिराकर देवगौड़ा ने घर का झगड़ा निपटाया। रेवन्ना की पत्नी भूख हड़ताल पर बैठ गई थी। जिद थी- 'अब के रेवन्ना को डिप्टी सीएम बनाया जाए।' पर एमएलए कुमारस्वामी के साथ थे। सो देवगौड़ा ने रणनीति बनाई- 'न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी'वाली। राजनीतिक मक्कारी के लिए देवगौड़ा ने अपना नाम भजनलाल से ऊपर लिखवा लिया। हरियाणा की आयाराम गयाराम वाली मिसाल अब छोटी। पर मंगलवार को देवगौड़ा बोले- 'येदुरप्पा सरकार मेरी वजह से नहीं। बीजेपी की वजह से गिरी।' उनने स्टेंप पेपर पर एमओयू का ठीकरा भी बीजेपी के सिर फोड़ा। दो-दो रुपए की स्टेंप डयूटी वाला तीन पेज का ड्राफ्ट बांटते हुए बोले- 'यह पहले बीजेपी ने भिजवाया था।'सत्ताईस अक्टूबर की तारीख वाले इस ड्राफ्ट में आठ नुक्ते। आठवां नुक्ता महत्वपूर्ण। इसमें दो गैर राजनीतिज्ञों के नाम कोआर्डिनेशन कमेटी में। कुमारस्वामी के करीबी टी. वेंकटेश और येदुरप्पा के करीबी एस. दोरेराजू। अपन ने टटोला। तो पता चला- 'दोनों की बीजेपी-जेडीएस को करीब लाने में अहम भूमिका थी।' अपन को यह भी पता चला- 'ड्राफ्ट इन दोनों ने बनाया था। जिसे कुमारस्वामी और येदुरप्पा को दिखाया गया। पर किसी ने भी हामी नहीं भरी थी।' ड्राफ्ट से दोनों के सत्तासुख भोगने की लालसा जाहिर। अपन ने येदुरप्पा से बात की। तो वह बोले- 'कुमारस्वामी मेरे पास कई ड्राफ्ट लेकर आए। पर मैंने कोई कबूल नहीं किया।' यानि सीएमपी को एमओयू बनाने की कोशिश गैर राजनीतिज्ञों की थी। सत्ता के ऐसे घुसपैठियों ने राजनीति को सौदा बनाकर छोड़ा। पर अब लड़ाई सीधी। केबिनेट के फैसले से तीनों खुश। वैसे संसद एसेंबली भंग करने का प्रस्ताव पास करेगी। एसेंबली तब भंग होगी। फिलहाल सिर्फ राष्ट्रपति राज लगा। पर केबिनेट के फैसले से कांग्रेस-जेडीएस-बीजेपी तीनों खुश। बेंगलुरू में बीजेपी एमएलए तीन घंटे चुनावी रणनीति में जुटे रहे। फिर पदाधिकारियों की मीटिंग हुई। अब दिसंबर के शुरू में वर्किंग कमेटी होगी। चुनावी बिगुल बज चुका। दिल्ली में देवगौड़ा ने अकेले लड़ने का ऐलान कर दिया। कहा- 'बीजेपी-कांग्रेस से बराबर की दूरी।' वैसे देवगौड़ा के अपने सत्रह-अठारह एमएलए बीजेपी टिकट लेंगे। आठ-दस कांग्रेस टिकट।
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