मनमोहन-अल बरदई गुफ्तगू हो गई। डेढ़ घंटा सिर्फ खाना तो नहीं खाया होगा। या सौफे पर बैठे भारत-आस्टे्रलिया मैच तो नहीं देख रहे होंगे। जरूर रिएक्टरों की निगरानी पर बतियाए होंगे। पर लेफ्ट को क्यों बताएं। लेफ्ट ने पहले ही कह दिया था- 'बात की तो देख लेंगे।' बुधवार को प्रणव-बरदई मुलाकात हुई। तो बताया गया- 'सिर्फ एटमी ऊर्जा की जरूरत पर बात हुई। रिएक्टरों की निगरानी पर नहीं।' यों यूएन की इंटरनेशनल एटमी एनर्जी एजेंसी के प्रमुख बरदई कोई अमेरिकी एजेंट नहीं।
लेफ्ट को तो अमेरिकी एजेंटों से अलर्जी। अपन को बरदई की इराक वाली रिपोर्ट याद। बरदई तब आईएईए के चीफ इंस्पेक्टर थे। उनने रिपोर्ट दी थी- 'इराक में मारक हथियार नहीं।' सो लेफ्ट को बरदई से अलर्जी होने का सवाल ही नहीं। बरदई बोले- 'रिएक्टरों का सेप्रेशन प्लान तैयार। रिएक्टर निगरानी का प्लान भी तैयार। चार रिएक्टर पहले से निगरानी में।' पर आईएईए से समझौता होगा। तब जाकर एटमी करार का पहला दरवाजा खुलेगा। दूसरा दरवाजा एनएसजी से समझौते के बाद। तब जाकर अमेरिकी कांग्रेस करार को हरी झंडी देगी। पर लेफ्ट की लाल झंडी ने मनमोहन पर बे्रेक लगा दी। मनमोहन-सोनिया दोनों ही लेफ्ट को सुर्ख आंखें दिखा चुके। मनमोहन ने 'टेलीग्राफ' से इंटरव्यू में कहा- 'जो करना है करो।' सोनिया ने हरियाणा में जाकर कहा- 'करार विरोधी विकास के दुश्मन।' कांग्रेस ने तो चुनाव की तैयारियां शुरू भी कर दी। तुरुप के सारे पत्ते खोल दिए। राहुल को चुनाव की बागडोर संभाल दी। प्रचार-प्रबंधन कमेटी बन गई। ग्रामीण बेरोजगारों को तोहफे का एलान हो गया। अल्पसंख्यकों के लिए तिजोरी खुल गई। सरकारी करिंदों का डीए बढ़ा दिया। बोनस बढ़ा दिया। आम आदमी को बीमे का एलान कर दिया। मजदूरों को हेल्थ पॉलिसी थमा दी। छोटे-मझौले अखबारों को इश्तिहारों का लालच। हर रोज केबिनेट की नई रेवड़ी। गुरुवार को केबिनेट ने चुनाव का इशारा ही कर दिया। जब मीटिंग के बाद मुरली देवड़ा ने एलान किया- 'पेट्रोल-डीजल-रसोई गैस की कीमत नहीं बढ़ेगी। भले ही कंपनियों को 23457 करोड़ का घाटा। घाटे की भरपाई तेल बांड से होगी।' दासमुंशी ने केबिनेट के दूसरे फैसले का एलान किया- 'एसईजेड के लिए किसानों से जमीन लेंगे। तो बदले में जमीन देंगे।' एसईजेड पर निशाना एनडीए पर साधा। आखिर चुनाव होगा। तो सीधी टक्कर एनडीए से ही होगी। वेतन आयोग की तनख्वाहें डबल करने वाली सिफारिश भी जल्द। एक तरफ चुनावों की पूरी तैयारी। पर दूसरी तरफ पवार-लालू ने गुरुवार को दूसरे संकेत दिए। पवार तो कहते थे- 'सरकार चार महीने की मेहमान।' पर उसी पवार ने जब कहा- 'सरकार नहीं गिरेगी। मिड टर्म की कोई गुंजाइश नहीं।' उस दिन लेफ्टिए लालू-पवार के कंधों पर सवार होकर मीटिंग से निकले थे। सो अपना माथा ठनका। अपन ने इधर-उधर से टटोला। तो चौंकाने वाला फार्मूला दिखा। लेफ्ट को अलर्जी तो अमेरिका से। सो सरकार का इरादा वैसा ही एटमी करार रूस से करने का। अपन को उड़ती-उड़ती खबर मिली- 'आईएईए-एनएसजी समझौते तीन महीने ठंडे बस्ते में पड़ेंगे।' अगर सोनिया-मनमोहन ने रूस से करार का तुरुप चला। तो इस उड़ती खबर में जरूर दम। अपन ने कल ही तो अमेरिकी प्रवक्ता सीन मैककार्मेक का बयान बताया था। लब्बोलुबाब था- 'वक्त की बंदिश नहीं।' यही लब्बोलुबाब बरदई का रहा। अब अपन को निगाह रखनी होगी- मनमोहन के मास्को दौरे की। नवंबर नहीं, तो दिसंबर। मनमोहन रूस जाएंगे। साथ में होंगे अनिल काकोड़कर। हाथों-हाथ एटमी करार हो जाए। तो अचंभा नहीं होगा। रूस से करार होते ही लेफ्ट का मुंह बंद। फिर न आईएईए से समझौते में अड़चन। न एनएसजी से समझौते में। पर चुनावों की तैयारी धरी तो नहीं रहेगी। लोकलुभावन बजट के बाद सही।
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