व्हाइट हाऊस, टैन डाउनिंग अपन से ज्यादा फिक्रमंद

Publsihed: 28.Nov.2008, 06:14

बुधवार रात 9.40 का वक्त। अपन डायनिंग टेबल पर बैठ चुके थे। पहली खबर आई- 'मुंबई में दो गुटों में गोलीबारी।' धीरे-धीरे परतें खुलती गई। तीन जगह गोलीबारी की खबर आई। तो अपन को पहली नजर में गैंगवार लगा। पर दस बजते-बजते हालात साफ हो गए। एटीएस चीफ हेमंत करकरे वीटी स्टेशन पर पहुंचे। अपन ने बुलेटप्रुफ जैकेट और हेलमेट लगाते देखा। रात बारह बजे करकरे को गोली लगने की खबर आई। करकरे मालेगांव जांच से सुर्खियों में थे। बयासी बैच के आईपीएस करकरे इसी साल जनवरी में लौटे। सात साल रॉ में डेपूटेशन पर आस्ट्रिया में थे। एटीएस की बात चली। तो बताते जाएं। मुस्लिम मुजाहिद्दीन एटीएस से बेहद खफा थी।

मालेगांव से पहले सितंबर शुरू में मुस्लिम मुजाहिद्दीन ने एक ई-मेल भेजा। ई मेल में लिखा था- 'अगर आप इतने घमंडी हैं। आप समझते हैं, आप हमें डरा देंगे। तो मुस्लिम मुजाहिद्दीन मुंबई के लोगों को चेतावनी देती है- जब भी मुंबईवासियों पर हमला होगा। जिम्मेदारी एटीएस पर होगी।' पर आतंकी हमले की जिम्मेदारी 'डक्कन मुजाहिद्दीन' ने ली। किसी शाहतुल्ला ने खुद को हैदराबादी बताते हुए कहा- 'जेलों में कैद सारे मुजाहिद्दीन छोड़े जाएं।' बोलने वाले की जुबान लाहौर जैसी थी। शाहतुल्ला ने ताज होटल में सात मुजाहिद्दीन बताए। बाद में खुलासा हुआ- कम से कम दस आतंकी घुसे थे। कोलाबा के सूसोन डाक के रास्ते। वे राफ्टिंग बोट से उतरे। मछुआरों ने पूछा भी- 'कहां से आए हो?' आतंकियों ने जवाब दिया- 'आप अपने काम से काम रखो।' मछुआरो ने फौरन पुलिस को जानकारी दी। पर पुलिस वारदात के बाद हरकत में आई। आतंकियों ने मुंबई के दक्षिणी छोर की चुनिंदा ईमारतों को चुना। ताज होटल, ओबेराय होटल, वीटी रेलवे स्टेशन, शांताक्रुज, कोलाबा। होटलों में घुसते ही गोलीबारी शुरू कर दी। आतंकियों ने पूछा- 'कौन-कौन अमेरिकी है, कौन-कौन ब्रिटिश।' एक ब्रिटिश खुद को इटेलियन बताकर बाहर निकला। ताकि सनद रहे सो बता दें- यूरोपियन यूनियन की संसद के सात नुमाइंदे होटल में थे। इस समय यूरोपियन यूनियन की रहनुमाई फ्रांस के हाथ। फ्रांसीसी राजदूत हरकत में आया। शुक्र है सातों नुमाइंदे बच निकले। पर सारे विदेशी खुशनसीब नहीं थे। आधा दर्जन विदेशी मारे गए। संसद पर हमले की वारदात फीकी पड़ गई। टि्वन टावर की याद ताजा हो गई।  आतंकवाद के इतिहास में नाईन- इलेवन के बाद छब्बीस-इलेवन याद रहेगा। मालेगांव ने आतंकवाद पर राजनीति बढ़ा दी थी। कांग्रेस-भाजपा में आमने-सामने जंग थी। पर मुंबई के इस हमले से देश एकजुट हुआ।  संघ प्रमुख सुदर्शन का बयान आया- 'यह सिर्फ आतंकवादी वारदात नहीं। राष्ट्र के खिलाफ खुला युध्द है। देश की समरस्ता बनी रहनी चाहिए। सभी सरकार को आतंकवाद के खिलाफ सहयोग दें।' लालकृष्ण आडवाणी ने पहल की। उनने सीधे मनमोहन सिंह को फोन किया। मुंबई पर आतंकी हमले की तफसील पूछी। पूरे सहयोग का वादा किया। राजनाथ सिंह, नरेंद्र मोदी भी इसी जुबान में बोले। आडवाणी-मनमोहन बातचीत में तय हुआ- 'गुरुवार को आडवाणी पीएम के साथ मुंबई जाएं। ताकि आतंकवाद के खिलाफ राजनीतिक एकजुटता दिखे।' आडवाणी ने सुबह मीडिया से बात की। तो उनने खुलासा भी किया- 'मैं पीएम के साथ ही मुंबई जाऊंगा। अगर वह आज नहीं गए। तो मैं देखूंगा, कब जाऊं।' यह खबर मीडिया में फैली ही थी। सरकारी खबर आ गई- 'आडवाणी को मुंबई न जाने  की सलाह।' फिर आडवाणी को खबर पहुंची- 'पीएम-सोनिया को साथ लेकर जाएंगे।' सुनामी के वक्त भी यही हुआ था। सो खबर मिलते ही आडवाणी मुंबई रवाना हो गए। कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ठीक उस समय कह रहे थे- 'किसी को भी राजनीति नहीं करनी चाहिए। सभी को मिलकर आतंकवाद से लड़ना चाहिए।' उनने करकरे की तारीफ करते हुए कहा- 'उनने निष्पक्षता में अपनी साख बनाई।' कांग्रेस चुनावों पर असर से दहशत में दिखी। एक दिन का संसद सत्र बुलाने पर विचार हुआ। फेडरल एजेंसी का फच्चर निकालने पर भी खुसर-पुसर हुई। पर इधर दबे पांव राजनीति सिर उठा रही थी। तो उधर दुनिया आतंकवाद के नए चेहरे से दहशत में थी। व्हाइट हाऊस में मीटिंग चल रही थी। ब्रिटिश हाईकमिशनर मुंबई पहुंच गए थे। कैनेडियन काउंसलर पहले से होटल के बाहर खड़ा था।

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