मुद्दा विहीन चुनाव में बेबात की चख-चख

Publsihed: 21.Nov.2008, 20:39

अपन भी चुनावी सर्वेक्षणों पर ज्यादा भरोसा तो नहीं करते। पर 'द वीक' ने अपनी साख बनाई। जिसके मुताबिक मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, दिल्ली में भगवा लहराएगा। राजस्थान में कांटे की टक्कर। बात भगवे की चली। तो बता दें- एटीएस का नई खोजबीन है- 'अभिनव भारत' के निशाने पर मुस्लिम और आरएसएस दोनों थे। मोहन भागवत, इंद्रेश की सुपारी दे दी थी। संघ ने नेशनलिस्ट मुसलमानों को जोड़ना तय किया। तो राष्ट्रीय मुस्लिम मंच बनाया। जिम्मा सौंपा गया इंद्रेश को। एटीएस पर भरोसा करें। तो साध्वी प्रज्ञा, दयानंद पांडे, रमेश उपाध्याय आरएसएस से खफा थे। 'अभिनव भारत' यानी गोडसे की विचारधारा। जो गांधी की तरह आरएसएस से भी खफा थे।

मौजूदा अभिनव भारत भी आरएसएस से खफा। प्रज्ञा को टार्चर करने पर आडवाणी बरसे। तो एटीएस ने यह नया खुलासा किया। एनएसए चीफ नारायणन, आईबी चीफ हलधर शुक्रवार को आडवाणी को समझाने गए। यानी मालेगांव से संघ परिवार पूरी तरह बरी। पर पहले कांग्रेस का सारा हमला संघ परिवार पर था। साध्वी प्रज्ञा को संघ परिवारी बताने के सबूत दिखाए गए। एटीएस के नए खुलासे पर आडवाणी ने संघ नेताओं से गुफ्तगू की। पर संघ परिवार को एटीएस पर कतई भरोसा नहीं। संघ को एटीएस की कोई नई चाल दिखने लगी। राजनाथ सिंह ने भी रतलाम में इसे राजनीतिक साजिश बताया। कहा- 'यह जांच के दिशाहीन होने का सबूत।' पर अपन को इंतजार रहेगा आज मध्यप्रदेश में आडवाणी के रुख का। बात मध्यप्रदेश की चली। तो बताते जाएं- कांग्रेस को प्रज्ञा की गिरफ्तारी से फायदा मध्यप्रदेश में ही होता। पर वहां तो कांग्रेस को उल्टे नुकसान होने लगा। यों मध्यप्रदेश में शेख चिल्लियों की कमी नहीं। जब से कमलनाथ ने कहा- 'कांग्रेस हर हालत में चुनाव जीतेगी।' तब से कमलनाथ खेमे में मंत्रालयों की बंदरबांट शुरू हो गई। भोपाल में तो खासकर चर्चा है- फलां होम मिनिस्टर बनेगा, फलां फाइनेंस मिनिस्टर। वैसे अपन से कोई पूछे। तो मध्यप्रदेश में बीजेपी की जीत अस्सी-नब्बे सीटों पर पक्की।  कांग्रेस फिलहाल चालीस- पचास के बीच। फिर भी कमलनाथ ने दावा ठोका। तो शिवराज सिंह चौहान सकपका गए। दाल में काला दिखने लगा। शुक्रवार को भड़ककर बोले- 'कांग्रेस जरूर कोई साजिश रच रही है। इस तरह के बयान लोकतंत्र विरोधी।' शायद शिवराज को खुद लोकतंत्र पर भरोसा नहीं। वरना कमलनाथ के बयान पर ऐसे न तिलमिलाते। अपने दिग्गी राजा कहा करते थे- 'चुनाव विकास से नहीं, मैनेजमेंट से जीते जाते हैं।' पर 2003 में सारी मैनेजमेंट धरी रह गई। जब चुनावों में 'बिपासा' की मांग होने लगी। जान इब्राहिम वाली 'बिपासा' नहीं। बिजली, पानी, सड़क वाली बिपासा। शिवराज की बिपासा में दम होगा। तो कमलनाथ का दावा भी धरा रह जाएगा। यों कांग्रेसियों की लड़ाई में कमलनाथ का पलड़ा भारी। कांग्रेस का पलड़ा तो भारी नहीं दिखता।   वैसे लगते हाथों बताते जाएं- मध्यप्रदेश में भीड़ सिर्फ तीन नेताओं के लिए जुट रही है। शिवराज, कमलनाथ और उमा भारती। राहुल गांधी भी भीड नहीं जुटा पाए। कांग्रेस में अब बची सिर्फ सोनिया। बीजेपी के राष्ट्रीय नेताओं में राजनाथ सिंह ने रतलाम में पहली बार भीड़ जुटाई। पर नरेंद्र मोदी इंदौर में सब पर भारी पड़े। आज से आडवाणी की मीटिंगें कैसी रहेंगी। इस पर अपन की निगाह रहेगी। यों निगाह तो रखनी पड़ेगी उमा भारती और मायावती पर। यूपी से लगते चम्बल-ग्वालियर इलाकों में मायावती ने पूरा जोर लगा दिया। माया कांग्रेस के लिए विनाशकारी। तो उमा भाजपा के लिए। उमा का सारा जोर अपने खास रहे शिवराज का बंटाधार करने पर। कमलनाथ-उमा ने भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाने का साझा फैसला किया। पर भ्रष्टाचार का मुद्दा जैसे राजस्थान में जोर मारा। वैसा मध्यप्रदेश में जोर मारता नहीं दिखता। शिवराज के डम्पर कांड की उतनी गूंज नहीं। जितनी बीजेपी के मिश्रा मंत्रियों की। यों तो मध्यप्रदेश में टिकट खूब कटे। पर शिवराज के मंत्रियों के पसीने छूट रहे हैं।

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