सीपीएम की बेस्ट बेकरी नंदीग्राम

Publsihed: 13.Nov.2007, 06:38

अपन को नहीं लगता सोनिया नंदीग्राम जाएंगी। चली गईं, तो कल की जाती आज जाएगी यूपीए सरकार। पता नहीं दासमुंशी और सिंघवी किस भुलावे में। दोनों ने सोमवार को उम्मीद बांधी- 'नंदीग्राम जा सकती हैं सोनिया।' नंदीग्राम सीपीएम की प्रयोगशाला। जहां एक साल से लोकतंत्र की धुनाई जारी। जो लोकतंत्र की हिमायत में बोले। सीपीएम उसका मुंह काला करने को उतारु। फिर भले वह गवर्नर ही क्यों न हो। गवर्नर गोपाल गांधी ने नंदीग्राम में हरकतों पर नाराजगी जताई। तो करात-वर्धन ने पीएम से शिकायत की। पीएम तो पूरी तरह लाचार।

यही हालत गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश या उत्तराखंड में होती। तो और बात होती। मनमोहन न सही। शिवराज पाटिल न सही। अब तक श्रीप्रकाश जायसवाल तो 356 की धमकी दे चुके होते। पर अब उनके भी मुंह में जुबान नहीं। अपन ने सिंघवी से पूछा। तो बोले- 'हर समस्या का हल 356 नहीं।' बात गवर्नर की चली। तो बताते जाएं- सोमवार को उनने ज्योतिबसु से मुलाकात की। गुहार लगाई- 'नंदीग्राम जाकर हालत सुधारें।' यों सोमवार को सीपीएम पोलित ब्यूरो ने हालत का ठीकरा ममता के सिर फोड़ा। करात बोले- 'ममता ने नंदीग्राम में माओवादियों की मदद ली।' अपन यह नहीं कहते- नंदीग्राम में माओवादी हरकत में नहीं। पर नेपाल में जो माओवादी सीपीएम की आंखों के तारे। वही माओवादी नंदीग्राम में आंख की किरकिरी कैसे। करात ने यह भी कहा- 'स्टेट गवर्नमेंट पर हाईकोर्ट की बंदिश। सो नंदीग्राम की हालत केंद्र सुधारे।' अपन को यह सुन ताज्जुब हुआ। सीपीएम नंदीग्राम में सीआरपीएफ को घुसने नहीं दे रहा। सीपीएम महासचिव कहते हैं- 'केंद्र हालत सुधारे।' पर बात ममता की। ममता की हालत पेंडुलम जैसी। कभी झुकाव बीजेपी की ओर। तो कभी कांग्रेस की ओर। अब लाल कृष्ण आडवाणी का रुख नंदीग्राम की ओर। तो ममता ने कहा- 'सोनिया-मनमोहन भी आएं।' यों आडवाणी जा पाएंगे, या नहीं। अपन नहीं कह सकते। बुध्ददेव-आडवाणी की दोस्ती किसको नहीं पता। आडवाणी जब होम मिनिस्टर थे। तो बुध्ददेव को नाश्ते पर बुलाया। कमला आडवाणी ने ढेरों पकवान तैयार किए। पर बुध्ददेव सिर्फ दही खाकर संतुष्ट हो गए। बाहर आकर उनने दही की तारीफ के पुल बांधे। वह अपन को अब तक नहीं भूलता। सीपीएम केडर की हालत पता नहीं क्या होगी। अगर बुध्ददेव ने आडवाणी को नंदीग्राम जाने दिया।  पर बात ममता की मनमोहन-सोनिया से गुहार की। मनमोहन जब तक दिल्ली में थे। जुबान नहीं खोली। मास्को जाकर बोले- 'केंद्र सरकार की पैनी नजर।' इससे तो अच्छा था- पुतिन को बुध्ददेव की शिकायत कर देते। नंदीग्राम अपन को तो एनडब्ल्यूएफपी लगने लगा। एनडब्ल्यूएफपी है तो पाकिस्तान का सूबा। पर वहां इस्लामाबाद की हुकूमत नहीं चलती। इसी तरह नंदीग्राम में कानून का राज नहीं। दिल्ली तो दूर की बात। कोलकाता की हुकूमत भी नहीं चलती। होम सेक्रेटरी पीपी रॉय ने हकीकत बयां की। तो देखा आपने। सीपीएम के गिध्द कैसे मांस नोचने दौड़ पडे। पर अपन होम सेक्रेटरी की हिम्मत की दाद देंगे। उनने सोमवार को भी कहा- 'नंदीग्राम के हालात बयां नहीं किए जा सकते। सीआरपीएफ तक को घुसने नहीं दिया।' यों सीपीएम का दावा- 'नंदीग्राम आतंक मुक्त।' इस पर मेधा पाटकर ने कहा- 'अगर ऐसा है, तो मुझे और ममता को जाने दो।' पर मेधा की सोमवार की कोशिश भी नाकाम रही। मेधा जब तक नरेंद्र मोदी के खिलाफ थी। तब तक विकासशील थी। जब नंदीग्राम पहुंची। तो आंख की किरकिरी हो गई। बात नरेंद्र मोदी की चली। तो अपन को वह बेस्ट बेकरी याद आ गई। जिससे  लेफ्ट को ज्यादा ही मोह। शायद इसीलिए सीपीएम ने नंदीग्राम को अपनी बेस्ट बेकरी बना दिया।

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