मोदी फार्मूले से बीजेपी को तीनों राज्यों में फायदा

Publsihed: 15.Nov.2008, 06:26

अपने प्रभात झा ने कांग्रेसी कुनबे को नई मुसीबत में घेरा। बोले- 'कांग्रेस में शिवराज चौहान के कद का नेता नहीं।' ऐसा नहीं, जो कांग्रेस जवाब नहीं दे सकती। पर कांग्रेस में कोई दूसरे को अपने से बड़ा नहीं मानता। दिग्गी राजा बड़े होते। तो सीएम पद के निर्विवाद उम्मीदवार होते। कमलनाथ-पचौरी में झगड़ा ही न होता। सोनिया ने भले ही पचौरी को बड़ा बना दिया। पर कमलनाथ मानने को तैयार नहीं। ज्योतिरादित्य भी पचौरी को बड़ा कहने को राजी नहीं। दिग्गी राजा ने जमुनादेवी-सुभाष यादव को कभी बड़ा बनने ही नहीं दिया। अब कमलनाथ को भले ही बड़ा बताएं। पर वक्त आने पर टांग खींचते दिखाई देंगे।

सो प्रभात झा ने कांग्रेस की दुखती रग पर हाथ रख दिया। जो प्रभात झा ने भोपाल में कही। वह किसी को जयपुर में कहने की जरूरत ही नहीं। वहां कांग्रेस के पास सचमुच वसुंधरा के कद का नेता नहीं। यों तो वसुंधरा से ऊंचे कद के बहुतेरे नेता। पर सब गवर्नर बनकर चले गए। बाकी बचे सभी प्यादे। वसुंधरा ने इस बार ऐसा तीर चलाया। कांग्रेस से जवाब देते नहीं बनेगा। अपन तो शुरू से मानते थे। वसुंधरा ने महिलाओं का वोट बैंक तैयार कर लिया। अब वह उसी वोट बैंक को भुनाने में जुट गई। शुक्रवार को रात होते-होते 18 सीटें बची थीं। दस इनलोद-जेडीयू को जाएंगी। अब तक महिलाओं को 31 टिकटें बंट चुकीं। एक-आध और भी मिलेंगी। तैंतीस फीसदी का ढिंढोरा पीटने वाली कांग्रेस के पास अब एक ही चारा। वसुंधरा के मुकाबले गिरजा व्यास को दावेदार बना दें। पर सोनिया यह कर नहीं सकती। गहलोत-मदेरणा कांग्रेस का तंबू उखाड़ने में जुट जाएंगे। बात महिलाओं की चली। तो बेचारी तस्लीमा नसरीन को भी याद करते जाएं। सेक्युलरिज्म का दम भरने वाले लेफ्टियों-कांग्रेसियों को तस्लीमा ने शुक्रवार को भी नंगा किया। यूरोप में कहीं से खबरिया एजेंसी से बोली- 'यूपीए सरकार ने मुझे एक बार फिर जबरदस्ती निकाल दिया।' वह आठ अगस्त को लौंटी थीं। पंद्रह अक्टूबर को फिर भारत छोड़ना पड़ा। वह बोली- 'हां, मुझे भारत छोड़ने को फिर मजबूर किया गया। मनमोहन-सोनिया की सरकार ने मुझे छह महीने का परमिट दिया। पर शर्त थी- मुझे कुछ दिनों में भारत छोड़ना होगा।' सेक्युलरिज्म के सबसे बड़े झंडाबरदार लेफ्टियों ने तो अपने बंगाल से निकाला ही था। तब अपनी वसुंधरा ने ही एक रात जयपुर में शरण दी। फिर दिल्ली के राजस्थान हाऊस में भी मेहमान रहीं। पर कांग्रेसियों-लेफ्टियों को तस्लीमा फूटी आंख नहीं सुहा रही। अपने नरेंद्र भाई तो गुजरात में न्योता दे चुके। पर वह कोलकाता में रहने की ही इच्छुक। पर अपन बात कर रहे थे महिलाओं को मिली टिकटों की। यों दिल्ली में बीजेपी पुरुषवादी पार्टी साबित हुई। दिल्ली में महिलाओं को टिकट न मिलने का अफसोस अरुण जेटली को भी। एक महिला को टिकट देकर काटना पड़ा। तो बोले- 'बिना तैंतीस फीसदी आरक्षण किए पुरुष सीटें छोड़ने वाले नहीं।' जहां तक बात मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ की। तो इन दोनों जगहों पर बीजेपी-कांग्रेस एक जैसे ही रहे। मध्यप्रदेश में बीजेपी की तेईस। तो कांग्रेस की चौबीस। छत्तीसगढ़ में दोनों की दस-दस। बात मोदी के गुजरातिए फार्मूले की। बीजेपी ने राजस्थान में 36 विधायकों को घर बिठाया। पर मध्यप्रदेश में तो 64 पर गाज गिरी। छत्तीसगढ़ में 18 के कटे ही थे। यह फार्मूला तो साफ ही था। जितनी ज्यादा टिकट कटेंगी, उतना ज्यादा फायदा होगा। एंटीइनकमबेंसी का अब कांग्रेस को फायदा मिलने से रहा। पर जितने ज्यादा टिकट कटे। उतने ज्यादा बगावती सड़कों पर। बात बगावत की चली। तो बताते जाएं- विश्वेन्द्र अपने घर चौबीस अकबर रोड लौट गए। सोनिया इसी से खुश। पता नहीं अब कांग्रेस के उस सिध्दांत का क्या होगा। जो पचमढ़ी में बना था। चुनाव के वक्त दल में आने पर टिकट नहीं मिलेगा।

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