कंगारूओं का किला ढहा धोनी हुए धुरंधर

Publsihed: 10.Nov.2008, 20:39

नागपुर में जीत की इबारत सचिन ने पहले दिन ही लिख दी थी। जब उनने सुनील गावस्कर और ऐलन बार्डर का रिकार्ड तोड़ा। अपन ने सोमवार को कंगारूओं को हराकर जो ट्राफी जीती। वह इन दोनों महान क्रिकेटरों के ही नाम। सचिन के टेस्ट जीवन का यों तो 40वां सैकड़ा था। पर यह 40वां सैकड़ा बनाने में लंबा वक्त लगा। चालीसवां सैकड़ा  मारकर सचिन ने गावस्कर को पीछे छोड़ दिया। कंगारू बार्डर ने नब्बे आधे सैकड़े बनाए थे। सचिन 91 बना चुके। सचिन अब आस्ट्रेलिया से खेलते हुए दो सैकड़े और बना लें। तो कंगारूओं के खिलाफ सबसे ज्यादा सैकड़े बनाने वाले होंगे।

अब तक यह रिकार्ड इंग्लैंड के जैक हॉब्स के नाम। बात इंग्लैंड की चली। तो बताते जाएं। अभी बार्डर-गावस्कर ट्राफी निपटी नहीं। इंग्लैंड की टीम आ पहुंची। शरद पवार का दनादन टाइम टेबल जचा नहीं। क्रिकेटरों को थोड़ा आराम तो देते। अब थके मांदे धोनी की दनादन इंग्लैंड के खिलाफ कैसी होगी। पिटे तो ठीकरा धोनी के सिर नहीं। शरद पवार के सिर फूटना चाहिए। शरद पवार ने भद्द पिटवाती टीम को नया खून दिया। इसमें तो कोई दो राय नहीं। हार रही टीम को उबारना जरूरी था। पर इस आपरेशन में खुन्नस भी साफ झलकी। जगमोहन डालमिया से खुन्नस सौरव गांगुली के जरिए निकाली। चैपल से गांगुली पर हमले करवाए। कप्तानी से हटाया, टीम से बाहर निकाल दिया। मजबूर गांगुली को संन्यास की रणनीति बनानी पड़ी। संन्यास का ऐलान हुआ। तब जाकर सात हजार रन का सपना पूरा करने दिया। वही सौरव गांगुली जिसने यंग टीम की नींव रखी। नागपुर का टेस्ट गांगुली का आखिरी मैच था। तो कप्तान धोनी ने आखिरी ओवरों की कप्तानी गांगुली को दी। गांगुली ने कप्तानी के जल्वे आखिरी ओवरों में भी दिखा दिए। जैसे दिल्ली में कुंबले की शानदार विदाई हुई। वैसे ही नागपुर में गांगुली की शानदार विदाई हुई। पर 'दादा' की इस विदाई से 'दीदी' खुश नहीं। दीदी यानी लता मंगेशकर। लता दीदी सांसद रह चुकी। पर राजनीति का क, ख, ग नहीं जानती। इसीलिए दीदी ने समझा दादा अपने आप संन्यास ले रहे होंगे। सो उनने दादा से अपील की- 'मैं दादा के संन्यास से खुश नहीं। दादा से अपील करती हूं- वह संन्यास न लें। दादा ने यह फैसला क्यों लिया, मैं नहीं जानती। देशवासियों को दादा पर दबाव डालना चाहिए।' लता दीदी राजनीति जानती होती। तो शायद इस तरह अपील न करती। खैर बात कंगारूओं के पस्त होने की। चार मैच हुए। दो की कप्तानी अनिल कुंबले ने संभाली। दिल्ली और बेंगलुरु। दोनों मैच ड्रा रहे। दो की कप्तानी धोनी ने संभाली। मोहाली और नागपुर। दोनों मैच भारत ने जीते। कुंबले का खेल टेक्स्ट बुक के मुताबिक। उनकी रणनीति बचाव की रही। पर धोनी की रणनीति हमलावर थी। नागपुर में तीसरे दिन धोनी ने आठ खिलाड़ियों को ऑफ साइड झोंक दिया। रन नहीं बने। तो कंगारू झुंझला गए। झुंझलाहट में धड़ाधड़ आउट हुए। आस्ट्रेलिया में धोनी की इस रणनीति पर झुंझलाहट। आस्ट्रेलियाई मीडिया ने लिखा- 'यह क्रिकेट नहीं।' इस पर धोनी ने जवाब दिया- 'यह मेरी रणनीति थी। मैंने ऑफ साइड ब्लाक किया। तो कंगारू ऑन साइड खेलते। किसने रोका था।' यों अपने सुनील गावस्कर को भी धोनी की रणनीति नहीं जंची। वह बोले- 'ऐसे टेस्ट खेले गए, तो टेस्ट का चार्म खत्म हो जाएगा। धोनी ने टेस्ट को 20-20 की तरह खेला।' गावस्कर कुछ कहें। धोनी ने एक बार तो कंगारूओं को धो डाला। वैसे जैसे काठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़ती। वैसे एक रणनीति हमेशा नहीं चलती।  अब रिकी पोंटिंग की आस्ट्रेलिया में जाकर धुनाई होगी। यों पोंटिंग तीन साल आस्ट्रेलिया को जिताते भी रहे। तीन साल बाद आस्ट्रेलिया पहली बार हारा। पोंटिंग ने आखिर में मान लिया- 'बेहतर टीम की जीत हुई।' कुंबले-गांगुली के साथ पोंटिंग की रिटायरमेंट भी करीब। दुनिया की पहले नंबर की टीम को नागपुर ऐसा नासूर दे गया। जिसकी टीस उसे बरसों तक महसूस होती रहेगी।

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