मुसीबतें हैं कि कांग्रेस का दामन नहीं छोड़ रहीं। एक से पिंड छूटता नहीं। दूसरी सिर उठाने को तैयार। ले देकर लोकसभा में बहुमत साबित किया। करुणानिधि तमिल मुद्दे पर अपने सांसदों के इस्तीफे बटोरने लगे। मनमोहन-प्रणव दा ने किसी तरह श्रीलंका मुद्दे से पिंड छुड़ाया। तो अब महाराष्ट्र के मुद्दे पर लालू-पासवान अपने सांसदों के इस्तीफे बटोरने लगे। लालू-पासवान की रणनीति नीतीश को घेरने की थी। पर शुक्रवार को दांव उल्टा पड़ गया। जद(यू) के पांचों सांसद इस्तीफा थमा आए।
अब लालू-पासवान इस्तीफा दें। तो मनमोहन सरकार पर फिर संकट। अभिषेक मनु सिंघवी ने दोनों को समझाया। बोले- 'इस्तीफों की कोई जरूरत नहीं। महाराष्ट्र में हालात सुधारे जाएंगे।' खैर लालू-पासवान का ऊंट किस करवट बैठेगा। अपन उस पर तो निगाह रखेंगे ही। फिलहाल तो कांग्रेस के अपने ही घर में संकट। मारग्रेट अल्वा ने कांग्रेस की पोल खोलकर रख दी। बोली- 'राजस्थान, मध्यप्रदेश में कांग्रेस के टिकट बिक गए।' अपन मारग्रेट की रणनीति तो नहीं जानते। वह जाफर शरीफ, नारायण राणे, सिध्दा रमैया के संपर्क में। मान लो सभी चुनावों के मौके पर खिसके। असर भले ही दिल्ली, एमपी, राजस्थान पर न पड़े। कांग्रेसियों के हौंसले तो टूटेंगे ही। मारग्रेट कोई छोटी-मोटी चीज नहीं। कांग्रेस की महासचिव। सो अभिषेक मनु सिंघवी के तो होश फाख्ता थे। बोले- 'जिम्मेदार नेताओं को सोच-समझकर बोलना चाहिए। खुलेआम बयानबाजी नहीं करनी चाहिए।' कांग्रेस भले ही मिट्टी डालने की कोशिश करे। पर अपन कांग्रेस महासचिव के आरोप को हवा में नहीं उड़ा सकते। मारग्रेट कांग्रेस की रग-रग से वाकिफ। अपन ने इस हफ्ते दूसरी बार कांग्रेसियों के मुंह से टिकटों की खरीद-फरोख्त सुनी। राजस्थान के टिकट बंट रहे थे। तो परसराम मदेरणा ने कुछ ऐसी ही चिट्ठी लिखी। सोनिया ने दिग्गी राजा-मुकुल वासनिक को तलब किया था। मदेरणा को भी दिल्ली बुलाकर बात की। मदेरणा की दिग्गी राजा से गुफ्तगू कराई। तो सात-आठ टिकटें बदलने पर सहमति हुई। धुआं तभी उठता है, जब आग हो। टिकटों की बिक्री का आरोप अपन ने कांग्रेस दफ्तर में खुलेआम सुना। जब कपासन में पच्चीस लाख लेकर टिकट बेचने के नारे लगे। कांग्रेस महासचिव मुकुल वासनिक का घेराव भी हुआ। पर अब तो आरोप कांग्रेस महासचिव के मुंह से। कर्नाटक के चुनाव में मारग्रेट चाहती थी- बेटे निवेदित को टिकट मिले। पृथ्वीराज चव्हाण और दिग्गी राजा ने भांजी मार दी। सो अब मारग्रेट को पलटवार का मौका मिला। बोली- 'मेरे बेटे को टिकट नहीं दिया। जाफर शरीफ के पोते को नहीं दिया। बीके हरिप्रसाद के भाई को नहीं दिया। तब पार्टी असूल की बात कर रही थी। कहा था- परिवार वालों को टिकट नहीं। अब मध्यप्रदेश में दस रिश्तेदारों को। राजस्थान में आठ रिश्तेदारों को। छत्तीसगढ़ में छह। जम्मू कश्मीर में भी एक को टिकट दिया। क्या मेरा बेटा आतंकी है। क्या जाफर शरीफ का पोता राष्ट्रद्रोही है। क्या बीके हरिप्रसाद का भाई स्मगलर है।' अपन भले ही मारग्रेट के हमले को पर्सनल खुन्नस मान लें। पर दिग्गी राजा-पृथ्वीराज चव्हाण कटघरे में। कटघरे में तो सोनिया गांधी भी। सोनिया चाहती, तो तीनों के रिश्तेदार टिकट पा जाते। आखिर मदेरणा के मामले में भी तो सोनिया ने दखल दिया। दिग्गी राजा तब कर्नाटक की स्क्रीनिंग कमेटी के अध्यक्ष थे। अब राजस्थान स्क्रीनिंग कमेटी के। मध्यप्रदेश स्क्रीनिंग कमेटी के मेंबर। मारग्रेट के विस्फोट से दस जनपथ हिल गया। अहमद पटेल ने मारग्रेट को फोन कर समझाया। पर मारग्रेट के मन में एक टीस हो। तो चुप्पी भी साध लें। जबसे आरवी देशपांडे को कर्नाटक कांग्रेस का चीफ बनाया। तबसे मन ज्यादा ही खट्टा। मारग्रेट का देशपांडे से छत्तीस का आंकड़ा। महाराष्ट्र की प्रभारी होकर भी विलासराव का कुछ नहीं बिगाड़ सकी। वह टीस भी मन में। वरना कर्नाटक का राजस्थान, मप्र की टिकटों से क्या लिंक। ताजा जोश का लिंक कहीं बराक ओबामा की जीत से तो नहीं। अपने यहां भी मुस्लिम-ईसाई-दलित गठजोड़ की तैयारी तो नहीं। जाफर शरीफ तो दो साल पहले भी मायावती के मंच पर जा चुके।
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