चुनावी बिगुल बज गया। रैलियां शुरू हो गईं। आडवाणी-राजनाथ भले रथ पर नहीं चढ़े। पर दोनों ने विजय संकल्प रैलियां तो खूब की। राहुल बाबा ने पिछले महीने दर-दर की खाक छानी। कोई राजनीतिबाज बिना स्वार्थ मिट्टी नहीं खोदता। न कोई सिर पर तसला उठाकर मजदूरी का स्वांग रचता। मकसद होता है वोटरों को लुभाना। अपन अक्टूबर में एक खबरिया चैनल देख रहे थे। चैनल कांग्रेसी एमपी का था। सो अपन को उस खबर पर हैरानी नहीं हुई।
चैनल की स्क्रीन दो हिस्सों में बंटी थी। दोनों ओर राहुल दिखाए जा रहे थे। पर एक तरफ राहुल गांधी। तो दूसरी तरफ राहुल महाजन। राहुल गांधी मिट्टी का तसला सिर पर उठाए थे। राहुल महाजन बिग बास के घर में रासलीला में मशगूल थे। वह भी उस मोनिका बेदी के साथ। जो अबू सलेम की पत्नी न सही, प्रेमिका तो थी ही। यों राहुल-मोनिका की जोड़ी अच्छी। दोनों जेल जा चुके। यों जेल तो राहुल के पिता प्रमोद महाजन भी गए थे। इमरजेंसी में तानाशाही के खिलाफ। राहुल की तरह नशे की लत में नहीं पकड़े गए थे। राहुल-मोनिका का जेल सफर एक सा। शिल्पा शेट्टी ने भी क्या जोड़ी ढूंढी। अपन चैनल की बात कर ही रहे हैं। तो गुरुवार का ताजा किस्सा भी सुनिए। चैनल वही। नाम भी वही- राहुल। पर अब तीसरा राहुल। पिस्तौल की नोंक पर बारह बस सवारियों का अपहरण करने वाला राहुल राज। स्क्रीन फिर दो हिस्सों में बंटी थी। एक तरफ एंकर बोल रहा था। दूसरी तरफ हाथ में पिस्तौल लिए बैठा था राहुल। एंकर कह रहा था- 'डाक्टर ने खुलासा किया है। राहुल को गोली नजदीक से मारी गई। गोली पांव में भी मारी जा सकती थी।' जर्नलिज्म का यह दिन देखकर अपन ने माथा पीटा। बस में बैठे राहुल का वही हिस्सा दिख रहा था। जिस हिस्से में गोलियां लगीं। पुलिस राहुल के पांव तक पहुंचती कैसे। पांव तो बस के अंदर थे। स्क्रीन के दूसरी तरफ ही दिख रहा था। पांव में गोली मारने के लिए पुलिस को बस में घुसना पड़ता। बस में घुसती, तो राहुल गोली मारता। बाटला हाऊस में पुलिस खुद गोली खाए। तब भी मुठभेड़ फर्जी। यानी मरे तो फर्जी, मारे तो फर्जी। बाटला हाऊस - बेस्ट बस की मुठभेड़ें सबके सामने हुईं। गुजरात में हुई सोहराबुद्दीन मुठभेड़ नहीं। जो किसी ने देखी न हो। फिर भी दिल्ली-मुंबई की मुठभेड़ों को फर्जी बताने की होड़। फर्जी बताने वाले वही लोग। लालू-पासवान एंड कंपनी। दोनों मुठभेड़ों पर वोट बैंक की राजनीति। एक मुस्लिम वोट बैंक के लिए। तो दूसरी बिहारी वोट बैंक के लिए। वोट बैंक की राजनीति में शरद यादव भी कूद गए। यों तो अपने सोमनाथ दादा बीमार होकर अस्पताल में। पर जद यू के सांसद आज इस्तीफा देंगे। अपनी बात तो चुनावी बिगुल से ही शुरू हुई थी। खबरिया चैनलों का एक फायदा तो हुआ। अपन ने राजनाथ-आडवाणी की पूरी जयपुर रैली घर बैठे देख ली। वसुंधरा के तेवर अपन को शिवराज से तेज लगे। भामाशाह योजना पर कांग्रेस की खाल खींच ली। बोली- 'कांग्रेस खुद तो कुछ करती नहीं। दूसरे करें, तो भांजी मारने की कोशिश।' वसुंधरा ने कोई चुनावी वादा नहीं किया। अपना किया काम ही याद कराया। महंगाई की बात चली। तो वाजपेयी के दिन याद कराए। जब विकास भी हुआ। महंगाई भी काबू में रही। राजनाथ के भाषण में अब ज्यादा निखार। उनने आतंकवाद पर साफगोई से बात की। बोले- 'वारदातें तो एनडीए शासन में भी हुईं। पर आतंकी कहीं भी जिंदा बचकर नहीं जा सके। यूपीए राज में पकड़े गए आतंकियों को भी बचाने की कोशिश।' बात असम की चली। जहां दो दिन तक पाक का झंडा लहराता रहा। तो राजनाथ ने ऐलान किया- 'आडवाणी के पीएम बनने के बाद किसी ने पाकिस्तान का झंडा फहराने की जुर्रत की। तो गोली से उड़ा देंगे।' राजनाथ ने कांग्रेस से सवाल किया- 'रामसेतु सच नहीं। राम हुए या नहीं। अगर यह भी सच नहीं। तो गांधी कौन सा रामराज चाहते थे। गांधी ने मरते समय हे राम क्यों कहा।'
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