अमेरिका ने नया इतिहास लिख दिया। वोटरों का उत्साह बिल्कुल वैसा था। जैसा अपन ने इमरजेंसी के बाद 1977 में भारत में देखा। तब भारत में पहली बार कांग्रेस का सूपड़ा साफ हुआ। ठीक उसी तरह 219 साल बाद अमेरिका में नया इतिहास लिखा गया। कोई सोच नहीं सकता था- व्हाइट हाऊस में ब्लैक राष्ट्रपति बैठेगा। दो साल पहले जब चुनाव मुहिम शुरू हुई। तो डेमोक्रेट के कई शुरूआती उम्मीदवारों के बाद दो टिके रह गए। हिलेरी क्लिंटन और बाराक हुसैन ओबामा। उधर रिपब्लिकन उम्मीदवार मैककेन तय हो गए। तो साफ था- 'जीते कोई भी, नया इतिहास तो बनेगा ही।'
आज तक कभी महिला राष्ट्रपति नहीं हुई। आज तक कभी ब्लैक राष्ट्रपति नहीं हुआ। आज तक कभी 72 साल का राष्ट्रपति नहीं हुआ। महिला का पत्ता पहले ही कट गया था। बहत्तर साल का अब जाकर कटा। आखिर अमेरिका का ब्लैक राष्ट्रपति हो गया। वह भी दो तिहाई बहुमत से। जनता पार्टी को भी 1977 में दो तिहाई बहुमत मिला था। अब कांग्रेस की फिक्र फिर बढ़ेगी। अमेरिका जैसी क्रांति भारत में हुई। तो कांग्रेस का क्या होगा। मायावती भारत की बाराक ओबामा बनने की तैयारी में। भारत में महिला प्रधानमंत्री तो रह चुकी। पर दलित प्रधानमंत्री नहीं बनी। दलित महिला का पीएम बनना बाराक ओबामा जैसा ही होगा। अपन बाराक ओबामा की फिक्र करने वाली नीतियों की चर्चा करेंगे। पर पहले कांग्रेस की मौजूदा फिक्र की बात। बात देश में बढ़ रहे आतंकवाद की। लोगों के भर रहे सब्र के प्याले की। आतंकवाद के खिलाफ शुरू हुई प्रतिक्रिया की। लेफ्टिनेंट कर्नल श्रीकांत पुरोहित की गिरफ्तारी इसका सबूत। अदालत से दस दिन का रिमांड लिया गया। आरोप है- 'मालेगांव विस्फोट में मदद देने का।' गृहराज्यमंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल बोले- 'गंभीर फिक्र की बात। सबूत के बाद ही लेफ्टिनेंट कर्नल को गिरफ्तार किया गया। सांप्रदायिक ताकतों की ओर से देश को तोड़ने की साजिश।' पर सोनिया से लेकर मनमोहन तक। शिवराज पाटिल से लेकर श्रीप्रकाश जायसवाल तक। दिग्विजय सिंह से लेकर शकील अहमद तक। इस गंभीरता को कोई नहीं समझ रहा। अपन ने 28 अक्टूबर को लिखा था- 'क्या आतंकवादियों के हाथों जान गंवाने वाले फौजियों का शासन से भरोसा उठ चुका।' अगर सचमुच मालेगांव में विस्फोट हिंदुओं ने किए। अगर लेफ्टिनेंट कर्नल ने सचमुच विस्फोटों में मदद की। तो जायसवाल को खुद इसकी गंभीरता का अहसास नहीं। वह इसे सांप्रदायिक नजरिए से देखने को बाजिद। आतंकवादियों के तुष्टिकरण की नीति का नतीजा मानने को तैयार नहीं। जिसने फौजियों के सब्र का प्याला भी भर दिया। सरकार भले ही इसे आतंकवाद कहे। पर है यह आतंकवादी वारदातों की प्रतिक्रिया। जैसे गोधरा ट्रेन पर हुए आतंकी हमले की गुजरात में प्रतिक्रिया हुई। सरकार की नीतियां हिंदू-मुसलमानों को आमने-सामने खड़ा कर देंगी। यह देश के लिए सचमुच गंभीर फिक्र की बात। पर फिलहाल फिक्र बाराक ओबामा की कश्मीर नीति की। क्या ओबामा अहमद रशीद और शुजा नवाज की सलाह पर कश्मीर पर बोले। इन दोनों ने अपनी किताब- 'क्रास्ड स्वाड्रस' में लिखा है- 'पाकिस्तान तब तक आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में दिल से अमेरिका की मदद नहीं करेगा। जब तक वह कश्मीर समस्या हल नहीं करता। भारत को अफगानिस्तान से बाहर नहीं किया जाता।' ओबामा ने चुनाव से ठीक पहले कश्मीर और अफगानिस्तान पर यही बयान दिया। यह मनमोहन सरकार के लिए भले न हो। पर अपन के लिए सचमुच फिक्र की बात। बात फिक्र की चल ही पड़ी। तो कांग्रेस और मनमोहन के लिए सबसे बड़ी फिक्र कुर्सी बचाने की। पहले जार्ज बुश के सहयोगी टोनी ब्लेयर को कुर्सी गंवानी पड़ी। फिर परवेज मुशर्रफ का बिस्तर गोल हुआ। अब अमेरिका ने ही बुश की रिपब्लिकन पार्टी का बाजा बजा दिया। मायावती को भारत की बाराक ओबामा बनाने का बीड़ा उठाने वाले प्रकाश करात ने मौका देख मनमोहन पर फब्ती कसी- 'अब तेरा क्या होगा....।'
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