मैककेन जीत गए,तो बूथ कैपचरिंग न कहें ओबामा

Publsihed: 04.Nov.2008, 20:39

अपना चुनाव आयोग उम्मीदवारों को डंडा न दिखाता। तो कोई अपना बहीखाता न खोलता। कोई अपने कर्म-कुकर्म कतई नहीं बताता। अपनी शिक्षा-दीक्षा को भी छुपाते रहते। यों झूठ बोलने वालों की अब भी कमी नहीं। कांग्रेस के सांसद मणिकुमार सुब्बा को ही लो। तीन जगह अपना जन्मदिन अलग-अलग बताते पकड़े गए। अब सीबीआई ने कोर्ट में बताया है- 'सुब्बा भारत का सिटीजन ही नहीं।' गलत जानकारी देने में सोनिया गांधी भी पीछे नहीं। उनने खुद को ग्रेजुएट बताया। सुब्रह्मण्यम स्वामी ने चुनौती दी।

तो सोनिया ने अपनी गलती सुधारी। पर अमेरिका में देखो कितनी ट्रांसप्रेंसी। एक-दूसरे के बाल की खाल निकाल लेते हैं। पर कोई चूं तक नहीं करता। डेमोक्रेट खेमे से साराह पालिन की बीमारी पर सवाल उठा। तो मंगलवार को उनकी फेमिली हेल्थ कंपनी ने हिस्ट्री जारी कर दी। कब-कब अस्पताल गईं। कब-कब बच्चे पैदा हुए। कितने-कितने वजन के हुए। ब्लड प्रेशर, नाड़ी की रफ्तार सब कुछ बताया। यह किया गया बाराक ओबामा पर सवाल खड़ा करने के लिए। सवाल खड़ा किया गया- 'ओबामा की मां कैंसर से मरी, दादी कैंसर से मरी। तो ओबामा भी अपना हेल्थ प्रोफाइल जारी करें।' आखिरी दिन की हरकतें अपन जैसी ही। अपने बीकानेर में धर्मेन्द्र और हेमा को लेकर जैसी फजीहत की गई। कुछ वैसी ही अमेरिका में भी हुई। ओबामा का पूरा नाम बाराक हुसैन ओबामा। यानी ओबामा मुसलमान। अपने यहां सांप्रदायिकता भले कितनी हो। पर कोई किसी के धर्म पर सवाल नहीं उठाता। चुनाव में किसी ने सोनिया पर यह सवाल नहीं उठाया। प्रियंका-राहुल पर उठाने का तो सवाल ही नहीं। अपने यहां पिता की धर्म-जाति को ही मान्यता। पर अमेरिका में ऐसा जरूरी नहीं। ओबामा के पिता केन्याई मुसलमान थे। पर ओबामा को चुनाव प्रचार में सफाई देनी पड़ी। उनने जैविश लीडर के सामने पेश होकर सफाई दी- 'मैं मुसलमान नहीं हूं। मैं ईसाई हूं।' अमेरिका में कोई मुसलमान होकर राष्ट्रपति नहीं बन सकता। ब्लैक भले ही बन जाए। जहां तक बात ब्लैक राष्ट्रपति होने की। तो बताते जाएं- छह फीसदी गोरों ने आखिरी दिन तक अपना मन नहीं बनाया था। छह फीसदी तो रुझान बदलकर रख देंगे। कांटे की लड़ाई का जिक्र अपन आगे करेंगे ही। पर पहले अपन कुछ दिलचस्प बातें बताते जाएं। आज पूरे अमेरिका में वोटिंग। व्हाइट हाऊस की दौड़ में पच्चीस उम्मीदवार थे। दोनों को अपनी-अपनी पार्टियों के उम्मीदवारों से जूझना पड़ा। ओबामा को हिलेरी क्लिंटन से 21 जगह बहस करनी पड़ी। मैककेन को मिटरोमे, हकबी और माइक से 15 बहसें करनी पड़ी। जब उम्मीदवारी तय हो गई। तो ओबामा और मैककेन में तीन खुली बहसें हुई। इन तीनों बहसों में दोनों तरफ से 45 हजार शब्द बोले गए। पर इन बातों से ज्यादा दिलचस्प बातें। ओबामा के लिए 64 करोड़ 15 लाख डालर इकट्ठे हुए। जिसमें से ओबामा ने 15 अक्टूबर तक 5 करोड़ 64 लाख डालर खर्च किए थे। सबसे ज्यादा खर्चा 2 करोड़ 40 लाख डालर मीडिया पर हुआ। वैसे ओबामा 900 डालर के पीजा खा गए। अब बात मैककेन की। तो उन्हें मिले 5 करोड़ 64 लाख डालर। उनने 15 अक्टूबर तक खर्च किए थे सिर्फ 2 करोड़ 62 लाख डालर। यही है ओबामा और मैककेन की आर्थिक नीति। ओबामा का जोर खर्चे पर। मैककेन का जोर बचत पर। मैककेन ने मीडिया पर खर्च ओबामा से आधा भी नहीं किया। कुल खर्चा एक करोड़ 16 लाख डालर। उनने पीजा भी सिर्फ 550 डालर के खाए। अपन बात कर रहे थे कांटे की टक्कर की। तो याद होगा पिछली बार फ्लोरिडा में कैसे कांटे की टक्कर हुई। कितनी बार वोटों की गिनती करनी पड़ी। आखिर कोर्ट ने फैसला किया। अबके ऐसा हुआ। खुदा-ना-खास्ता मैककेन जीत गए। तो ओबामा खेमा जीत चुराने, बूथ लूटने, हेरा-फेरी का आरोप लगाएंगे। अपने यहां से कहीं कम नहीं अमेरिका।

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