असम बम धमाकों के तार चीन तक जा जुड़े। शिवराज पाटिल की होम मिनिस्ट्री के इस खबर ने होश उड़ा दिए। पाक-बांग्लादेश के बाद अब चीन भी आतंकवाद में शामिल। अपन को तीनों तरफ से घेरने की साजिश। चीन को न तो न्यूक्लियर डील पसंद आई। न चंद्रयान अभियान। असम बम धमाकों का आरडीएक्स चीन से आया। यह खुलासा होम मिनिस्ट्री के एक जिम्मेदार सज्जन ने किया। पर अपनी मनमोहन सरकार इस सुराग को दबाने की फिराक में। मनमोहन सरकार का सारा जोर हिंदू नेताओं को घेरने-फंसाने का।
मुंबई की एटीएस ने सारा जोर लगा लिया। सारे टेस्ट कर लिए। मिला कुछ नहीं। तो अपन को अब साफ लगने लगा- बाटला हाऊस मुठभेड़ के बाद लालू-पासवान-मुलायम के दबाव में साजिश रची गई। बाटला हाऊस केस को पूरी तरह रफा-दफा करने की कोशिश भी। बाटला हाऊस की बात चली। तो बताते जाएं- जिस फ्लैट में आतंकी मारे, पकड़े गए। उस फ्लैट के केयर टेकर अब्दुल रहमान की सोम को जमानत हो गई। अपन नहीं जानते, यह कैसे हुई। अब्दुल रहमान ही था- जिसने फ्लैट मालिक के फर्जी दस्तखत करके आतंकियों को फ्लैट की चाबी दी थी। यह बात अपन नहीं कह रहे। फ्लैट के मालिक मोहसिन निसार ने कही थी। मुठभेड़ की बात चल पड़ी। तो बता दें- अहमदाबाद में पकड़ा गया था अबू बशीर। उसी ने दिल्ली के विस्फोटों का राज खोला। बशीर को दिल्ली लाया गया। वह खुद 18 सितम्बर को पुलिस को यह फ्लैट दिखाकर लाया था। अगले दिन पुलिस ने दबिश दी। अब बात यूपीए के दबाव में हिंदुओं को बदनाम करने की। सिर्फ अपन को नहीं। अब तो यह कोर्ट को भी लगने लगा। कोर्ट ने सोमवार को प्रज्ञा ठाकुर का पुलिस रिमांड नहीं बढ़ाया। अलबत्ता ज्यूडिशियल रिमांड में भेज दिया। एटीएस के झूठ की पोल खुलनी शुरू हो गई। कांग्रेस आतंकवाद पर सुधरने के मूड में नहीं। अफजल को बचाने, प्रज्ञा ठाकुर को फंसाने की रणनीति। यों मनमोहन ने असम जाकर सफाई दी- 'हम आतंकवाद पर साफ्ट नहीं।' करनी और कथनी में फर्क बताने की जरूरत नहीं। साफ्ट न होते। तो पोटा न हटाते। साफ्ट न होते। तो गुजरात, मध्यप्रदेश, राजस्थान के मकोका जैसे बिलों को मंजूरी दे देते। साफ्ट न होते। तो अफजल को फांसी हो चुकी होती। असल में कांग्रेस को आतंकवाद की उतनी फिक्र नहीं। जितनी वोट बैंक की। अपन ने नहीं, यह कांग्रेस ने कहा था- 'पोटा मुस्लिम विरोधी।' क्या कोई कानून किसी खास धर्म वालों के खिलाफ होता है। सख्त कानून की कमी अब लेफ्टियों को भी समझ आने लगी। वृंदा करात का बयान सुनकर अपन दंग रह गए। बोली- 'कांग्रेस ने हमें सोचने का वक्त ही नहीं दिया। पोटा जल्दबाजी से रद्द करा लिया।' लेफ्टियों ने अपनी ऐतिहासिक गलती कुछ इस तरह मान ली। अब अपन लेफ्ट की क्या पोल खोलें। पोल गृहराज्यमंत्री शकील अहमद ने ही खोल दी। बोले- 'पोटा हटाने की मांग लेफ्ट की भी थी। उन्हीं के समर्थन से पोटा रद्द हुआ। लेफ्ट अब बीजेपी के हाथ में खेल रही है।' पर बात चली थी अफजल गुरु की। जो अब कांग्रेस के 'गुरुजी' हो गए। अपन कहेंगे, तो दिग्गी राजा बुरा मान लेंगे। यह बात सोमवार को गृहराज्यमंत्री के मुंह से निकली। दिग्गी ने अफजल गुरु के बारे में यही तो कहा था- 'न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर। कांग्रेस न फांसी के हक में, न खिलाफ।' शकील अहमद जैसे इस बयान से जल-भुन गए। सोमवार को पूछा। तो बोले- 'फैसला नम्बरवार होगा। पहले राजीव गांधी के हत्यारों का फैसला तो हो जाए। फिर अफजल 'गुरु जी' का फैसला भी हो जाएगा।' अपन देश के गृहराज्यमंत्री को याद करा दें- जनरल वैद्य के हत्यारे जिंदा-सुक्खा की अर्जी पर फैसला चौबीस घंटे में हुआ था। देश के दुश्मनों के साथ नम्बरवार फैसले नहीं हुआ करते। इतनी समझ तो दिग्गी राजा को भी होगी।
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