बेंगलुरु हो या इस्लामाबाद सवाल तो डेमोके्रसी का

Publsihed: 07.Nov.2007, 07:49

चलो, पाकिस्तान से कर्नाटक चलें। पर चलने से पहले थोड़ी सी बात पाकिस्तान की। चौथे दिन भी इमरजेंसी का विरोध जारी रहा। गिरफ्तारियां और सरकारी कहर भी जारी रहा। भारत में इमरजेंसी के समय जो भूमिका जेपी की थी। हू-ब-हू वही पाक में बर्खास्त चीफ जस्टिस इफ्तिखार मोहम्मद चौधरी की। मंगलवार को उनने आवाम से विरोध की अपील की। देशभर के वकील पहले ही सड़कों पर। जहां तक राजनीतिक नेताओं की बात। तो इमरान खान, आसमां जहांगीर, जावेद हाशमी, एतजाज हसन या तो जेलों में या घरों में बंदी। बेनजीर भुट्टो का रुख शक के घेरे में। अमेरिकी राष्ट्रपति बुश का भी।

जहां तक चुनाव की बात। तो अपन को अभी होते नहीं दिखते। इस्लामाबाद से बेंगलुरु कोसाें दूर। दिल्ली से लाहौर भी उतना दूर नहीं। जितना बेंगलुरु। पर सत्ता की जैसी लड़ाई इस्लामाबाद में। हू-ब-हू वैसी बेंगलुरु में। सवाल दोनों जगह डेमोक्रेसी का। बीजेपी-जेडीएस को दावा किए ग्यारह दिन बीत गए। पर गवर्नर रामेश्वर ठाकुर का ठौर नहीं। वह तेल की धार देखने में मशगूल। मंगवाने पर जब पहली रिपोर्ट भेजी। तो उसमें कोई सिफारिश नहीं थी। मंगलवार को दोनों दलों के सवा सौ एमएलए दिल्ली आए। तो गवर्नर खुद रिपोर्ट लेकर दिल्ली पहुंच गए। सुना है इस बार भी रिपोर्ट में कुछ नहीं। जलेबियां ही जलेबियां। जलेबियों की बात चली। तो अपन को एक किस्सा याद आ गया। जुल्फिकार अली भुट्टो जब विदेश मंत्री के नाते पहली बार दिल्ली आए। तो स्वर्ण सिंह अपने विदेश मंत्री थे। गुफ्तगू के बाद एक खबरची ने भुट्टो से पूछा- 'क्या बात हुई?' तो उनने कहा- 'फिलहाल सिर्फ यह तय हुआ है- कश्मीर के स्पेलिंग के.ए.एस.एच.एम.आई.आर. हैं।' खुशदिल भुट्टो ने आगे कहा- 'आपने जलेबी तो देखी होगी। जलेबी का पता चल जाता है। वह कहां से शुरू होती है, कहां खत्म। पर आपके विदेश मंत्री स्वर्ण सिंह इमरती हैं। जिसका पता ही नहीं चलता। कहां से शुरू होते हैं, कहां खत्म।' पर अपन बात कश्मीर की नहीं। कर्नाटक की कर रहे थे। जहां के 125 एमएलए मंगलवार को दिल्ली पहुंचे। तो कांग्रेस महासचिव पृथ्वीराज चव्हाण काफी सुस्त दिखाई दिए। उनने कहा- 'कांग्रेस को बीजेपी-जेडीएस बहुमत पर कोई शक नहीं। पर सरकार के टिकाऊपन पर शक।' मजेदार बात बताएं। गवर्नर ठाकुर ने भी अपनी रपट में यही कहा। येदुरप्पा-कुमारस्वामी राष्ट्रपति प्रतिभा पाटील से मिलते। उससे पहले गवर्नर महोदय ने होम मिनिस्टर पाटील से मुलाकात की। रिपोर्ट पूरी तरह छुपाकर रखी गई। सिर्फ इतना बताया गया- गवर्नर ने वास्तविक रिपोर्ट दी। यानी कौन-कौन मिला। कब-कब मिला। क्या-क्या कहा। किसने राजभवन के बाहर क्या कहा। क्या किया। किसका बयान क्या छपा। क्या नहीं छपा। किसने कितनी देर धरना दिया। कितनी देर भाषण। सब ऐसी बातें। जिनका फैसले से कुछ लेना-देना नहीं। बकौल सुप्रीम कोर्ट फैसला सिर्फ बहुमत के आधार पर होगा। बहुमत भी राजभवन में तय नहीं होगा। अपन बताते जाएं। राष्ट्रपति भवन में भी तय नहीं होगा। फिर भी येदुरप्पा अपने अस्सी, कुमारस्वामी अपने पैंतालीस एमएलए लेकर आए। तो प्रतिभा पाटील ने कहा- 'हम इंसाफ करेंगे।' जहां तक इंसाफ की बात। तो अगर कांग्रेस अक्लमंद होगी। तो सत्र से पहले अपना सिर कडाही में नहीं डालेगी। वैसे भी सरकार ज्यादा दिन नहीं चलनी। आप इसी से अंदाजा लगा लीजिए। देवगौड़ा के चार एमएलए दिल्ली नहीं आए। देवगौड़ा राष्ट्रपति भवन में परेड के खिलाफ थे। उनने यहां तक कहा- 'परेड का बीजेपी देशभर में फायदा उठाएगी।' पर जेडीएस एमएलए नहीं माने। आखिर में देवगौड़ा ने कहा- 'जो करना है, करो। मैं और कुछ नहीं कह सकता।' बाप को दु:खी देख बेटा एचडी रेवन्ना रुक गया। रेवन्ना के पांव थम गए। तो स्टेट पार्टी अध्यक्ष मराजुद्दीन, बीसी पाटील और पुट्टे गौडा भी रुक गए। यही बात तो गवर्नर ने कही। बहुमत में शक नहीं। पर सरकार के टिकाऊपन पर शक।

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