संसद तो गिरती-लुढ़कती ही दिखी। लोकसभा की तो अब चली-चली की वेला। अपन ने 21 अक्टूबर को ही लिखा था- 'अपन को आशंका मानसून सत्र के ही आखिरी होने की।' वह लक्षण अब साफ दिखने लगे। अपन ने लोकसभा चैनल पर सोमनाथ चटर्जी का इंटरव्यू देखा। तो अपना माथा और ठनका। अब तक किसी स्पीकर ने ऐसे इंटरव्यू नहीं दिया। उनने अपने कार्यकाल के फैसलों की सफाईयां दी। सीपीएम से नाता टूटने पर भी अपना पक्ष रखा। पर बुधवार को संसद के अलावा भी दो बड़ी घटनाएं हुई।
सबसे बड़ी घटना तो हुई चंद्रयान-एक की। चंद्रमा पर अपना तिरंगा पंद्रह दिन बाद फहर ही जाएगा। अमेरिका-रूस-चीन-जापान-यूरेपियन यूनियन पहले ही फहरा चुके। अपन चंद्रयान-एक की कथा तो सुनाएंगे ही। पहले बात दूसरी घटना की। ठाकरे परिवार का पहला बंदा चौबीस घंटे जेल रह आया। बाल ठाकरे को जिंदगीभर जेल नसीब नहीं हुई। वैसे वह नेता ही क्या, जो जेल न जाए। सो राज ठाकरे नेता बनने की पहली सीढ़ी पर चढ़ गए। राज को जेल भेजकर अब विलासराव भले कितना इतराएं। पर महाराष्ट्र को हिंसा की आग में झोंकने के जिम्मेदार भी वही। राज को नेता बनाने का श्रेय अपन कांग्रेस के सिवा किसी और को नहीं दे सकते। बाल ठाकरे ने 'मराठी मानुस' के नाम पर प्रतिभा ताई को समर्थन दिया। तो कांग्रेसी फूले नहीं समाए थे। राज ठाकरे सालभर से 'मराठी मानुस' राग अलाप रहे थे। तो कांग्रेस-एनसीपी चुप्पी साधे रही। वजह थी- राज ठाकरे जितना मजबूत होंगे। उतनी शिवसेना ही कमजोर होगी। सो नुकसान बीजेपी-शिवसेना का होगा। भगवा परिवार के वोट बंटेंगे। तो कांग्रेस फायदे में रहेगी। यह सोचकर राज ठाकरे को हवा देते रहे। लालू यादव ने राज की महाराष्ट्र निर्माण सेना पर पाबंदी की मांग की। तो कांग्रेस लालू की मांग से सहमत नहीं हुई। मनीष तिवारी बोले- 'राज को बिना वजह हवा दी जा रही है। इसकी जरूरत नहीं।' अपन जानते हैं- पाबंदी लगी, तो कांग्रेस को फायदा नहीं होगा। सो कांग्रेस पाबंदी के हक में नहीं। यों लोकतंत्र में पाबंदी के हक में अपन भी नहीं। पर अपन सच को छुपाने के हक में भी नहीं। जैसे पूरा विजुअल मीडिया छुपा रहा है। बुधवार को हर चैनल का बिहारी पत्रकार सिर्फ बिहारी हो गया। पत्रकार कोई भी नहीं रहा। गुंडे, मवाली और गुर्गे शब्द जमकर उछाले गए। अपन ने मीडिया का नया रूप देखा। अपन बाल ठाकरे के 'सामना' की हर बात से सहमत नहीं। पर मंगलवार को 'सामना' ने वही खुलासा किया। जिसका जिक्र अपन ने भी मंगल को किया। सामना के संपादक संजय राऊत ने लिखा- 'एक्जाम सिर्फ बिहारियों की भर्ती के लिए था। बिहारियों में भी सिर्फ यादव। यूपी के यादवों के लिए भी नहीं।' सो राज ठाकरे की कार्यशैली सही नहीं। तो लालू के तौर-तरीके भी कहां ठीक। चार साल में हुई भर्ती की जांच हो जाए। राज्यवार कितनी-कितनी भर्ती हुई। जरा इसका खुलासा हो जाए। तो दूध का दूध, पानी का पानी हो जाए। मीडिया को इस पर भी गौर करना चाहिए। पर आज असल बात चंद्रयान की। जिस पर वाजपेयी सबसे ज्यादा खुश हुए। यों मनमोहन सरकार इस महंगे अभियान से सहमत नहीं थी। जैसे महंगी स्वर्णिम चतुर्भुज योजना रोक दी। नदियों का जोड़ना रोक दिया। वैसे चंद्रयान-एक को भी रोक देते। तो कोई क्या बिगाड़ लेता। वाजपेयी का एक काम सिरे चढ़ा। तो वाजपेयी को खुश होना ही था। वाजपेयी ने पंद्रह अगस्त 2003 को लालकिले से ऐलान किया था- 'हमारा देश अब विज्ञान के क्षेत्र में लंबी छलांग लगाने को तैयार हो रहा है। मुझे यह ऐलान करते हुए खुशी हो रही है कि भारत 2008 में चंद्रयान-एक रवाना करेगा।' सो वाजपेयी ने इसरो के अध्यक्ष माधवन नायर को बधाई दी। बधाई तो मनमोहन-सोनिया ने भी भेजनी ही थी। सो भेजी। पर जैसे एटमी ताकत वाला छठा देश बनाने का सेहरा वाजपेयी के सिर। वैसे ही चंद्र अभियान चलाने वाला छठा देश बनाने का सेहरा भी वाजपेयी के सिर। चंदा मामा अब दूर के नहीं रहेंगे। चंदा मामा अब नजदीक के हो जाएंगे।
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