अपने यहां आस्था का कोई अंत नहीं। हुजूम का हुजूम उमड़ पड़ेगा। फिर चाहे भगदड़ में जान ही चली जाए। अपन नैना देवी से चामुंडा देवी तक की भगदड क़ा जिक्र करेंगे। पर पहले अमावस्या के स्नान की बात। अपन सोमवार तड़के नैनीताल से चले। तो ढाई घंटे में मुरादाबाद पहुंच गए। इस स्पीड पर तो अपन छह घंटे में दिल्ली पहुंच जाते। पर पहले मनमोहन सरकार के टूटे-फूटे नेशनल हाइवे का फच्चर। फिर अमावस्या पर पितृ विसर्जन।
अपन गढ़गंगा से कई मील पहले गजरौला में ही अटक गए। गजरौला के नाम पर अपन को एनडी तिवारी याद आ गए। चलते-चलते वह कहानी भी सुनते जाएं। अर्जुन सिंह की नरसिंह राव से कुट्टी चल रही थी। तिवारी कांग्रेस बन चुकी थी। एक रात एनडी तिवारी गायब हो गए। पहले अफवाह फैलाई गई- नरसिंह राव ने अपहरण करवा दिया। फिर अर्जुन सिंह ने तुगलक रोड थाने में रपट करा दी। नरसिंह राव की सीटीपीटी गुल हो गई। खुफिया एजेंसियां मुस्तैद हुई। तो पता चला तिवारी गजरौला के गेस्ट हाऊस में थे। अपन उसी गजरौला में अटक गए। तो अपन को अनूपशहर-बुलंदशहर के रास्ते लौटना पड़ा। रास्ते में दादरी भी पड़ी। जहां अपन ने सोनिया की रैली की तैयारियां देखी। खैर मंगलवार को सोनिया दादरी पहुंची। तो बोली- 'मेरी यूपीए सरकार आतंकवाद के खतरों से वाकिफ। चुनौती से निपटने के लिए पूरी तरह मुस्तैद। पर मेरी पार्टी आतंकवाद पर राजनीति नहीं करती।' आतंकवाद से लड़ने की तैयारी और मुस्तैदी तो अपन बाखूबी देख चुके। सोनिया को याद नहीं होगा। उनके लाड़ले होम मिनिस्टर अफजल की फांसी के खिलाफ दलील दे चुके। पोटा हटाना आतंकवाद पर राजनीति नहीं, तो क्या था। इंडियन मुजाहिदीन मनमोहन की नीतियों का ही नतीजा। वरना पाक पच्चीस साल तो इंडियन मुजाहिदीन नहीं बना पाया। आजमगढ़ ने अपन को आत्मनिर्भर बना दिया। मनमोहन-पाटिल की गीदड़ भभकियों से अब आतंकी नहीं डरते। कोई हफ्ता खाली नहीं जाता। शनिवार को दिल्ली तो सोमवार को साबरकांठा-मालेगांव। अपन पर एक तरफ आतंकवाद का प्रकोप। तो दूसरी तरफ अपने देवी-देवता नाराज। देवियां तो खासकर ज्यादा ही नाराज। छब्बीस मार्च को मध्यप्रदेश के अशोक नगर में भगदड़ मची। रंग पंचमी के मौके पर हादसा हुआ सीता मंदिर में। फिर तीन अगस्त को हिमाचल के नैना देवी मंदिर में भगदड़ मची। कोसी का कहर अलग से बरपा। अब जोधपुर के चामुंडा देवी मंदिर में भगदड़। पांच सौ अढ़तालीस साल पुराना है मंदिर। राव जोधा ने जोधपुर बनाया। जहां चार सौ फुट ऊंची पहाड़ी पर मेहरानगढ़ किला बना। तो 1460 में किले के छोर पर कुलदेवी चामुंडा का मंदिर भी। मंदौर की राजधानी से लाई गई थी मूर्ति। मंदिर का रास्ता सिर्फ पांच फुट चौड़ा। वक्त के साथ मंदिर की मान्यता बढ़ती गई। त्यौहारों पर भीड़ भी बढ़ती गई। मंगलवार को पहला नवरात्रा था। सो तड़के ही भीड़ जमा हो गई। मंदिर के कपाट खुले। तो भगदड़ मच गई। इसी भगदड़ में मारे गए दो सौ श्रध्दालु। वसुंधरा भी नवरात्रा पर गई थी बांसवाड़ा के माता त्रिपुरा सुंदरी के दर्शन करने। वहीं पर खबर मिली। तो मौका-ए-वारदात पर पहुंची। चुनावों के मौके पर अशोक गहलोत ने कहा- 'हादसे के लिए वसुंधरा सरकार जिम्मेदार।' नैना देवी में हू-ब-हू ऐसे ही भगदड़ मची थी। तो जांच रपट में ठीकरा अधिकारियों के सिर फूटा था। उनने भीड़ को देख बंदोबस्त नहीं किया। हू-ब-हू यही चामुंडा देवी में हुआ। सिफारिश थी- 'वैष्णो देवी की तरह रजिस्ट्रेशन शुरू किया जाए। श्रध्दालुओं को दो-दो सौ के बैच में भेजा जाए।' पर ऐसे हादसे दक्षिण में क्यों नहीं होते। सबरीमाला में तो त्यौहारों में एक करोड़ से ज्यादा लोग दर्शन करते हैं। गुरुवायूर मंदिर में भी 70-80 लाख श्रध्दालु आते होंगे। तिरुपति में तो सारा साल हर रोज लाखों श्रध्दालु आते हैं। प्रशासन जरा दक्षिण में जाकर सीख आए। नहीं तो वैष्णो देवी में ही ट्रेनिंग ले आए। और नहीं तो जगमोहन से ही प्रबंधन का गुर सीख ले।
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