कोई मां नहीं चाहती, उसका बेटा आतंकवादी बने। बेटा हत्यारा हो जाए। तो कोई मां जल्दी से भरोसा नहीं करती। सो अब्दुस सुभान कुरैशी उर्फ तौकीर की मां जुबैदा भी कैसे भरोसा करे। अपन ने सोलह सितंबर को तौकीर का जिक्र किया। विप्रो में कम्प्यूटर इंजीनियर था। इस्तीफा देकर अचानक गायब हो गया। इस्तीफे की वजह लिखी- 'धार्मिक स्टडी करना चाहता हूं।'
बाद में पता चली उसकी धार्मिक स्टडी। यों तो शिवराज पाटिल ने खुफिया एजेंसियां भरोसे लायक नहीं छोड़ी। सारा ढांचा तहस-नहस कर दिया। पर टूटी-फूटी एजेंसियों का कहना है- 'तौकीर ने पाकिस्तान जाकर ट्रेनिंग ली।' यों तौकीर के बारे में पहले खुफिया तंत्र बेखबर था। गुजरात पुलिस ने सबसे पहले इस नाम का खुलासा किया। पाकिस्तानी ट्रेनिंग की बात अपन बाद में करेंगे। शिवराज पाटिल की बात चल पड़ी। तो पहले पाटिल की ही बात। उनने कहा है- 'मैं तेरह घंटे बाद नहा लेता हूं। कपड़े बदल लेता हूं, कोई गुनाह तो नहीं करता।' झूठ बोलने की भी हद। उस दिन जब बम धमाकों से लोग कराह रहे थे। आपने तीन घंटे में तीन सूट बदले। आप चाहें तो दिन में तीस बदलिए। सफेद, भूरा, सलेटी, काला, कोई भी बदलिए। हर सूट पर खून के घब्बे हैं। अब बात तौकीर की मां जुबैदा की। बुधवार को मुंबई में मीडिया के सामने आई। आजकल उतने लोग आतंकियों के खिलाफ सामने नहीं आते। जितने आतंकियों के समर्थन में सामने आने लगे। तीस्ता सीतलवाड से लेकर माजिद मेनन तक। पीयूसीएल से लेकर पीयूडीआर तक न जाने कितने संगठन। आतंकियों के ऐसे ही हमदर्दों ने जुबैदा की प्रेस कांफ्रेंस करवाई। वह बोली- 'मेरा बेटा बेगुनाह। हमारी अच्छी बेकग्राउंड। वह ऐसा काम नहीं कर सकता। सात साल से वह घर नहीं आया। तीन साल से पत्नी को नहीं मिला।' कितना कांट्राडिक्ट्री है बयान। जुबैदा को पता है- उसका बेटा गुनाहगार है। तभी तो सात साल से अंडरग्राउंड। पर आतंकवादियों के हमदर्द बेगुनाह बताने पर उतारू। इसरत जहां का किस्सा कौन भूलेगा। पंद्रह जून 2004 को गुजरात में नरेंद्र मोदी को मारने आई थी। मुंबई की वह कालेजिएट लड़की मुठभेड़ में मारी गई। एनसीपी-एसपी के नेताओं ने इसरत जहां की मां को एक-एक लाख दिया। पीयूडीआर, पीयूसीएल जैसों ने जांच कर के मुठभेड़ को फर्जी बताया। पर लश्कर-ए-तोएबा का पाकिस्तान से बयान आया- 'इसरत हमारे लिए काम करती थी।' अब तौकीर की हमदर्दी भी ठीक उसी तरह। पर अपन बात कर रहे थे तौकीर की पाकिस्तान से ट्रेनिंग की। अपन ने अमेरिका को पाक ट्रेनिंग कैंपों के दर्जनों सबूत दिए। पर मनमोहन ने सब गुड़ गोबर कर दिया। कहा- 'पाकिस्तान भी भारत की तरह आतंकवाद का शिकार।' ऐसी चापलूसी नेहरू ने भी चीन की नहीं की थी। शुकर है मनमोहन को अब गलतियों का एहसास होने लगा। 'पाटिल' की जगह 'पटेल' और 'पोटा' की जरूरत महसूस होने लगी। आतंकियों को पाकिस्तान की शह दिखने लगी। गवर्नरों के सम्मेलन में बुधवार को बोले- 'पाकिस्तानी आतंकी भारत में गड़बड़ियां कर रहे हैं। ताजा बम धमाकों में लोकल आतंकी भी शामिल। यह खतरे का नया मोड़।' देर से ही सही। पीएम ने यह बात कबूल कर ली। पर पर इसका जिम्मेदार कौन। आप आतंकियों का तुष्टिकरण करेंगे। तो वे क्यों नहीं फले-फूलेंगे। नरेंद्र मोदी बता रहे थे- 'सरकार सिमी पर नरम रही। सो सिमी ने इंडियन मुजाहिद्दीन बना ली।' जो काम लश्कर-ए-तोएबा 25 साल में नहीं कर सकी। मनमोहन की तुष्टिकरण नीति ने चार साल में कर दिया। अब खुफिया एजेंसियों पर नजला उतारने का क्या फायदा। बोए पेड़ बबूल का, तो आम कहां से होय। जेसी नीति अपनाई, जैसा होम मिनिस्टर बनाया। खुफिया एजेंसी भी वैसी ही बन गई। मनमोहन बोले- 'खुफिया एजेंसियों में तालमेल नहीं। खुफिया तंत्र फेल हो गया।' पर खुफिया तंत्र को तो बेमौत मारा खुद होम मिनिस्टर पाटिल ने। अपन ने 15 सितम्बर को लिखा था- 'अपना खुफिया विभाग बेमौत मर गया। जब सरकार का इरादा खुफिया जानकारियों के इस्तेमाल का ही न हो। तो बेचारे खुफिया कर्मचारी क्या करें। अपन को एक खुफिया अफसर बता रहा था- खुफिया रपटों पर गंभीर चर्चा अब बंद हो चुकी।'
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