दिया जब रंज आतंकियों ने, तो पोटा याद आया

Publsihed: 17.Sep.2008, 06:27

मनमोहन पच्चीस को बुश के साथ एटमी करार करेंगे। अगले ही दिन संयुक्त राष्ट्र के कटघरे में। संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद ने 28 सितम्बर 2001 को दुनियाभर से कहा- 'आतंकवाद से निपटने के लिए सख्त कानून बनाए जाएं।' वाजपेयी ने जरा देर नहीं की। पच्चीस अक्टूबर को अब्दुल कलाम से आर्डिनेंस जारी करवा दिया। वही पोटा हटाकर  मनमोहन किस मुंह से आतंकवाद के खिलाफ बोलेंगे। अपने अभिषेक मनु सिंघवी अभी भी कहते हैं- 'पोटा की कोई जरूरत नहीं। मौजूदा कानून ही काफी।' पर बताएं तो सही- कौन सा कानून।

दंतहीन अवैध गतिविधि कानून या राष्ट्रीय सुरक्षा कानून। इन कानूनों की पोल खुद वीरप्पा मोइली ने खोल दी। मंगलवार को वीरप्पा मोइली ने आतंकवाद पर रपट जारी की। कांग्रेसी राज अपने नेताओं की घोड़ा-गाड़ी का बंदोबस्त करने में एक्सपर्ट। कांग्रेस के इस मीडिया प्रभारी का सारा खर्चा सरकार उठा रही है। दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग का अध्यक्ष बनाकर। मंगलवार को उनने आठवीं रपट जारी की। सात रपटें पहले ही धूल चाट रही हैं। आठवीं रपट से कांग्रेस में बवाल हो गया। रपट में कहा है- 'आतंकवाद के खिलाफ प्रभावशाली कानूनी बंदोबस्त हों।' यानी मौजूदा बंदोबस्त नाकाफी। यानी अभिषेक का दावा गलत। कांग्रेस ने 'पोटा' को मुस्लिम विरोधी बताकर देश से कितना बड़ा खिलवाड़ किया। अब यह कांग्रेसियों को भी समझ आने लगा। सो कांग्रेस में भी सुगबुगाहट होने लगी। हिंदू वोटों का खिसकना दिखने लगा। सो कांग्रेस में सख्त कानून की वकालत। पर थूककर कैसे चाटें। सो वीरप्पा मोइली ने भी पोटा की तो मुखालफत ही की। कोई बात नहीं, आप कोई नाम रख लीजिए। नाक का सवाल बनाकर देश को नरक न बनाइए। देश की जनता पर रहम करिए। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार की न मानिए। जिनने आतंकवाद विरोधी कानून की वकालत की। जो गुजरात में गुजकोका के भी हिमायती। कम से कम मोइली की तो सुनिए। राष्ट्रीय सुरक्षा कानून 1980 को ही सुधार लीजिए। उसमें पकड़े आतंकी की जमानत न हो सके। यों खुफिया एसेंजियां भी ऐसे सख्त कानून की हिमायती। जिसमें कंफेशन को अदालत में मान्यता मिले। जिसमें टेलीफोन टेप को सबूत माना जाए। पर अपने शिवराज पाटिल के कान पर जूं नहीं रेंगी। अब जब कुर्सी पर खतरा मंडराया। तो मंगलवार को बोले- 'नए सख्त कानून पर विचार को तैयार।' इसे कहते हैं- 'दिया जब रंज अपने आतंकियों ने तो पोटा याद आया।' पाटिल तीन बार कपड़े बदलने की आलोचना पर भड़के हुए थे। बोले- 'मैं साफ-सुथरा रहता हूं। तो यह आलोचना का मुद्दा नहीं।' तो जो तीन बार कपड़े नहीं बदलते, वे गंदे रहते हैं? महात्मा गांधी तो तीन बार कपड़े नहीं बदलते थे। उनके पास तो दो जोड़ी कपड़े ही थे। वह कितने गंदे रहते होंगे। पाटिल को कपड़े बदलने का इतना ही शौक। तो वह मॉडलिंग क्यों नहीं करते। जितनी बार रैंप पर आएंगे। कपड़े बदलने का मौका मिलेगा। पर अपन मुद्दे की ही बात करें। कांग्रेस और पाटिल आतंकवाद पर गंभीर होते। तो पोटा कभी रद्द नहीं करते। अब भी पोटा पर कांग्रेस की वैसी ही दुविधा। जैसी एटमी करार पर बीजेपी की। सौ चूहे खाकर बिल्ली हज को कैसे जाए। सो पीएम के स्टेट मिनिस्टर पृथ्वीराज चव्हाण बोले- 'पोटा से आतंकवाद की समस्या हल नहीं होगी।' आप चव्हाण से पूछिए- 'बलात्कार के खिलाफ कानून से बलात्कार नहीं रुके। चोरी विरोधी कानून से चोरियां नहीं रुकी।' तो क्या सरकारें कानून बनाना छोड़ दें। जिसकी लाठी उसकी भैंस हो जाए। कांग्रेस और चव्हाण का जोर अब फेडरल जांच एजेंसी पर। जिसे कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों ने एनडीए राज में ठुकराया। सो भाजपाईयों ने भी अबके जैसे को तैसा वाला रुख अपनाया। पाटिल ने मीटिंग बुलाई। तो अबके भाजपाई सरकारें अकड़ गईं। बोली- 'पोटा के बिना फेडरल एजेंसी किस काम की?' सो अब कांग्रेस का इरादा चोर दरवाजे से फेडरल एजेंसी का। सीबीआई में आतंकवाद विरोधी सूचना और जांच एजेंसी की योजना। चव्हाण बता रहे थे- 'आतंकवाद के लिए कोई ढांचा बनेगा।' अब तो बनाना ही होगा। वरना चुनावों में जूते मारेगी जनता।

आपकी प्रतिक्रिया