अपने अभिषेक मनु सिंघवी को बधाई। मनमोहन सिंह की जिम्मेदारी अब उनके कंधे पर। सोमवार को शिवराज पाटिल पर इस्तीफे का दबाव बना। तो सिंघवी बोले- 'पाटिल से किसी ने इस्तीफा नहीं मांगा। वह होम मिनिस्टर बने रहेंगे।' अपन पाटिल से तो लाल बहादुर शास्त्री बनने की उम्मीद रखते ही नहीं। पर अपन समझते थे- पाटिल का फैसला मनमोहन सिंह के हाथ। पर अब वह सिंघवी तय करेंगे। तो मनमोहन सिंह का क्या काम। पीएम की हैसियत क्या हो गई।
इसका अंदाज सिंघवी के बयान से ही मत लगाइए। लालू भी पाटिल के खिलाफ पीएम से नहीं मिले। अलबत्ता सोनिया गांधी से जाकर मिले। मनमोहन सिंह कितने भी दबाव में हों। पाटिल को हटाने का फैसला खुद नहीं कर सकते। उनने पाटिल को होम मिनिस्टर बनाया ही कहां। उन्हें होम मिनिस्टर बनाना होता। तो वह किसी चुने हुए सांसद को बनाते। कम से कम हारे हुए को नहीं। मनमोहन के हाथ में पाटिल को हटाना होता। तो उनके पास दस मौके पहले भी आए थे। वाशिंगटन के नेशनल काउंटर टेरिरिज्म सेंटर ने कहा है- 'यूपीए राज में आतंकी वारदातों ने 3674 जानें ली।' होम मिनिस्टरी के किसी अफसर से पूछ लीजिए। वह आपको पाटिल की लापरवाहियां गिनाएगा। वह बताएगा- 'पाटिल से आतंकवाद पर कभी भी बात कर लीजिए। वह गंभीरता नहीं दिखाते।' पर अपन को इस दौर में एक गंभीर होम मिनिस्टर की दरकार। कांग्रेस को पाटिल के पल-पल कपड़े बदलने पर कोई मलाल नहीं। कांग्रेस अब अपने नेताओं में गांधी जैसी सादगी नहीं चाहती। जब गांधी टोपी की जगह हैट आ गया। तो गांधीवादी सादगी का क्या काम। पर अपन बात कर रहे थे लालू की। सिमी के हमदर्द लालू आतंकवाद पर छटपटाए। तो अपन को हैरानी हुई। लालुओं, मुलायमों, पासवानों की सरपरस्ती न होती। तो सिमी कभी भी इंडियन मुजाहिद्दीन खड़ी न कर पाती। अब्दुल सुभान कुरैशी जैसे कम्प्यूटर इंजीनियर आतंकवादी न बनते। अब कोई यह नहीं कह सकता- शिक्षा कट्टरपंथ को खत्म कर सकती है। कोई सोनिया-मनमोहन राज के चार सालों की उपलब्धि पूछे। तो अपन कहेंगे- 'अब तक आतंकवाद पड़ोसी देश से चलता था। अब आतंकवादी खुद अपने ही देश के।' अब अपन दुनियाभर में जाकर यह नहीं कह सकते- 'सीमापार से आतंकवाद पर नकेल लगाई जाए।' सोमवार को मोदी की पुलिस धमाकों की तह में जाने लगी। तो मोहम्मद उमर-किशोर जाफर धरे गए। पांच और नाम सामने आए- तौकीर, कयामुद्दीन, मुजीब, अब्दुल रज्जाक और आलमगीर। बात मोदी की चली। तो अपने अभिषेक मनु सिंघवी भड़क गए। बोले- 'उनने आतंकी हमले की जानकारी दी होती, तो हम उनके आभारी होते।' देखा, पीएम की जिम्मेदारी अपने कंधों पर लेते हुए। मोदी ने कहा था- 'मैं जब पीएम से मिला। तो उन्हें बताया था- अगला हमला दिल्ली पर होगा।' अगर मोदी ने यह जानकारी नहीं दी। तो मनमोहन सिंह खंडन क्यों नहीं करते। मोदी ने सिंघवी से तो कुछ नहीं कहा था। सिंघवी तो पाटिल के कपड़े बदलने पर ही खुश होते रहें, तो ठीक। पाटिल के कपड़े बदलने का हाल तो यह रहा- आतंकियों ने जिस स्पीड से सीरियल ब्लास्ट किए। पाटिल ने उसी स्पीड से सीरियल सूट बदले। यह प्रेरणा सीरियल ब्लास्ट से ही ली होगी। पर अपन बात कर रहे थे लालू की। आतंकी संगठन सिमी के हमदर्द लालू बोले- 'होम मिनिस्टर के कपड़े बदलने से सरकार की बदनामी हो रही है। आतंकवादी वारदातें घट नहीं रही। होम मिनिस्टर गंभीरता से काम नहीं कर रहे।' लालू सोनिया से मिलकर निकले। तो इस्तीफे के दबाव की खबर फैली। सोनिया ने अपने सलाहकारों को बुलाकर सलाह की। प्रणव दा, एंटनी, वोरा, दिग्विजय, अहमद पटेल, जनार्दन द्विवेदी, मारग्रेट अल्वा। शिवराज पाटिल को नहीं बुलाया। अब भले ही अभिषेक मनु सिंघवी खंडन करें या मंडन। पाटिल का पटिया उलाल करके रहेंगे लालू। अपन भरोसेमंदों पर भरोसा बरकरार रखें। तो पाटिल की जगह एंटनी लेंगे। एंटनी की जगह पाटिल। अपने तो इस खबर से ही रोंगटे खडे हो गए। पाटिल रक्षामंत्री बन गए। तो अपनी सीमाएं भी सुरक्षित नहीं रहेंगी।
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