देवगौड़ा की टेढ़ी चालों का पता था। फिर भी बीजेपी चाल में फंस गई। तीस अक्टूबर को अपन से एक गलती हुई। असल में देवगौड़ा ने अपनी पहली वाली चिट्ठी वापस नहीं ली। बीजेपी को तभी समझ लेना चाहिए था। देवगौड़ा का मन साफ होता। तो विधानसभा भंग करने की सिफारिश वाली चिट्ठी वापस लेते। नई चिट्ठी लिखते। पर देवगौड़ा ने नई चिट्ठी गवर्नर की बजाए राजनाथ को लिखी। जिसमें ऐसी-ऐसी नई शर्तें। जिन्हें बीजेपी माने, तो मरी। न माने, तो मरी। वैसे तो स्कूल में बच्चों को भी सिखाया जाता है- 'लालच बुरी बला।'
पर बीजेपी यह बात नहीं सीखी। दक्षिण में खाता खोलने के लालच में आ गई। अपन ने तीस अक्टूबर को ही लिखा था- 'सत्ता दिखी। तो बीजेपी के मुंह में पानी आ गया। आंदोलन छोड़ राजभवन की ओर दौड़ पड़ी।' सो अपन ने तो तभी बीजेपी को लालची बता दिया था। कहते हैं ना- 'बुरे दिन आते हैं, तो बुध्दि मारी जाती है।' बीजेपी के सचमुच बुरे दिन। केंद्र में जिन्ना बवाल अब तक जारी। जो भोपाल वर्किंग कमेटी में राजनाथ-आडवाणी रूप में दिखा। कर्नाटक में अनंत-येदुरप्पा। महाराष्ट्र में मुंडे-गड़करी। राजस्थान में वसुंधरा-जसवंत। हिमाचल में शांता-धूमल। उत्तराखंड में कोशियारी-खंडूरी। मध्य प्रदेश में उमा भारती सांस नहीं लेने दे रही। गुजरात में केशुभाई पटेल। पटेल को मनाने की सारी कोशिशें नाकाम। पिछली बार जब पटेलों की रैली हुई। तो कांग्रेस प्रायोजित रैली में केशुभाई नहीं गए। पर गुरुवार को कांग्रेसी एमएलए विट्ठल रडाडिया की रैली में जा पहुंचे। गुजरात के विकास वाले मोदी के नारे पर उनने जो बोला। जरा सुन लीजिए। बोले- 'लंका में बहुत समृध्दि थी। पर रावण ने अन्याय किया, सो मारा जाना जरूरी था। अब उन लोगों को सजा देने का वक्त । जिनने किसानों से अन्याय किया।' अगर समझो तो केशुभाई ने मोदी को रावण कहा। उनने कहा- 'किसान समर्थक सरकार लानी होगी। राज्य को एक व्यक्ति की तानाशाही से मुक्त कराना जरूरी।' चुनावों के दौरान केशुभाई का कांग्रेसी स्टेज पर आना। बीजेपी के लिए खतरे की घंटी। गुजरात का असर पड़ोसी राज्य राजस्थान पर भी होगा। पर फिलहाल बात कर्नाटक की। जहां अपन को पहले से शक था- 'अनंत-येदुरप्पा गुटबाजी का फायदा उठाएंगे देवगौड़ा।' वह अब साफ दिखने लगा। बुधवार को येदुरप्पा दिल्ली से पॉजिटिव रिस्पांस लेकर गए। तो अपन को सौ फीसदी उम्मीद तब भी नहीं थी। सो अपन ने लिखा था- 'पर यहां खतरा दूसरा। कांग्रेस कहीं एमपी प्रकाश को मधु कोड़ा ही न बना दे। पता नहीं सोनिया-मनमोहन के मन में अब क्या। बिहार के बाद गोवा-झारखंड अपन को अभी नहीं भूले। पृथ्वीराज ने जैसे बुधवार को बेंगलुरु में मोर्चा खोला। अपना कांग्रेस की नियत पर शक बढ़ा।' वही हुआ। गुरुवार को केबिनेट मीटिंग हुई नहीं। राजनीतिक मामलों की केबिनेट कमेटी में मुद्दा आया नहीं। वैसे भी यह कमेटी फैसला करने के लिए नहीं। फैसला केबिनेट में होगा। यों भी गवर्नर की रपट अधूरी। उसमें सिर्फ सिलसिलेवार घटनाओं का जिक्र। जिसमें देवगौड़ा की विधानसभा भंग करवाने वाली चिट्ठी भी। गवर्नर ने साफ कर दिया- कानूनी राय वाली रिपोर्ट बाद में जाएगी। पर उससे पहले ही देवगौड़ा ने गच्चा दे दिया। राजनाथ सिंह को ग्यारह मांगों की फहरिस्त भेज दी। जिसे देख बीजेपी का पसीना छूट गया। बीजेपी अधर में लटक गई। मांगें माने, तो सरकार देवगौड़ा की गुलाम होगी। मांगें न मानें, तो सरकार ही नहीं बनेगी। यों गुरुवार को बेंगलुरु में गुफ्तगू हुई। तो दो ही शर्तें मानने वाली लगी। पहली- 'येदुरप्पा मुख्यमंत्री हों।' दूसरी- 'उप मुख्यमंत्री जेडीएस जिसे चाहे, तय करे।' अपन को तो अब शक। येदुरप्पा के सामने से कुर्सी दूसरी बार भी न खिसक जाए।
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