मनमोहन सिंह अब चीन नहीं जाएंगे। गुरुवार को जार्ज बुश का फोन आ गया। अब उसके बाद चीन जाने का क्या मतलब। गांव से कोई बंदा मुंबई जाकर अमिताभ बच्चन से हाथ मिला ले। तो कई दिन हाथ नहीं धोता। सो बुश के फोन के बाद चीन की क्या हैसियत। मनमोहन अब बाईस सितंबर को सीधे न्यूयार्क जाएंगे। चौबीस को वाशिंगटन पहुंचेंगे। पच्चीस को बुश से मुलाकात होगी।
इसी मुलाकात में वनटूथ्री एग्रीमेंट पर दस्तखत हो जाएंगे। बुश ने बुधवार रात अमेरिकी कांग्रेस को करार का मजमून भेज दिया। बुश की विदेश मंत्री कोंडालिसा राइस लॉबिंग में लग गई। बुश को चौबीस सितंबर तक अमेरिकी कांग्रेस से मंजूरी का भरोसा। सो उनने मनमोहन को फोन करके बुला लिया। एनएसजी से छूट के बाद मनमोहन की स्पीड बढ़ चुकी। अपने नवतेज सरना बोले- 'अमेरिकी कंपनियों से बात शुरू हो चुकी। फ्रांस और रूस से समझौतों की बात भी आखिरी दौर में।' सो मनमोहन अट्ठाईस सितंबर को फ्रांस जाएंगे। हाथों-हाथ फ्रांस से भी एटमी करार होगा। रूस का नंबर बाद में। आस्ट्रेलिया फिलहाल अपन को मना कर ही चुका। अपन बुश के नए खुलासे पर बाद में चर्चा करेंगे। पहले अपनी राजनीति में आने वाले बदलाव पर गौर करें। बीजेपी की वर्किंग कमेटी आज शुरू होगी। ढाई दिन बेंगलुरु में मंथन होगा। इसी बीच कांग्रेस की वर्किंग कमेटी भी कल। कांग्रेस एटमी करार पर मनमोहन का गुणगान करेगी। एनएसजी से छूट दिलाकर मनमोहन ने झंडे गाड़ दिए। भले ही अभी एनएसजी से मिली छूट का प्रस्ताव जारी नहीं हुआ। बार-बार भाषा में क्या बदलाव किया गया। वह अपन को अभी पता नहीं चला। क्या पता चुनाव तक छुपाकर ही रखा जाए। अपन अमेरिकी राष्ट्रपति बुश के नए खुलासे का बाद में जिक्र करेंगे। फिलहाल बात बीजेपी की। बेंगलुरु की वर्किंग कमेटी करार पर उलझी हुई दिखाई देगी। आडवाणी भले ही अपनी सरकार बनने पर री-नेगोशिएशन की बात करें। पर यह ख्याली पुलाव। बुश-मनमोहन पच्चीस सितंबर को चालीस साल का करार कर देंगे। तो कोई भी पीएम बने। रिएक्टरों को बंद करवाने का जोखिम नहीं उठाएगा। करार की शर्तें बाद में नहीं बदली जाती। अब बीजेपी में भी दो खेमे बन चुके। एक तरफ यशवंत सिन्हा-अरुण शौरी की जोड़ी। दूसरी तरफ आडवाणी के सलाहकार। आडवाणी के एक सलाहकार ने तो खुल्लमखुला लिख दिया- 'एनएसजी में चीन के रुख को देख बीजेपी को करार पर राय बदलनी चाहिए।' यों अपनी राय भी अब ऐसी ही। करार अब री-नेगोशिएट नहीं हो सकता। आईएईए की शर्तें नहीं बदल सकती। एनएसजी से मिली छूट अपने आप में अहम। घड़ी की सुइयां उलटी दिशा में नहीं चल सकती। सो बीजेपी को अब अपने रुख में बदलाव नहीं, तो नरमी लानी होगी। यों भी सोनिया एटमी करार को 'हर खेत को पानी' के साथ जोड़ने पर आमादा। बीजेपी को कहीं करार की मुखालफत उलटी न पड़े। लेफ्ट को क्या। लेफ्ट का वोट बैंक तो अमेरिका विरोधी। अब बात अमेरिकी शर्तों की। हाइड एक्ट की, अमेरिकी कांग्रेस को लिखी चिट्ठी की। भले ही मनमोहन-प्रणव दा उन्हें अमेरिका का अंदरुनी मामला बताएं। पर ऐसा है नहीं। अपन को यूरेनियम इसी शर्त पर मिलेगा- अपन अब एटमी हथियार नहीं बनाएंगे। एटमी हथियार बनाते पकड़े गए। तो यूरेनियम की सप्लाई बंद होगी। करार के मुताबिक रिएक्टर भी लौटाने पड़ेंगे। यों वनटूथ्री में जरूर लिखा है- करार तोड़ने के लिए एक साल का नोटिस देना होगा। पर बुश ने बुधवार की रात को क्या कहा। जरा उस पर भी गौर फरमाएं। उनने कहा- 'अगर किसी पक्ष को लगे- विचार-विमर्श के जरिए विवाद का हल नहीं निकाल सकते। तो दूसरे पक्ष को फोरन सहयोग बंद करने का हक है।' यानि एक साल के नोटिस की ज्यादा अहमियत नहीं। मनमोहन-प्रणव ने देश से बहुत कुछ छुपाया। बुश ने अमेरिकी कांग्रेस को मंजूरी के लिए भेजे ड्राफ्ट के बाद क्या कहा। मनमोहन-प्रणव दा जरा उसे गौर से पढ़ लें। उनने कहा- 'करार पर अमेरिकी परमाणु कानून और लागू होने वाले बाकी कानूनों के मुताबिक बातचीत की गई।' यानि अमेरिकी परमाणु कानून के अलावा हाइड एक्ट भी।
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