केंद्रीय मंत्री बेलगाम हो गए हैं, प्रधानमंत्री उनकी लगाम कसने में लाचार हैं। नतीजा यह निकला है कि मंत्री अपनी ही सरकार के फैसले की खुलेआम आलोचना कर रहे हैं और चुनी हुई राज्य सरकारों के खिलाफ अपने मंत्रालय से समानांतर सरकार चलाने लगे हैं।
बिहार में बाढ़ के पानी ने कहर ढाया तो वहां के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव को राजनीतिक बिसात की याद आ गई। अपने यहां हर मुद्दे को राजनीतिक चश्मे से देखने की गंभीर बीमारी पैदा हो गई है।
लालू यादव रेल मंत्रालय को अब उसी तरह अपनी बपोती की तरह चलाने लगे हैं जैसे उन्होंने बिहार के शासन को पारिवारिक बना दिया था। उन्होंने रेल मंत्रालय का बाढ़ की राजनीति के लिए ऐसे भरपूर इस्तेमाल किया जैसे बिहार के समानांतर एक सरकार गठित कर दी हो। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अपने रेल मंत्री को जिस तरह रेल मंत्रालय का बिहार सरकार के खिलाफ प्रचार करने की इजाजत दी है, वह भी लोकतंत्र में आई गिरावट का उदाहरण है। प्रधानमंत्री ने रेल मंत्रालय को बिहार की सरकार के समानांतर सरकार बनने दिया। इससे पहले कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था कि केंद्र का कोई मंत्रालय किसी राज्य सरकार के खिलाफ प्रचार अभियान का हथियार बनेगा।
केंद्र-राज्य संबंधों में टकराव की शुरूआत इंदिरा गांधी के जमाने में शुरू हुई थी जब उन्होंने अपनी सत्ता का दुरुपयोग करके अपनी पार्टी के मुख्यमंत्रियों का कठपुतली की तरह इस्तेमाल करना शुरू किया। इससे हुआ यह कि कांग्रेस के क्षत्रप कमजोर हो गए और क्षेत्रीय दलों का उदय हुआ। क्षेत्रीय दलों का उदय भी इसलिए हो पाया, क्योंकि इंदिरा गांधी ने राज्यों के क्षत्रपों को अपमानित करना शुरू कर दिया था। दक्षिण में कांग्रेस के खिलाफ आक्रोश सबसे पहले पनपा था, दक्षिण में भी तमिलनाडु अव्वल रहा। तमिलनाडु के नए नेताओं ने इंदिरा गांधी की ओर से तमिल नेताओं को अपमानित करने को तमिलनाडु और द्रविड़ अपमान का मुद्दा बना दिया। नतीजा यह निकला कि कांग्रेस तमिलनाडु में बेहद कमजोर हो गई। राजीव गांधी ने नेतृत्व के अहंकार का अवगुण अपनी मां से लिया था और उन्होंने भी आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री टी. अंजैया का बेगमपेट हवाई अड्डे पर अपमान करके आंध्र में एनटीआर को उभरने का मौका दिया। केंद्र को मजबूत करके इंदिरा गांधी और उनके परिवार ने कांग्रेस की जड़ों में ही मट्ठा डाला।
अब बात और निम्न स्तर पर चली गई है। मनमोहन सिंह की सरकार इतनी डावांडोल है कि बिना क्षेत्रीय पार्टियों के समर्थन एक मिनट नहीं चल सकती। यह अलग बात है कि कांग्रेस ने वामपंथी दलों को इस्तेमाल करके पेपर नेपकिन की तरह फेंक दिया है, लेकिन वह क्षेत्रीय दलों के साथ ऐसा नहीं कर सकती। कांग्रेस ने अब यह मान लिया है कि वह अपने बूते पर फिर से सत्ता में नहीं आ सकती इसलिए उसने क्षेत्रीय दलों को अपनी ऐसी मजबूरी मान लिया है, जिसे ढोना ही पड़ेगा। इसलिए क्षेत्रीय दलों को मनमानी करने की छूट दे दी है। भले ही ऐसा करने से संविधान और संविधान की आत्मा को कितना ही आघात लगे। पहले द्रमुक को तमिलनाडु में उसकी प्रतिद्वंदी अन्नाद्रमुक पर असंवैधानिक प्रहार करने दिए। द्रमुक से जुड़े केंद्रीय मंत्री अन्ना द्रमुक की नेता जयललिता के खिलाफ केंद्रीय सत्ता का दुरुपयोग करने में जरा परहेज नहीं करते थे। ऐसा नहीं कि यह बीमारी मनमोहन सिंह के वक्त ही पैदा हुई हो, लेकिन उनके समय इस बीमारी ने विकराल रूप धारण कर लिया है। गठबंधन सरकार तो अटल बिहारी वाजपेयी की भी थी, लेकिन मनमोहन सिंह ऐसे लाचार प्रधानमंत्री बन गए हैं जिनका अपने मंत्रियों पर कोई कंट्रोल नहीं रहा। सत्ता के लिए पहले वह दागी नेताओं को मंत्री बनाने पर मजबूर हुए और बाद में उनके इशारों पर नाचने को मजबूर हैं। स्वास्थ्यमंत्री अंबूमणि रामदास ने आयुर्विज्ञान संस्थान के डायरेक्टर वेणुगोपाल को अपने घर का नौकर समझ कर हुक्म चलाने की कोशिश शुरू कर दी थी। आयुर्विज्ञान संस्थान को वह अपने निजी नर्सिंग होम की तरह चलाना चाहते थे। सुप्रीम कोर्ट ने एक नहीं अलबत्ता कई बार फटकार लगाई, लेकिन न स्वास्थ्य मंत्री सुधरे, न प्रधानमंत्री ने उन्हें सुधरने को कहा। स्वास्थ्य मंत्री ने दो बार वेणुगोपाल को पद से हटाने की कोशिश की। एक बार तो उन्हें हटाने के लिए मंत्रिमंडल ही नहीं, अलबत्ता संसद में बहुमत का भी बेजा इस्तेमाल किया। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अपने स्वास्थ्य मंत्री को अपनी व्यक्तिगत खुन्नस निकालने के लिए पिछली तारीख से वेणुगोपाल की कार्यावधि कम करके रिटायर करने की इजाजत दी। निजी स्वार्थ और घमंड की पूर्ति के लिए संसद का इस्तेमाल करने देना मनमोहन सिंह की महान गलतियों में से एक है। सुप्रीम कोर्ट में वह कानून भी असंवैधानिक घोषित हो गया।
कम से कम जवाहर लाल नेहरू और लाल बहादुर शास्त्री के कार्यकाल तक यह शर्म बची हुई थी कि असंवैधानिक काम करते पकड़े जाने पर कोई मंत्री नहीं रह सकता था। बिहार के राज्यपाल पद का असंवैधानिक इस्तेमाल करके चुनावों के बाद वहां कोई सरकार न बनने देने और विधानसभा भंग करवाने पर सुप्रीम कोर्ट ने फटकारा तो मनमोहन सिंह ने बूटा सिंह से इस्तीफा ले लिया। जबकि उसी तरह का काम अंबूमणि रामदास ने भी किया था, लेकिन कुर्सी की अपनी मजबूरी में उनसे इस्तीफा नहीं मांगा। हालांकि दोनों ही असंवैधानिक कामों के लिए मनमोहन सिंह खुद जिम्मेदार थे। बिहार विधानसभा भंग करने का फैसला भी मनमोहन सिंह की रहनुमाई में केबिनेट ने लिया था और वेणुगोपाल का कार्यावधि घटाने के बिल को मंजूरी भी मनमोहन की रहनुमाई वाली केबिनेट ने दी थी। वेणुगोपाल के बारे में गलत फैसला करवाने का दबाव उनके मंत्री अंबूमणि रामदास का था और बिहार विधानसभा भंग करवाने का दबाव लालू यादव का था। सत्ता का बेजा इस्तेमाल करने से इन दो उदाहरणों के बाद क्षेत्रीय दलों के हौंसले कितने बढ़ गए हैं, इसका उदाहरण मुलायम सिंह की हां में हां मिलाते हुए सिमी के समर्थन में आए मंत्रियों के बयान से लगाया जा सकता है। रामविलास पासवान और लालू यादव ने सिमी पर लगे प्रतिबंध को नाजायज करार देकर अपनी ही सरकार की आलोचना की। मंत्रिमंडल की सामूहिक जिम्मेदारी के नाते कोई मंत्री अपनी सरकार के किसी फैसले की आलोचना नहीं कर सकता, भले ही केबिनेट में उसने उस फैसले का विरोध किया हो। वह सिर्फ इस्तीफा देकर ही सार्वजनिक आलोचना कर सकता है, जैसे हाल ही में नारायण सिंह राणे ने मंत्री पद से इस्तीफा देकर विलासराव देशमुख सरकार के एक औद्योगिक घराने को कौड़ियों के भाव जमीन देने पर की है। राणे ने केबिनेट बैठक में इस फैसले का विरोध किया था, लेकिन बहुमत के आधार पर फैसला हो गया तो उन्होंने मंत्री पद से इस्तीफा देकर आलोचना की। लेकिन रामविलास पासवान और लालू यादव ने मंत्री पद पर रहते हुए अपनी ही सरकार के फैसले की आलोचना की। सिमी पर ताजा प्रतिबंध यूपीए सरकार ने फरवरी 2006 में लगाया था, पांच जुलाई 2006 को सुप्रीम कोर्ट ने उसकी पुष्टि की थी।
अब लालू यादव ने अपने गृहराज्य की चुनी हुई विरोधी गठबंधन की सरकार को बदनाम करने और अपनी असंवैधानिक समानांतर सत्ता कायम करने की शुरूआत करके लोकतंत्र और संविधान को तोड़ने का नया अध्याय शुरू कर दिया है। केंद्रीय मंत्रियों की इन हरकतों पर फौरन रोक न लगाई गई तो आने वाली केंद्रीय सरकारों के मंत्री अपने राज्य में अपनी-अपनी समानांतर सरकारें गठित करनी शुरू कर देंगे। केंद्रीय मंत्री जिला कलक्टरों को हिदायत देकर राज्य सरकार के खिलाफ बेजा इस्तेमाल करना शुरू कर देंगे क्योंकि प्रशासनिक अधिकारी राष्ट्रीय प्रशासनिक सेवा के हिस्सा होते हैं। इसकी शुरूआत हो चुकी है, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने इसी इरादे से केंद्रीय मंत्रियों को गैर कांग्रेसी राज्यों में पार्टी अध्यक्ष और प्रभारी बनाकर भेजा है, ताकि प्रशासन पर दबदबा बनाने में मदद मिले।
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