येदुरप्पा अगली बार सीएम बनकर दिल्ली आएं। सो फिर हो न हो। अपन को लगा अभी मिल लिया जाए। पर येदुरप्पा के पास वक्त कहां था। दौड़ते हुए दिल्ली आए। भागते हुए बेंगलुरु लौट गए। पर पीएम से मुलाकात के बाद वेंकैया के घर पहुंचे। तो अपना मिलना तय हो गया। पीएम से मुलाकात में अच्छी खबर थी। सो खुशनुमा मूड में शॉपिंग का प्रोग्राम बना। औरंगजेब रोड से हवाई अड्डे के रास्ते में भागते-दौड़ते शॉपिंग हुई। इसी बीच एक दुकान पर येदुरप्पा से अपनी मुलाकात। खुशनुमा मूड ने अंदर की बात पूछने का मौका ही नहीं दिया। पर अपन ने फारमेल्टी के लिए पूछा- 'पीएम से कैसा संकेत मिला?'
बोले- 'पॉजिटिव।' अपन को इसी जवाब की उम्मीद भी थी। वैसे तो कांग्रेस का कोई भरोसा नहीं। इधर दिल्ली में पीएम पॉजिटिव संकेत दे रहे थे। उधर पृथ्वीराज चव्हाण बेंगलुरु में एसेंबली भंग करने की मांग कर रहे थे। जहां तक मनमोहन की बात। तो फैसला उनके हाथ नहीं। फैसला मनमोहन के हाथ होता। तो सोनिया के चीन से लौटने का इंतजार ही क्यों होता। सोनिया की हरी झंडी हुई होगी। तभी तो मनमोहन बीजेपी डेलीगेशन से मिले। हां, बात डेलीगेशन की चली। तो बताते जाएं। आडवाणी की रहनुमाई में कर्नाटक के एमपी मिले। साथ में येदुरप्पा, सदानंद गौड़ा भी थे। वेंकैया तो कर्नाटक के ही एमपी। राजनाथ भी आडवाणी की बगल में थे। सांसदों के अलावा लहर सिंह और सीएम उदासी भी डेलीगेशन में गए। एमपी के नाते अनंत कुमार भी साथ थे। वैसे अपन जानते हैं- 'दोनों में छत्तीस का आंकड़ा।' अनंत-येदुरप्पा तो एक ही पार्टी में। राजनीति में कोई परमानेंट दुश्मन नहीं। कोई परमानेंट दोस्त नहीं। यह जुमला कसते हुए सुषमा बेंगलुरु में बोली- 'जब डीएमके से गठजोड़ कर सकती है कांग्रेस। जिस पर राजीव की हत्या का आरोप लगाया। तो जेडीएस-बीजेपी का दुबारा गठजोड़ क्यों नहीं।' अपन ने बताया ही था- सुषमा बेंगलुरु में कमान संभालेंगी। गवर्नर को दो दिन की मोहलत दे येदुरप्पा दिल्ली पहुंचे। तो सुषमा बेंगलुरु। ऐसा नहीं, जो सुषमा को मोहलत वाली बात पता न हो। फिर भी सुषमा ने गवर्नर को चेतावनी दी- 'न्यौता न दिया। तो राज्यभर में आंदोलन।' बूटा सिंह का हश्र याद कराना भी नहीं भूली। यों सब कुछ गवर्नर की रिपोर्ट पर ही मुअस्सर। बात रिपोर्ट की। बीजेपी डेलीगेशन पीएम से मिला। तो पीएम ने होम मिनिस्टर पाटिल को भी बुला लिया। पीएम ने पूछा- 'क्या गवर्नर की रिपोर्ट आ गई?' पाटिल बोले- 'नहीं, अभी नहीं आई।' पीएम ने कहा- 'मंगवाइए रिपोर्ट।' साफ था गवर्नर की रिपोर्ट मंगवाकर गुरुवार को केबिनेट में फैसला होगा। यों अपन सुप्रीम कोर्ट के फैसलों की बात करें। तो केंद्र के पास कोई गुंजाइश नहीं। कोर्ट ने यह भी कहा था- 'राजनीतिक दलों का स्टेंड बदलना एसेंबली भंग करने की वजह नहीं हो सकता।' पर यहां खतरा दूसरा। कांग्रेस कहीं एमपी प्रकाश को मधु कोड़ा ही न बना दे। सो राजनाथ सिंह ने पीएम को वह भी याद कराया। पता नहीं सोनिया-मनमोहन के मन में अब क्या। पर पहले तो खिचड़ी यही पक रही थी। बिहार के बाद गोवा-झारखंड अपन को अभी नहीं भूले। पृथ्वीराज ने जैसे बुधवार को बेंगलुरु में मोर्चा खोला। अपना कांग्रेस की नियत पर शक बढ़ा। मनमोहन ने एक तरफ तो 'पॉजिटिव' संकेत दिया। दूसरी तरफ डेलीगेशन से कहा- 'गवर्नर को कुछ वक्त तो दो।' इस पर वेंकैया नायडू बोले- 'चार दिन तो बीत चुके।' मनमोहन के पास कोई जवाब नहीं था। यों गवर्नर की बात करें। तो मंगलवार को उनने भी येदुरप्पा को 'पॉजिटिव' संकेत दिया। सो येदुरप्पा की तरह अपन भी शपथ को लेकर भरोसेमंद।
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