लो विकास दर पर भी अपनी भविष्यवाणी सही निकली। अपने मनमोहन-चिदंबरम जब दस फीसदी का ढोल पीट रहे थे। तब अपन ने 13 अगस्त को लिखा था- 'देख लेना विकास दर की भी पोल खुलेगी।' वही हुआ। अप्रेल-मई-जून के आंकड़े आ गए। तीन महीनों में विकास दर 7.9 फीसदी रही। जिस मुद्दे को उठा लीजिए। बंटाधार किया मिलेगा। जीडीपी और महंगाई की बात तो सब के सामने। आतंकवाद-भ्रष्टाचार भी किसी से छिपा नहीं।
लोगों की सहनशक्ति अब जवाब देने लगी। कांग्रेस को तुष्टिकरण के नतीजे समझ नहीं आ रहे। पर गुजरात के बाद उड़ीसा में भी लोगों के सब्र का बांध टूटा। पहले बात भ्रष्टाचार की। जब मनमोहन खुलेआम सीबीआई से लालू का बचाव कराएंगे। तो भ्रष्टाचार काबू में कैसे आएगा। आमदनी से ज्यादा जायदाद पर सीबीआई अब लालू-राबड़ी के साथ। ऐसी सीबीआई पर कौन भरोसा करेगा। जो कांग्रेस की घरेलू एजेंसी बन चुकी। तभी तो आए दिन गैर कांग्रेसी सरकारों को सीबीआई जांच की सिफारिश करने लगी। शुक्रवार को तो हद हो गई। केबिनेट मीटिंग के बाद कपिल सिब्बल बोले- 'केंद्र उड़ीसा में सीबीआई जांच चाहता है।' मनमोहन सरकार की ऐसी हरकतें संविधान के खिलाफ। सो अरुण जेटली बोले- 'सीबीआई पर अब कोई भरोसा नहीं करता।' पर सीबीआई ने एक काम भरोसेलायक किया। यों नहीं करती तो पूरी तरह नाक कटती। अपन बात कर रहे हैं- कांग्रेसी सांसद मणिकुमार सुब्बा की। जो भारत के नागरिक ही नहीं। पर कांग्रेस को चंदा दे देकर तीन बार से सांसद। चंदा देकर बना सांसद चार गुणा कमाने का जुगाड़ तो करेगा ही। पर करते-करते बात रह गई आतंकवाद और गुजरात की। अपने नरेंद्र भाई मोदी शुक्रवार को दिल्ली में थे। मनमोहन, पाटिल और एमके नारायणन से मिले। गुजरात के उसी आतंकवाद विरोधी कानून पर हरी झंडी की गुहार लगाई। जिस पर सोनिया-मनमोहन-पाटिल मुस्लिम विरोधी बताकर कुंडली मारे बैठे हैं। अल्पसंख्यकवाद की बीमारी लग गई कांग्रेस को। देश को भले कितना नुकसान हो। कांग्रेस को वोट, सत्ता, कुर्सी की फिक्र ज्यादा। मोदी बोले- 'जैसे जंग के समय विदेश नीति पर राजनीति नहीं होती। वैसे आतंकवाद पर भी राजनीति बंद हो।' अपने नरेंद्र भाई ने क्या पते की बात कही। मनमोहन को विदेश नीति से क्या लेना। उनने विदेश नीति अमेरिका को गिरवी रख दी। एटमी करार के लिए क्या क्या नहीं किया। ईरान गैस पाइप लाइन तो ठंडे बस्ते में डाली ही। जरा करार होने दीजिए। अपन को ईरान में अमेरिकी कार्रवाई की हिमायत भी करनी पड़ेगी। आपने देखा नहीं अमेरिकी राजदूत मलफोर्ड ने क्या किया। उनने गुरुवार को करार विरोधी देशों के राजदूतों को बुलाकर धमकाया- 'करार का विरोध नहीं छोड़ा। तो भारत से संबंध हमेशा के लिए बिगड़ जाएंगे।' तो क्या मनमोहन ने प्रणव दा की छुट्टी कर दी। अब भारत की तरफ से मलफोर्ड बोलेंगे। जब नेपाली सुब्बा को एमपी बना सकती है कांग्रेस। तो अमेरिकी मलफोर्ड को विदेश मंत्री भी बना दिया होगा। पर लाख टके की बात। क्या अपनी विदेश नीति अब बुश तय करेंगे। विदेश नीति का तो बाजा बजा दिया मनमोहन ने। वरना इटली की यह हिम्मत होती। भले ही मनमोहन की नेता इटली की। पर इटली को अपने अंदरूनी मामलों में दखल का क्या हक। सुना आपने। इटली के विदेश मंत्रालय ने अपने राजदूत को तलब किया। राजदूत से बोले- 'उड़ीसा में ईसाई सुरक्षित नहीं। यह इटली के लिए फिक्र की बात।' तो क्या यह भारत के अंदरूनी मामलों में दखल नहीं। पर मनमोहन सरकार को जरा फिक्र नहीं। कपिल सिब्बल से पूछा। तो वह सवाल से कन्नी काट गए। इटली और ईसाई के मामले पर कैसे बोलते। अपन को लगा- यह इटली के दबाव का ही असर। जो मनमोहन सरकार ने उड़ीसा में सीबीआई जांच की बात उठाई।
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