उड़ीसा का कंधमाल इलाका। जहां आजकल हिंदू-ईसाई सांप्रदायिक तनाव। अपन को 22 जनवरी 1999 की याद आ गई। तब ईसाई मिशनरी ग्राहिम स्टेन्स की हत्या हुई थी। स्टेन्स अपने दो बेटों के साथ कार में सो रहे थे। तीनों को जिंदा जला दिया गया। तब अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था- 'स्टेन्स के हत्यारों को माफ नहीं किया जाएगा।' अब अस्सी साल के स्वामी लक्ष्मणानंद की हू-ब-हू वैसे ही हत्या हुई।
तो मौजूदा पीएम मनमोहन सिंह चुप्पी साध गए। गोधरा में ट्रेन का डिब्बा जलाकर विहिप वर्कर जिंदा जलाए गए। तो सोनिया चुप्पी साध गई थी। वाजपेयी ने तब जार्ज की रहनुमाई में चार केबिनेट मंत्री उड़ीसा भेजे। उनकी सिफारिश पर सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस वधवा की जांच बिठाई। अब मनमोहन के मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल उड़ीसा जाकर राजनीति करने लगे। बोले- 'नवीन सरकार ने प्रभावी कदम उठाए होते। तो हालात काबू में आ जाते। अब हालात काबू में नहीं। यह केंद्र सरकार के लिए फिक्र की बात।' दिल्ली में अभिषेक मनु सिंघवी बोले- 'उड़ीसा में हुई हिंसा भाजपा-संघ परिवार की नीति का हिस्सा।' अपन तब के सीएम की याद भी दिला दें। तब उड़ीसा के कांग्रेसी मुख्यमंत्री थे जेबी पटनायक। राज्य की सारी कांग्रेस अंजना मिश्र बलात्कार कांड पर पटनायक के खिलाफ थी। पर सोनिया ने पटनायक को नहीं हटाया। जब ईसाई धर्म प्रचारक स्टेन्स की हत्या हुई। तो सोनिया ने पटनायक का बिस्तर गोल कर दिया। पंद्रह फरवरी 1999 को सांसद गिरधर गोमांग सीएम बनकर गए। वही गिरधर गोमांग जिनने सत्रह अप्रेल 1999 को दिल्ली आकर वाजपेयी के खिलाफ वोट दिया। मुख्यमंत्री के लोकसभा में वोट से सरकार गिर गई। पर फिलहाल बात उड़ीसा के ताजा सांप्रदायिक हालात की। सीएम नवीन पटनायक हालात काबू करने की कोशिश में। पर कांग्रेस राजनीति करने पर आमादा। इसका सबूत देखिए। मंगलवार को अल्पसंख्यक आयोग ने उड़ीसा सरकार से रपट मांगी। पर मंगलवार की रात आयोग के अध्यक्ष शफी कुरेशी ने शिवराज पाटिल से मुलाकात की। तो आयोग की रणनीति बदल गई। शफी कुरेशी ने ऐलान किया- 'आयोग की टीम हालात का जायजा लेने जाएगी।' जबसे यूपीए सरकार आई। तब से अल्पसंख्यक-महिला आयोग राजनीति के औजार बन गए। पर बात मुद्दे की। स्वामी लक्ष्मणानंद की हत्या क्यों हुई? भले ही पुलिस ने फौरिया तौर पर नक्सलियों पर शक किया। पर अपन को उड़ीसा का एक पुलिस अफसर बता रहा था- 'ऐसी कोई वजह नहीं, जो नक्सली स्वामी लक्ष्मणानंद की हत्या करते। सवाल खड़ा होता है- हत्या क्यों की गई? किससे दुश्मनी थी? हत्या से किसको फायदा होगा?' तीनों सवालों का जवाब ढूंढना मुश्किल नहीं। अपन बता दें- चालीस साल से लक्ष्मणानंद धर्म परिवर्तन के खिलाफ मुहिम चलाए हुए थे। लक्ष्मणानंद न होते। तो पूरा कंधमाल ईसाई हो चुका होता। यानी लक्ष्मणानंद ईसाई मिशनरियों के काम में रोड़ा थे। उनने नक्सलियों के खिलाफ कभी बयान तक नहीं दिया। तो नक्सली उनकी हत्या क्यों करते। यों भी लक्ष्मणानंद की हत्या से सीधा फायदा किसको होगा। जिसको फायदा होगा, उसी ने हत्या की होगी। बात दुश्मनी की। तो अपन तेईस दिसंबर 2007 की घटना बता दें। यानी क्रिसमस से ठीक दो दिन पहले। कंधमाल में सब जगह रोशनी की गई। हिंदू आबादी वाले इलाकों में भी। इस पर हिंदुओं ने ऐतराज किया। तनाव खड़ा हो गया। लक्ष्मणानंद ने ऐलान किया- 'अगर चर्च ने हिंदू इलाकों में क्रिसमस का जश्न न रोका। तो मैं चर्च के पास जाकर हवन करूंगा।' स्वामी लक्ष्मणानंद कूच कर रहे थे। तभी उन्हें डांसिंगबाड़ी के पास रोका गया। उन पर हमला हुआ। हिंसा हुई, एक जना मारा गया। पंद्रह दिन तक तनाव रहा। तब से लक्ष्मणानंद आंख की किरकिरी थे। एक बात और बता दें- कंधमाल के 99 फीसदी नक्सली ईसाई। ईसाई नक्सलियों की दोहरी निष्ठा। अगर हत्या रंगरूट नक्सलियों ने की, तो नक्सली-ईसाई गठजोड़ के तार ढूंढने होंगे। जो गंभीर खतरे की घंटी।
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