तिरुपति की ठीक वही जगह। जहां मार्च 1982 में नंदमूरि तारक रामाराव ने टीडीपी बनाई थी। यानी एनटीआर की तेलुगूदेशम पार्टी। छब्बीस साल बाद उसी तिरुपति में अब प्रजाराज्यम्। एक और फिल्मी हस्ती चिरंजीवी का नया राजनीतिक दल। फर्क सिर्फ इतनाभर। एनटीआर ने मुअजिज लोगों का महानाडु बुलाया था। पर चिरंजीवी ने लाखों लोगों की रैली कर डाली। लाखों लोगों का हुजूम अपन ने ठीक इसी जगह 1992 में देखा था।
जब नरसिंह राव ने पीएम बनने पर वहां कांग्रेस अधिवेशन किया। आंध्र का वह पवित्र स्थल तिरुपति। तिरुमला की पहाड़ियों के ठीक नीचे। तिरुमला की पहाड़ियां- जहां भगवान वेंकटेश्वर का मंदिर है। भगवान विष्णु का अवतार- वेंकटेश्वर स्वामी। भगवान वेंकटेश्वर के दर्शन में कई दिन लग जाते हैं। अपन ने तब बेहतरीन ढंग से दर्शन किए। जब अपने भैरों बाबा उपराष्ट्रपति हुआ करते थे। एक दिन अचानक फोन आया- 'चलना नहीं क्या?' अपन ने पूछा- 'कहां?' उधर से आवाज आई- 'बताया नहीं क्या।' अपन ने कहा- 'नहीं तो।' उधर से आवाज आई- 'चलो, जल्दी पहुंचो। तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं। तिरुपति चलो।' उधर से फोन पर उपराष्ट्रपति भैरोंसिंह शेखावत थे। इस तरह अपन का अचानक तिरुपति जाना हुआ। जैसे भगवान के घर से बुलावा आया हो। उसी मंदिर के चरणों में मंगलवार को नया राजनीतिक दल बना। फिल्मी हीरो चिरंजीवी का नया दल। तमिलनाडु-आंध्र में फिल्मी हस्तियां राजनीति की दिशा तय करती रहीं। तमिलनाडु में तो दोनों बड़ी पार्टियां फिल्मी हस्तियों के हाथ। करुणानिधि-जयललिता दोनों का बैकग्राउंड फिल्मी। चिरंजीवी ने एनटीआर की याद दिला दी। पर दोनों में फर्क जमीन-आसमान का। एनटीआर लिखा हुआ भाषण नहीं पढ़ते थे। वह जन्मजात एक्टर, जन्मजात लीडर थे। चिरंजीवी ने सारा भाषण लिखा हुआ पढ़ा। बुरा न मानिएगा, सोनिया के बाद अब लीडर पैदा नहीं हो रहे। सिर्फ रीडर पैदा हो रहे हैं। तब एनटीआर ने मार्च 1982 में टीडीपी बनाई। कुछ महीनों में कांग्रेस का पटिया उलाल कर दिया। कांग्रेस की दुर्गत क्यों बनी। जरा उसका इतिहास भी बता दें। राजीव गांधी का जमाना आ गया था। संजय गांधी की मौत के बाद राजीव कांग्रेस महासचिव हो गए थे। वह बाकी महासचिवों की तरह नहीं थे। कांग्रेस के राजकुमार थे। जैसे अब अपने राहुल बाबा। राहुल बाबा के सामने बाकी महासचिवों की क्या औकात। आंध्र में तब कांग्रेस आलाकमान ने चीफ मिनिस्टर कपड़ों की तरह बदले। पहले चेन्ना रेड्डी, फिर टी. अंजैया, फिर भवनम वेंकटराम, आखिर में विजय भास्कर रेड्डी। तेलुगू जनता ने वह दिन नहीं भूला। जब राजीव गांधी ने बेगमपेट हवाई अड्डे पर टी अंजैया की बेइज्जती की। एनटीआर ने इसे आंध्र की बेइज्जती बताकर अभियान छेड़ा। तो कुछ ही दिन में मुख्यमंत्री बन बैठे। फिर हिमाचल वाले गवर्नर रामलाल ने एनटीआर का तख्ता पलटा। तो एनटीआर देश के नेता हो गए। राजीव गांधी को रामलाल की छुट्टी करनी पड़ी। एनटीआर को फिर से सीएम बनाना पड़ा। पर फिलहाल बात चिरंजीवी की। ईस्ट गोदावरी के मोगलतुरु गांव का छोरा- चिरंजीवी। एक पुलिस कांस्टेवल का बेटा। ग्रेजुएशन के बाद नौकरी नहीं की। फिल्मी दुनिया में घुस गया। तीस साल में 148 फिल्मों में काम किया। तीस फिल्में हिट हुई। कापू समुदाय से ताल्लुक रखते हैं- चिरंजीवी। किसान होते हैं कापू। अपन बताते जाएं- आंध्र के तीन हिस्से। तटीय आंध्र, रॉयल सीमा, तेलंगाना। एनटीआर रॉयल सीमा के थे। चंद्रबाबू नायडू भी रॉयल सीमा के। मौजूदा सीएम राजशेखर रेड्डी भी रॉयल सीमा के। एक बात और- आज तक कापू समुदाय से कोई सीएम नहीं बना। सो अबके बारी कापू की। चिरंजीवी राजनीति में न आते। तो चंद्रबाबू के लिए मैदान साफ था। सो अब सबसे ज्यादा नुकसान चंद्रबाबू को। चिरंजीवी क्या बीजेपी-टीआरएस से हाथ मिलाएंगे। चंद्रशेखर राव ने तेलंगाना की शर्त रख दी है। यों चिरंजीवी ने मंगलवार को भी तेलंगाना पर पत्ते नहीं खोले। या लेफ्ट को टीडीपी से तोड़ेंगे। दिवंगत सीपीएम नेता पी. सुंदरैया का भतीजा डा. मित्रा हैं चिरंजीवी के राजनीतिक सलाहकार। यों एक पते की बात बता दें। चिरंजीवी ने तीन दिन पहले लालकृष्ण आडवाणी से फोन पर आशीर्वाद मांगा।
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