एटमी करार के लिए अपने मनमोहन ने कितने पापड़ बेले। लेफ्ट की बैसाखी छोड़ मुलायम का सहारा लिया। वह भी कम पडा। तो सांसदों की खरीद-फरोख्त का कलंक माथे लगाया। आज उसी करार का इम्तिहान विएना में होगा। एनएसजी के पैंतालीस देश जांच पड़ताल करेंगे। एनएसजी की हरी झंडी मिली। तभी करार अमरीकी कांग्रेस में मंजूरी के लिए जाएगा। एनएसजी का फच्चर फंसा। तो समझो करार का राम नाम सत्य।
विएना में आज क्या होगा। उस पर अपन अपना अंदाज बताएंगे। पर पहले बात सांसदों की खरीद-फरोख्त की। कुछ सांसद वोट देने के लिए खरीदे गए। तो कुछ एबस्टेन के लिए। तीन मेंबरों अशोक अर्गल, फग्गन सिंह कुलस्ते और महावीर भगोरा ने पेशगी मिली एक करोड़ की राशि सदन पटल पर रख दी थी। अब सांसदों की खरीद-फरोख्त की जांच कर रही है- किशोर चंद्र देव कमेटी। तीनों सांसदों को एक करोड़ रुपया पहुंचाने वाले संजीव सक्सेना की पेशी भी हो चुकी। सक्सेना बोले- 'मैं अमर सिंह के साथ कैजुअल काम करता था।' यों तो बीजेपी कई सबूत देकर संजीव को अमर सिंह का सेक्रेटरी साबित कर चुकी। पर बुधवार को नया सबूत आया। इस सबूत का इशारा अरुण जेतली ने पहले भी कर दिया था। नया सबूत- अमर सिंह की संजीव को अपना सेक्रेटरी बताने वाली सिफारिशी चिट्ठी का। जो उनने संजीव के बेटे की एडमिशन के लिए लिखी थी। अपन को अमर सिंह का कहा याद आ गया। उनने अरुण जेतली से कहा था- 'तेरा-मेरा शीशे का घर। मैं भी सोचूं, तू भी सोच। तेरे मेरे हाथ में पत्थर। तू भी सोच मैं भी सोचूं।' अमर सिंह के शीशे का घर तो इस नए सबूत से साबित हो गया। पर बीजेपी ने अभी भी पूरे पत्ते नहीं खोले। बीजेपी को पूरा शक- कमेटी अमर सिंह को बरी करेगी। आखिर मनमोहन सरकार अमर सिंह ने ही तो बचाई। सो बीजेपी की तैयारी अदालत की भी। बाकी पत्ते अदालत में खुलेंगे। पर असल बात एटमी करार की। जिसके लिए मनमोहन ने इतना जुगाड़ किया था। एनएसजी आज और कल एटमी करार पर विचार करेगा। अपन को एनएसजी की हरी झंडी मिलती नहीं दिखती। कम से कम आज-कल में तो मिलती कतई नहीं दिखती। तीन देश आस्ट्रिया, न्यूजीलैंड, आयरलैंड तो बेहद खिलाफ। तीनों बिना एनपीटी-सीटीबीटी पर दस्तखत के राजी नहीं हो रहे। बुधवार को अपने विदेश सचिव शिव शंकर मैनन ने जोर लगाया। पर बात बनती नहीं दिखी। न्यूजीलैंड तीन शर्तें रख रहा है। एक शर्त करार पर वक्त-बेवक्त समीक्षा की। दूसरी शर्त भविष्य में एटमी विस्फोट से जुड़ी है। तीसरी शर्त यूरेनियम के री-प्रोसेसिंग से जुड़ी है। आयरलैंड तो बिना एनपीटी पर दस्तखत किए करार का घोर विरोधी। अपन याद दिला दें- अमरीका ने जब पिछले साल वनटूथ्री ड्रॉफ्ट बांटा। तो आरयलैंड ने ही सवाल उठाए थे। अब छ: अगस्त को बंटे ताजा ड्रॉफ्ट पर भी आयरलैंड को कड़े ऐतराज। चीन ने अभी भी अपने पत्ते नहीं खोले। शिव शंकर ने जर्मनी, दक्षिण अफ्रीका और हंगरी से भी गुजारिश की। अब अपने काकोड़कर भी विएना पहुंचेंगे। यों अमरीका-रूस-फ्रांस अपनी पैरवी में उतर चुके। पर मनमोहन की नई मुसीबत मंगलवार को तब खड़ी हुई। जब ऐन वक्त पर इराक ने सीटीबीटी पर दस्तखत कर दिए। अब तक 179 देश दस्तखत कर चुके। रह गए सिर्फ भारत-पाक और उत्तरी कोरिया। भारत सीटीबीटी पर दस्तखत करने को तैयार नहीं। पाक ने साफ कह दिया- जब तक भारत नहीं करेगा, वह भी नहीं करेगा। सो अब नया फच्चर सीटीबीटी आयोग के सेक्रेटरी टिबोर टोथ के बयान का। उनने कहा- 'मैं भारत से सीटीबीटी पर दस्तखत की फिर अपील करता हूं।' अपन बताते चलें- 44 देश सीटीबीटी की पुष्टि कर दें। तो पूरी दुनिया में परमाणु परीक्षण पर रोक लग जाएगी। अब तक 35 देश दस्तखत कर चुके। पर फिलहाल बात एटमी करार में नए फच्चर की। जो इराक के दस्तखत से फंसेगा। आयरलैंड तो जरूर पूछेगा- 'दस्तखत क्यों नहीं करता भारत।'
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