पाकिस्तान से चार खबरें चौंकाने वाली आई। पहली- अपनी अरुंधति राय ने कहा है- 'कश्मीरियों को भारत से आजादी चाहिए।' एपीपी ने यह खबर एक इंटरव्यू के हवाले से दी। अरुंधति राय को बहुतेरे लोग इज्जत की नजर से देखते होंगे। अपन पहले भी नहीं देखते थे। पंचमड़ी में जंगलात की जमीन पर कब्जे ने अपना मन खट्टा कर दिया था। अब तो उनने देशद्रोह का काम किया।
दूसरी खबर- पाकिस्तान की संसद ने कश्मीर के बारे में प्रस्ताव पास किया। प्रस्ताव में कहा है- 'कश्मीर की जनता को आत्मनिर्णय का हक दिया जाए। इसकी हिमायत में दुनियाभर में माहौल तैयार हो। इसलिए नेशनल एसेंबली के मेंबरों की एक कमेटी बनाई जाए।' अपन को मनमोहन सिंह की वह बात याद आई। जो उनने लालकृष्ण आडवाणी से कही थी। इसका जिक्र अपन ने आठ अगस्त को किया। जब अपन ने लिखा- 'पीएम की दलील वाजिब पर समस्या हल तो हो।' इसी में अपन ने लिखा था- 'मनमोहन सिंह ने आडवाणी को समझाया- आर्थिक नाकेबंदी बंद न हुई। तो अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बन जाएगा।' पाकिस्तान के सांसदों में भले अक्ल न हो। पर मनमोहन सिंह ने इशारा करके अक्ल दे दी। अब नतीजा अपने सामने। यों बात जब आत्म निर्णय की चल ही पड़ी है। तो लगते हाथों जवाहर लाल नेहरू को भी याद कर लें। यह फच्चर वही फंसाकर गए थे। जब बाईस अक्टूबर 1947 को पाक से कश्मीर में घुसपैठ शुरू हुई। तो उनने सरदार पटेल की भेजी फौज को एक्शन से रोक दिया। खुद संयुक्त राष्ट्र में बीच बचाव की दरख्वास्त दे दी। नतीजा निकला संयुक्त राष्ट्र का फैसला- 'कश्मीर की जनता को आत्म निर्णय का हक देने वाला फैसला।' यह अलग बात, जो पाक ने अपने कब्जे वाले कश्मीरियों को हक नहीं दिया। तो बात आगे नहीं बढ़ी। पर दोनों देशों के संबंधों में नासूर तो बन ही गया कश्मीर। अब जब पाक ने प्रस्ताव पास किया। तो अपन को नेहरू की गलती भी याद आ हीर् गई। पाक से आई तीसरी खबर- जनरल कियानी अचानक काबुल पहुंच गए। मुशर्रफ के हटने से अगले दिन ही कियानी का काबुल पहुंचना। जरूर पाक-अफगानिस्तान संबंधों में नई इबारत लिखेगा। राष्ट्रपति हामिद करजई अब तक मुशर्रफ के खिलाफ थे। उनने सार्क में भी पाकिस्तान के खिलाफ बोला। अमेरिका भी आईएसआई की हरकतों से परेशान था। बार-बार मुशर्रफ से शिकायत करता रहा। कियानी की नाटो फौजों के कमांडर जनरल डेविड मैकीरनन से भी बात हुई। राष्ट्रपति करजई से भी फोन पर बात हुई। कियानी का दौरा इतना गोपनीय था- राष्ट्रपति भवन के करिंदों तक को भनक नहीं थी। पाक से आई चौथी खबर- मुशर्रफ के जाते ही जरदारी-शरीफ गठबंधन में फच्चर फंस गया। फच्चर फंसा है- इफ्तिकार मोहम्मद चौधरी की बहाली पर। मुशर्रफ ने तीन नवंबर 2007 को चीफ जस्टिस इफ्तिकार को बर्खास्त किया। वही मुशर्रफ की रवानगी का बायस बना। मीडिया और ज्यूडिशरी मुशर्रफ के खिलाफ खड़े हो गए। जगह-जगह प्रदर्शन-जुलूस-जलसे-हड़तालें हुई। जम्हूरियत का आंदोलन खड़ा हो गया। उतना ही बड़ा आंदोलन। जितना अपने यहां इमरजेंसी में इंदिरा के खिलाफ खड़ा हुआ। जैसे इंदिरा गांधी की कांग्रेस का 1977 में सूपड़ा साफ हुआ। वैसे ही मुशर्रफ की पीएमएलक्यू का इस साल सूपड़ा साफ हुआ। बहुमत किसी को नहीं मिला। पहले तो ब्रिटेन-अमेरिका ने कोशिश की- 'पीपीपी-पीएमएल में गठजोड़ न हो।' पर दोनों फेल हो गए। गठबंधन सरकार बन गई। पहले तो गठबंधन में मुशर्रफ पर फच्चर फंसा रहा। दोनों ने मुशर्रफ को हटाने का फैसला किया। तो अब फच्चर उसी इफ्तिकार मोहम्मद चौधरी का। शरीफ चाहते हैं- इफ्तिकार को प्रशासनिक आदेश से फौरन बहाल किया जाए। जरदारी चाहते हैं- पहले संविधान का आर्टिकल 58-2बी बदला जाए। यों सुनते हैं जरदारी मौजूदा चीफ जस्टिस अब्दुल हमीद डोगर के खिलाफ नहीं। आखिर उनने ही तो भ्रष्टाचार के मुकदमों से जरदारी को राहत दी। सो मंगलवार की मीटिंग बेनतीजा रही। फच्चर सिर्फ चीफ जस्टिस का नहीं। दूसरा फच्चर नए राष्ट्रपति पर भी फंसेगा।
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