सोनिया ही करेंगी कर्नाटक का फैसला

Publsihed: 29.Oct.2007, 20:32

पिछले दिनों आपने भी वह खबर देखी होगी। पति-पत्नी में तलाक का मुकदमा तीन साल चला। पर जब तलाक हुआ। तो तीसरे दिन दोनों ने फिर शादी कर ली। तलाक के बाद दोनों को एक-दूसरे से दूरी का अहसास हुआ। हू-ब-हू यही हाल कर्नाटक में बीजेपी-जेडीएस का।  तलाक हुए अभी महीना भी पूरा नहीं हुआ। दुबारा शादी के मंडप पर जा बैठे। येदुरप्पा सेहरा बांधकर घोड़ी पर बैठ गए। दुल्हन ने सहमति दे दी। पर पंडित फेरे करवाने को तैयार नहीं। पर पहले दुबारा शादी की रामलीला सुन लो।

बेटे को सीएम बनवाने के लिए पहले बीजेपी से हाथ मिलाया। पर बीस महीने बाद जैसे ही सत्ता बीजेपी को सौंपने की बात आई। देवगौड़ा का सेक्युलिरिज्म दम मार गया। बीजेपी को समर्थन वापसी की चिट्ठी देनी पड़ी। तब जाकर कुमारस्वामी ने इस्तीफा दिया। वरना सत्ता का खून मुंह लग गया था। यह बात आठ अक्टूबर की। यही चाहती थी कांग्रेस। रणनीति कामयाब रही। गवर्नर राज लग गया। बोम्मई केस का फैसला न होता। तो गवर्नर रामेश्वर ठाकुर विधानसभा भंग कराते। पर सुप्रीम कोर्ट का साफ आदेश- 'सरकार बनने की संभावना टटोलने की कोशिश हो। सो पहले विधानसभा सस्पेंड की जाय।' बूटा सिंह ने बिहार में यह नहीं किया। तो बूटा सिंह ने खामियाजा भुगत लिया। विधानसभा सस्पेंड हुई। तो अपने देवगौड़ा के कान तभी खड़े हुए थे। उनने दिल्ली में आकर आशंका जताई- 'कांग्रेस कोई खेल करेगी। खरीद-फरोख्त की गुंजाइश पैदा होगी। सो विधानसभा भंग कर चुनाव करवाए जाएं।' देवगौड़ा सचमुच फिक्रमंद थे। सो उनने राष्ट्रपति, गवर्नर, पीएम को चिट्ठी लिखी- 'विधानसभा भंग की जाए।' किसी ने चिट्ठी मिलने की खबर तक नहीं भेजी। वही हुआ, जिसका देवगौड़ा को डर था। घर के भेदी एमपी प्रकाश कांग्रेस से गुटरगू करने लगे। खबर मिलते ही देवगौड़ा ने अपने बेटे कुमारस्वामी को समझाया- 'बेटा सीएम बनने का ख्वाब छोड़ दो। पहले पार्टी बचाओ। बीजेपी से हाथ मिलाकर सत्ता सौंप दो।' मरता क्या न करता। कुमारस्वामी ने फौरन येदुरप्पा का दरवाजा खटखटाया। समर्थन की चिट्ठी सौंप आए। देवगौड़ा ने खुद राजनाथ सिंह से बात की। सत्ताईस अक्टूबर को जैसे ही बीजेपी-जेडीएस में दुबारा सगाई हुई। गवर्नर ने चिट्ठी मिलने की खबर भिजवा दी। तब देवगौड़ा-वेंकैया के कान खड़े हुए। अपन बताते जाएं। वेंकैया नायडू कर्नाटक के प्रभारी नहीं। पर दो दिन तक बेंगलूर में डटे रहे। पर बात देवगौड़ा की। लगा- गवर्नर अब उसी चिट्ठी के सहारे खेल करेंगे। तो उनने सोमवार को नई चिट्ठी लिखी। जिसमें उनने लिखा- 'मेरी पुरानी चिट्ठी का अब कोई मतलब नहीं। बीजेपी-जेडीएस ने मिलकर सरकार बनाने का फैसला कर लिया है।' जेडीएस से धोखा खा बीजेपी सड़कों पर थी। जनता की सहानुभूति भी मिलने लगी। देवगौड़ा परिवार ऐसे बचाव में पहले कभी नहीं आया। पर सत्ता दिखी। तो बीजेपी के मुंह में पानी आ गया। आंदोलन छोड़ राजभवन की ओर दौड़ पड़ी। सोमवार को तो बेंगलूर राजभवन में खूब गरमा-गरमी रही। देवगौड़ा को गच्चा देने वाले एमपी प्रकाश के पास एमएलए तो तीन ही रह गए। सो वह तीनों को लेकर राजभवन पहुंचे। बोले- 'बीजेपी-जेडीएस को मौका न दो। दोनों एक-दूसरे के खिलाफ गालियां निकाल रहे थे। दोनों का गठबंधन इसी महीने फेल हुआ। सो यह गठबंधन स्थाई सरकार नहीं दे सकता।' अपन गवर्नर का विवेकाधिकार बता दें। गवर्नर को लगना चाहिए- गठबंधन स्थाई सरकार देगा। वैसे बोम्मई केस के बाद अब गवर्नर को यह हक नहीं रहा। भले ही एमपी प्रकाश की बात सोलह आने सही। बीजेपी-जेडीएस सरकार बनी भी। तो ज्यादा देर चलनी नहीं। बीजेपी सरकार बनाकर अपनी साख और गवाएगी। पर साख तो देवगौड़ा की भी गई। पर बात फिलहाल राजभवन की। सोमवार शाम होते-होते गठबंधन के 126 एमएलए राजभवन पहुंचे। पर जब बारात राजभवन तक पहुंची। तो तीन एमएलए और आ जुटे। अब बात पंडित के फेरे करवाने की। पंडित का फोन दिल्ली घनघनाए। तो बात नहीं बनेगी। दिल्ली तब तक हरी झंडी नहीं देगा। जब तक सोनिया चीन से न लौटें। पर मराजुद्दीन ने गवर्नर को भी चौबीस घंटे की मोहलत दे दी।

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