बीजिंग में ओलंपिक की शुरूआत जोरदार हुई। जैसे अपनी दीवाली में चीन की लड़िया-फुलझड़ियां आ चुकी। हू-ब-हू वैसे ही चीनी लड़ियों-फुलझड़ियों से शुरूआत हुई। ऐसा लगा- जैसे चीन में दीवाली मन रही हो। ओलंपिक का 29वां महाकुंभ। आठवें महीने की आठ तारीख। सन् भी 2008 टाइम भी आठ बजकर आठ मिनट, आठ सेकेंड। सिर्फ बीजिंग नहीं। पूरा चीन दुल्हन की तरह सजाया गया।
दो लाख करोड़ का खर्च हुआ। चीन ने अपनी आर्थिक समृध्दि की नुमाइश की। उसके मुकाबले अपने कॉमनवेल्थ की तैयारियां धेला भर नहीं। चीन ने कागज इजाद किया। चीन ने पेंटिंग इजाद की। सो ओलंपिक के उद्धाटन समारोह में कागज और पेंटिंग की गजब नुमाइश हुई। कागज और पेंटिंग के सफर को आलीशान ढंग से दिखाया गया। अपन तो कठपुतलियों का खेल जैसे भूल गए। पर उद्धाटन समारोह में चीन ने कठपुतलियों की नुमाइश की। पांच हजार साल पुरानी सभ्यता के दर्शन भी कराए। जब हजारों युवाओं ने लय और ताल के साथ प्राचीन ढोल बजाया। अपनी कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी मय परिवार पहुंची हुई थीं। कामनवेल्थ की तैयारियां करने वाली टीम भी पहुंची होगी। उद्धाटन समारोह देखकर पैरों तले की जमीन जरूर खिसकी होगी। बीजिंग में जब उद्धाटन हो रहा था। तो दिल्ली में पानी बरस रहा था। दिल्ली में जिस तरह सड़कों पर नहरें दिखने लगी। अपन को कामनवेल्थ की तैयारी जरा नहीं दिखी। सोचो, कामनवेल्थ के उद्धाटन वाले दिन ऐसी ही बारिश हो गई। तो क्या मुंह दिखाएगा इंडिया। खैर फिलहाल बात बीजिंग के ओलंपिक की। खेल तो आज से शुरू होंगे। पर इस्लामाबाद में दो दिन पहले ही खेल शुरू हो गए। बेचारे परवेज मुशर्रफ नई शेरवानी सिलाकर बैठे थे। पर कुर्सी खिसकती दिखी। तो बीजिंग जाने का इरादा छोड़ दिया। कहीं 1999 न दोहराया जाए। याद है, कारगिल के बाद परवेज मुशर्रफ विदेश गए थे। तो नवाज शरीफ ने हवाई जहाज उतरने नहीं दिया था। बाद में मुशर्रफ ने नवाज शरीफ का तख्ता पलट दिया। अब फिर बाजी नवाज शरीफ के हाथ। अबके फौज भी मुशर्रफ के साथ नहीं। सो परवेज मुशर्रफ डर गए। आखिर प्रधानमंत्री गिलानी को बीजिंग जाना पड़ा। सिर्फ पाकिस्तान ही नहीं। कई देशों के पीएम-राष्ट्रपति बीजिंग पहुंचे। पर अपने मनमोहन सिंह देखते रह गए। सत्ता के दो केंद्रों की तस्वीर सबके सामने आई। पर अपन बात इंडिया की नहीं। बीजिंग और इस्लामाबाद की कर रहे थे। ओलंपिक बीजिंग में शुरू हुए, खेल इस्लामाबाद में शुरू हो गया। अपन ने कल ही लिखा था- 'मुशर्रफ को कम से कम बीस सांसदों के एबस्टेन रहने का भरोसा।' मनमोहन सिंह से मंत्र ले लिया होगा। सो मुशर्रफ ने जरदारी की बात नहीं मानी। इस्तीफा देने से इंकार कर दिया। जरदारी की बात तो छोड़िए। जनरल कियानी की बात भी नहीं मानी। यों मुशर्रफ अपनी पर आ जाएं। तो नेशनल एसेंबली भंग कर देंगे। पर अबके फौज मुशर्रफ का साथ देगी। ऐसा भरोसा खुद मुशर्रफ को नहीं। अब आवाम भी मुशर्रफ के खिलाफ खड़ा हो चुका। वैसे पाकिस्तान में कब क्या हो जाए। कह नहीं सकते। पर फिलहाल मुशर्रफ के खिलाफ इम्पीचमेंट की तैयारी। पहले तो मुशर्रफ को सुप्रीम कोर्ट में किया वादा याद कराया जाएगा। मुशर्रफ ने सुप्रीम कोर्ट में वादा किया था- 'नई नेशनल एसेंबली और प्रांतीय एसेंबलियों से अपने चुने जाने की तागीद कराऊंगा।' तब जाकर सुप्रीम कोर्ट ने पिछली एसेंबलियों से चुने जाने की इजाजत दी। अब नई एसेंबली बने छह महीने होने को। पर चुने जाने की तागीद करवाने की हालत में नहीं। सो अगले हफ्ते चारों एसेंबलियां प्रस्ताव पास करके कहेंगी- 'राष्ट्रपति एसेंबलियों से मंजूरी लें।' मुशर्रफ का ऐसा इरादा नहीं। सो आखिर में संविधान की धारा-47 के तहत इम्पीचमेंट होगा। इम्पीचमेंट के लिए 439 मेंबरों में से दो तिहाई चाहिए। यानी जरदारी-शरीफ को 295 सांसदों की दरकार। यों दोनों के पास 305 सांसद। पर अपन ने बताया ही था- मुशर्रफ को बीस सांसदों के एबस्टेन का भरोसा। जब तक बीजिंग में ओलंपिक होंगे। तब तक इस्लामाबाद में राजनीतिक खेल भी जमकर होगा।
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