श्राइन बोर्ड के झगड़े का हल तो है, कोई चाहे तो

Publsihed: 07.Aug.2008, 06:45

आज बात कांग्रेसी फिरकापरस्ती की। सोचो, हज कमेटी को जमीन देने का सवाल होता। संघ परिवारी विरोध कर रहे होते। तो क्या कोई गुलामनबी आजाद अपने फैसले से पलटता। पर अमरनाथ श्राइन बोर्ड को जमीन देने का हुर्रियत कांफ्रेंस ने विरोध किया। तो गुलामनबी आजाद अपने फैसले से पलट गए। बात सिर्फ श्राइन बोर्ड को जमीन की नहीं। बात सिमी के मामले में होम मिनिस्टर के लुंज-पुंज होने की भी।  यों लालुओं-मुलायमों से पूछो। तो सिर्फ बीजेपी-शिवसेना ही फिरकापरस्त।

दिल्ली हाईकोर्ट ने सिमी से बैन हटाया। तो दोनों फूले नहीं समाए। लालू बोले- 'सिमी पर बैन गलत था। शिवसेना और दुर्गावाहिनी पर बैन क्यों न लगे।' मुलायम बोले- 'मैं तो शुरू से कह रहा था- सिमी आतंकवादी नहीं। सिमी पर बैन लगाना हो, तो आरएसएस पर क्यों न लगे।' आरएसएस पर बैन की बात उठी। तो कांग्रेस फूली नहीं समाई। पर बात हाईकोर्ट के फैसले की। हाईकोर्ट के फैसले से अपनी होम मिनिस्टरी की नाक कटी। पर शिवराज पाटिल की सेहत पर असर नहीं। जब बेटा सरकारी घर से धंधा करता पकड़ा गया। तब पाटिल की सेहत पर असर नहीं पड़ा। सोनिया गांधी ने पाटिल को झटका नहीं दिया। तो कोर्ट के झटके का क्या असर होता। कांग्रेस प्रवक्ता शकील अख्तर बड़ी बेशर्मी से बोले- 'फैसला सरकार के लिए कोई झटका नहीं।' यही राय अपने श्रीप्रकाश जायसवाल की भी। वह तो शुकर है जो बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने होम मिनिस्टरी की नाक बचा ली। हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा ली। वरना होम मिनिस्टरी ने अपनी नाक कटवाने में कसर नहीं छोड़ी। अपन को राजीव प्रताप रूढ़ी की टिप्पणीं दमदार लगी। बोले- 'कोर्ट ने बार-बार कहा था- सिमी के खिलाफ नए सबूत लाओ। पर होम मिनिस्टरी जान-बूझकर चुप्पी साध गई। कांग्रेस को मुलायम के समर्थन की दरकार जो थी।' शिवराज पाटिल का अफजल गुरु वाला बयान याद करो। उनने कहा था- 'अफजल को फांसी, सरबजीत को माफी। यह दोनों बातें कैसे हो सकती हैं।' अफजल  के पक्ष में होम मिनिस्टर की इस दलील पर कांग्रेस भी शर्मसार हुई। किसी खास वर्ग के वोटों के लिए उसके गुनाहों की पैरवी सरकार करे। तो सचमुच भगवान भी इस देश को नहीं बचा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने सिर्फ सरकारी मकानों के बारे में यह टिप्प्पणीं नहीं की होगी। जरूर सरकार के रोज-रोज के कुकर्म देखकर की होगी। कोर्ट में सिमी के खिलाफ ताजा सबूत न देना क्या कम कुकर्म। पर अपन बात कर रहे थे श्राइन बोर्ड की। गुलाम नबी अपने फैसले पर अड़कर सरकार गंवाते। तो सेक्युलरिज्म के झंडाबरदार होने के दावेदार होते। वह तो हुर्रियत, पीडीपी, नेका की फिरकापरस्ती के आगे झुके। उनतीस जून तक इन फिरकापरस्तों ने घाटी बंद कराई। तो तीस जून को गुलाम नबी ने इनके दबाव में अपना फैसला पलट दिया। घाटी बंद थी, तो वहां के मुस्लिम फिरकापरस्त नहीं थे। जम्मू बंद है, तो वहां के हिंदू फिरकापरस्त। अपन ने तो पहली जुलाई को ही लिख दिया था- गुलाम नबी की गलती ने 'हिंदू और मुसलमान का टकराव बना दिया।' पर बुधवार को आल पार्टी मीटिंग से पहले यूपीए मीटिंग हुई। तो गुलामनबी ने अपनी गलती का ठीकरा बीजेपी के सिर फोड़ा। राजनीति करने और आल पार्टी मीटिंगों से हल नहीं निकलना।  सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल के जम्मू जाने से भी हल नहीं निकलना। हल तो है, हिम्मत दिखानी होगी। अपन पासवान की इस दलील से सहमत- 'झगड़े की जड़ थे- गवर्नर एसके सिन्हा।' सिन्हा गवर्नर के नाते श्राइन बोर्ड के अध्यक्ष थे। श्राइन बोर्ड का काम तीर्थ यात्रियों की सुरक्षा था। तीर्थ यात्रियों का बंदोबस्त नहीं। उनने बंदोबस्त का ठेका लेकर श्राइन बोर्ड के लिए जमीन मांगी। दूसरी गलती उनने बोर्ड में दिल्ली-अंबाला के लोग भरकर की। डेढ़ सौ साल पहले अमरनाथ गुफा मिली। तो कश्मीरी पंडितों ने पहलगांव-बालतल के गांवों को गुफा का कस्टोडियन बनाया था। इन दोनों गांवों में सौ फीसदी आबादी मुसलमानों की। बिना मुसलमानों की मदद के अमरनाथ श्रध्दा का केंद्र नहीं बनता। अमरनाथ यात्रा लोकल मुसलमानों की आमदनी का जरिया भी बनी। पर सिन्हा ने बंदोबस्त के बहाने लोकल मुसलमानों को अलग-थलग कर दिया। श्राइन बोर्ड के मेंबर बाहर के न होते। तो लोकल मुसलमान विरोध भी न करते। अब जब श्राइन बोर्ड के आठों मेंबरों ने इस्तीफा दे दिया। तो गलती सुधारने का बेहतरीन मौका। कश्मीरी पंडितों के अलावा लोकल मुसलमान भी बोर्ड में रखे जाएं। फिर बोर्ड को वह सौ एकड़ जमीन दे दें। तो कोई बवाल खड़ा नहीं होगा।

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