आतंकियों को अपनी सी लगती है यूपीए सरकार

Publsihed: 29.Jul.2008, 20:39

अपन ने कल सुषमा की आतंकी थ्योरी बताई थी। जिसमें उनने केंद्र सरकार को घसीटा था। सद्दाम हुसैन ने अपनी कुर्सी के लिए हजारों कुर्दो को मरवाया था। अपनी यूपीए सरकार सद्दाम हुसैन के रास्ते पर तो नहीं चलेगी। सो सुषमा की बात किसी के गले नहीं उतरी। एनडीए के बाकी दलों के गले भी नहीं उतरी। गले उतरने वाली बात ही नहीं थी।  सुषमा ने आतंकवाद को सांसदों की खरीद-फरोख्त से जोड़ा। बोली- 'विस्फोट लोकसभा में विश्वासमत के फौरन बाद हुए। विश्वासमत में सरकार खरीद-फरोख्त से नंगी हुई।

आतंकी वारदातों से कैश फार वोट से जनता का ध्यान हटेगा।' वैसे सुषमा की बात गले जरा नहीं उतरती। पर कुर्सी के लिए राजनीतिबाज क्या-क्या नहीं करते। अपन ने सद्दाम हुसैन का उदाहरण तो दिया ही। ताकि सनद रहे सो बता दें- इराक मे भी जमहूरियत थी। पर दूर क्यों जाएं। अपन अपना ही उदाहरण बता दें। अट्ठाईस फरवरी 1983 की बात। इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं। मधु दंडवते बोल रहे थे। उनने कहा- 'उम्मीदवार की हत्या के लिए रिवाल्वर दी गई है। मैं इसे आपको सौंपना चाहता हूं।' यह अलग बात। जो स्पीकर ने ऐसा होने नहीं दिया। अपन लगते हाथों कैश फार वोट का पुराना किस्सा भी बताते जाएं। बात नौ मार्च 1988 की। डीएमके के थंगाबालू ने सदन में ब्रीफकेस उछाला। बोले- 'इसमें दो लाख रुपए के करेंसी नोट हैं। मुझे पाला बदलने के लिए रिश्वत दी गई है।' सो नोटों की गड्डियां तो पहले भी सदन में आ चुकी। अबके तीन सांसद नोटों की गड्डियां लेकर आए। सवाल पूछने के बदले रिश्वत के मामले में ग्यारह सांसदों की मेंबरी गई। तब सवाल सिर्फ पच्चीस हजार का था। अब लोकसभा में वोट देने के लिए करोड़ों का सौदा हुआ। दोनों मामलों में स्टिंग ऑपरेशन हुआ। पहले मामले में स्टिंग ऑपरेशन चैनल पर दिखा। पर दूसरे मामले में चैनल दगा दे गया। अब तीनों सांसदों का चैनल दफ्तर के बाहर धरने का इरादा। रिश्वत कांड को मुद्दा बनाने के लिए आडवाणी खुद सामने आएं। तो बेहतर होगा। राव के जमाने में खरीद-फरोख्त का भंडाफोड़ वाजपेयी ने किया था। अपन को कल्याण सरकार की बर्खास्तगी पर वाजपेयी का धरना भी याद। मनमोहन सरकार को हिलाना हो। तो आडवाणी को वाजपेयी के पद्चिन्हों पर चलना होगा। फिर भले 1989 की तरह सांसदों को इस्तीफा देना पड़े। रिश्वत कांड को नतीजे तक पहुंचाना होगा। पर अपन बात कर रहे थे आतंकी वारदातों पर सुषम उवाच की। केंद्र की गलत नीतियों से आतंकवाद को बढ़ावा मिला। सुषमा सिर्फ इतना कहती। तो गले उतर जाता। इसमें तो कोई शक भी नहीं। मनमोहन सरकार ने आतंकवाद से लड़ने की हिम्मत कभी नहीं दिखाई। हिम्मत दिखाना तो दूर की बात। अलबत्ता आतंकवादियों के प्रति नरम रवैया अपनाया। फर्क सिर्फ इतना- मुफ्ती मोहम्मद सईद ने खुल्लम-खुल्ला 'हिलिंग टच' की नीति अपनाई। पर मनमोहन सिंह ने बिना कहे आतंकियों का हिलिंग टच किया। संसद पर हमला करने वाले को फांसी न देना और क्या है। आतंकवाद विरोधी सख्त कानून पोटा हटाना और क्या है। ये दोनों सबूत काफी न हों। तो आप बताइए। मुंबई लोकल ट्रेनों में फटे बमों का कोई सुराग अब तक हाथ क्यों नहीं लगा। माले गांव के विस्फोटों का सुराग अब तक क्यों नहीं मिला। संकट मोचक मंदिर के हमलावर कहां पकड़े गए। मक्का मस्जिद में विस्फोट करने वालों का कोई सुराग क्यों नहीं। जयपुर धमाकों का भंडाफोड़ करने में केंद्र ने क्या मदद की? अब इसमें तो कोई शक नहीं। यूपीए सरकार की नीतियों से आतंकियों के हौंसले बढ़े। आतंक फैलाने वालों को यूपीए सरकार अपनी सी लगी। इसीलिए आतंकियों के निशाने पर बीजेपी शासित प्रदेश। गुजरात तो खासकर। यह सबूत है- देशभर में बड़े पैमाने पर आतंकियों की भर्ती का। इसका सबूत मंगलवार को भी मिला। सूरत में सुबह से बम मिलने शुरू हुए। शाम आते-आते अट्ठारह बम मिल चुके थे। शुकर है कोई फटा नहीं।

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