राजनीतिक अपराधों की अमरवाणी

Publsihed: 11.Jul.2008, 05:42

समाजवादी पार्टी के महासचिव अमर सिंह अचानक सुर्खियों में आ गए हैं। अब यह संयोग ही है या योजनाबध्द ढंग से रची गई सियासत कि कांग्रेस को जब अमर सिंह की जरूरत महसूस होती है, तो वह अमेरिका में होते हैं। अमेरिका से वह ऐसा ज्ञान लेकर आते हैं कि विदेशमंत्री प्रणव मुखर्जी पहली ही मुलाकात में समाजवादी पार्टी की वामपंथी दलों से पुरानी दोस्ती तोड़ देते हैं। पिछले तीन सालों से वामपंथी दलों की कांग्रेस से तकरार चल रही थी। इन तीन सालों में वामपंथी दलों ने समाजवादी पार्टी को तीसरे मोर्चे के लिए तैयार किया और उन्हें भरोसा दिया

कि वक्त आते ही चारों वामपंथी दल यूएनपीए के साथ मिलकर तीसरा मोर्चा बना लेंगे। तीसरे मोर्चे की रूपरेखा बननी उस समय शुरू हो गई थी, जब एटमी करार के खिलाफ लेफ्ट और यूएनपीए ने मिलकर दिल्ली में रैली की। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह ही नहीं, अलबत्ता अमर सिंह भी उस रैली में एटमी करार और सरकार के खिलाफ बोले थे। उत्तर प्रदेश की समाजवादी सरकार का जब कांग्रेस से छत्तीस का आंकड़ा चल रहा था, उस समय दिया गया अमर सिंह का एक बयान काबिल-ए-गौर है। उन्होंने कहा था- 'जिस तरह अमेरिकी राष्ट्रपति बुश ने इराक और अफगानिस्तान सरकारों को गिरा दिया, उसी तरह इतालवी कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी उत्तर प्रदेश सरकार को गिराना चाहती हैं।' उनके इस बयान से उनका अमेरिका विरोध भी झलकता है, और सोनिया विरोध भी। सब जानते हैं कि 1999 में सोनिया गांधी सिर्फ मुलायम सिंह के कारण प्रधानमंत्री बनती-बनती रह गई थीं। मुलायम सिंह की शर्त सिर्फ यह थी कि वह विदेशी मूल की सोनिया को समर्थन नहीं दे सकते। मुलायम सिंह के सलाहकार अमर सिंह जब सोनिया गांधी के लिए इतालवी शब्द का इस्तेमाल करते हैं, तो उनके जेहन में वही विदेशी मूल होता है। लेकिन अमेरिकी दौरे के बाद अमर सिंह अचानक अमेरिकी राष्ट्रपति बुश के समर्थक भी हो जाते हैं और इतालवी कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया के पक्ष में भी।

पुराने समाजवादियों का अब मुलायम सिंह पर कोई जोर नहीं चलता। मुलायम सिह पूरी तरह असमाजवादी अमर सिंह के इशारे पर चलते हैं। भले ही कोई खुलकर सामने न आए, लेकिन मुलायम सिंह के अमेरिकापरस्ती वाले एटमी करार के पक्ष में आ जाने से भीतर ही भीतर सभी कसमसा रहे हैं। सोनिया गांधी की मुलायम सिंह और अमर सिंह के प्रति नफरत की वजह 1999 की वह घटना ही थी, जिस कारण 2004 में घर पर समर्थन देने गए अमर सिंह को अपमानित होकर लौटना पड़ा था। अमेरिका से एटमी करार बचाने के लिए सोनिया गांधी समाजवादी पार्टी के दरवाजे पर जाती, तो बात समझ में भी आती। लेकिन अमर सिंह अचानक अमेरिका जाते हैं और लौटकर सीधा प्रणव मुखर्जी के घर पहुंचते हैं, इससे सोनिया-मुलायम रिश्तों में शहद घोलने में अमेरिका की भूमिका भी समझी जा रही है। पहली नजर में भले ही यह बात अतार्किक, आश्चर्यजनक या कुछ लोगों को हास्यास्पद लगे, लेकिन एटमी करार में अमेरिका की दिलचस्पी को जानने वालों के लिए यह बात कतई आश्चर्यजनक नहीं है। भारतीय जनता पार्टी और वामपंथी दलों ने जब एटमी करार की मुखालफत शुरू कर दी थी, तो अमेरिकी राजदूत मेलफोर्ड उन सभी राजनीतिक दलों के नेताओं से मिले थे, जो एटमी करार का विरोध कर रहे थे। अमेरिका की इस दिलचस्पी के बाद सहज ही अंदाज लगाया जा सकता है कि एटमी करार को सिरे चढ़ाने के लिए अमेरिकी प्रशासन ने भारतीय राजनेताओं को किस हद तक जाकर प्रभावित किया।

अमर सिंह अमेरिका से लौटे हैं, इसलिए वह मनमोहन सरकार बचने को लेकर कांग्रेसियों से भी ज्यादा आश्वस्त दिखाई दे रहे हैं। हालांकि उनकी अपनी पार्टी में विद्रोह के स्वर उभर रहे हैं और ज्यादा नहीं तो तीन सांसदों जयप्रकाश, मुनव्वर हसन और अतीक अहमद का वोट यूपीए सरकार के पक्ष में पड़ता दिखाई नहीं देता। इस वजह से अमर सिंह लगातार अपना संयम खोते हुए दिखाई दे रहे हैं। अमर सिंह जिन वामपंथियों का साथ कभी नहीं छोड़ने का ढिंढोरा पीटा करते थे और ताल ठोककर कहते थे कि जब तक वामपंथियों का समर्थन हासिल है, कांग्रेस उत्तर प्रदेश की मुलायम सरकार नहीं गिरा सकती। यह सच भी है, सोनिया गांधी चाहकर भी मुलायम सरकार को नहीं गिरा सकी, क्योंकि वामपंथी दलों ने केंद्र से समर्थन वापस लेने की धमकी दे दी थी। अब वही वामपंथी नेता अमर सिंह के लिए नफरत करने योग्य हो गए हैं। अमर सिंह जिस तरह की शेर-ओ-शायरी करते रहे थे, जिस तरह दूसरे दलों के नेताओं पर कीचड़ उछाला करते थे, उसके बाद कोई भी यह मानने को तैयार नहीं हो सकता कि उन्होंने हाल ही में सोनिया गांधी और प्रकाश करात के बारे में वह टिप्पणीं नहीं की होगी, जो मीडिया में चर्चा का विषय बनी। अमर सिंह ने कांग्रेस से हाथ मिलाने पर हो रही आलोचना के जवाब में कहा- 'जब प्रकाश करात सोनिया गांधी से मिलने जाते हैं, तो उसे हनीमून कहा जाता है, लेकिन जब अमर सिंह मिलने जाता है, तो उसे बलात्कार कहा जाता है।' अमर सिंह की यह भाषा हर कोई जानता है, जिस समय दस जनपथ पर उन्हें अपमानित किया गया था, उस समय उन्होंने चुड़ैल शब्द का इस्तेमाल किया था। अब जब एक चैनल ने अमर सिंह का वही पुराना वीडिया टेप चला दिया, तो वह इतने तमतमा गए कि एक प्रेस कांफ्रेंस में उन्होंने उस चैनल के रिपोर्टर को बाहर निकलने का हुक्म सुना दिया। जब तक उस चैनल का माइक वहां से नहीं हटा, जब तक उस चैनल का रिपोर्टर बाहर नहीं निकला, अमर सिंह ने प्रेस कांफ्रेंस शुरू नहीं की।

अमर सिंह ने स्वच्छ राजनीति को भी बाजारू बनाकर पेश कर दिया। राजनीतिक दल किस स्तर पर आकर राजनीति करने लगे हैं, इसका एक उदाहरण अमर सिंह के उस खुलासे के बाद राजनीतिक बयानबाजी से लगाया जा सकता है, जिसमें उन्होंने कहा था कि राष्ट्रपति पद के चुनाव के समय जसवंत सिंह ने राजग समर्थित उम्मीदवार भैरोंसिंह शेखावत को यूएनपीए के समर्थन के बदले मुलायम सिंह को प्रधानमंत्री बनने की पेशकश की थी। अमर सिंह ने यह खुलासा कुछ इस तरह किया कि जैसे जसवंत सिंह ने यह पेशकश करके कोई बहुत बड़ा गुनाह कर दिया हो। कांग्रेस ने इस पर इतनी तीखी प्रतिक्रिया जाहिर की कि जैसे उसने खुद एनडीए से जयललिता को तोड़कर वाजपेयी सरकार गिराने की साजिश नहीं रची थी। कांग्रेस ने कहा कि भाजपा ने चुनी हुई सरकार गिराने की साजिश रची थी, जो संविधान विरोधी कदम था। राजनीति के अनाड़ी भाजपा प्रवक्ता पता नहीं क्यों घबरा गए, राजनीतिक दलों के गठजोड़ से बनी सरकार को दूसरा गठबंधन संख्या बल पर कभी भी गिरा सकता है। अगर कोई सरकार गिराना असंवैधानिक होता, तो संविधान में अविश्वास प्रस्ताव का प्रावधान ही न होता। जसवंत सिंह ने इस बवाल पर सफाई पेश करते समय साफ कर दिया कि एनडीए ने राष्ट्रपति पद पर समर्थन के बदले यूएनपीए को सरकार बनाने के लिए समर्थन देने की पेशकश की थी। गठबंधन की राजनीति में यह अपराध कैसे हुआ। अगर सरकार गिराने और बनाने के लिए गठबंधन करना अपराध है, तो यह दोनों अपराध कांग्रेस पहले भी कर चुकी है और इस समय भी कर रही है। जयललिता के साथ मिलकर वाजपेयी सरकार गिराना पहला अपराध था, करुणानिधि के साथ गठबंधन करना दूसरा राजनीतिक अपराध था और आमने-सामने चुनाव लड़ने वाले वामपंथियों के साथ मिलकर सरकार बनाना तीसरा अपराध। जसवंत सिंह की पेशकश तो बड़ा अपराध तो कांग्रेस ने किया, जिसने गठबंधन धर्म की मर्यादा तोड़कर अमेरिका से एटमी करार के लिए उस राजनीतिक दल को धोखा दे दिया, जिसकी वजह से उसकी सरकार बनी थी। सिर्फ वामपंथी दलों को ही नहीं, देश को भी धोखा दिया, क्योंकि पिछले कई महीनों से कांग्रेस बार-बार कह रही थी कि यूपीए-लेफ्ट तालमेल कमेटी की रपट आने तक सरकार एटमी करार पर आगे नहीं बढ़ेगी। लेकिन कांग्रेस बीच रास्ते में गठबंधन बदलकर करार के लिए आगे बढ़ गई, तो एनडीए का बीच रास्ते में यूएनपीए से नया गठबंधन बनाना अपराध कैसे हुआ।

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