मनमोहन सिंह की धुकधुकी बंध गई होगी। अकाली दल पर आस लगाए बैठे थे। अकाल तख्त तक को अपरोच किया गया। आडवाणी को भनक लगी। तो वह प्रकाश सिंह बादल से फुनियाए। बादल बोले- 'आप फिक्र न करो जी।' मंगलवार को बादल ने शक-शुबा दूर कर दिया। उनने साफ कहा- 'अकाली दल की कांग्रेस के खिलाफ क्लियरकट पॉलिसी। हमने फैसला किया है- सरकार का समर्थन नहीं करेंगे।' वह बोले- 'मनमोहन सिंह भले आदमी। पर गलत पार्टी में हैं।' कभी यह जुमला कांग्रेसी वाजपेयी के लिए इस्तेमाल करते थे।
अबके मनमोहन के लिए इस्तेमाल हुआ। जब पूछा- 'क्या अकाली सांसद एबस्टेन रह सकते हैं?' तो उनने कहा- 'हमारे सांसद जंग-ए-मैदान से भागने वाले नहीं।' अब भी कांग्रेसी उम्मीद लगाए बैठे हो। तो बैठे रहें। अपन ने कल जिन चौदह सांसदों का खुलासा किया था। उनको जरा फिर से दोहरा दें। शिबू सोरेन के पांच, देवगौड़ा के दो, अजित सिंह के तीन, चंद्रशेखर राव के दो, उमर अब्दुल्ला के दो। पहले अब्दुल्ला की बात। तो उनने एबस्टेन रहने का इशारा करना शुरू कर दिया। चंद्रशेखर राव ने दो टूक फैसला ले लिया- 'तेलंगाना नहीं, तो वोट नहीं।' यानी ये दो वोट सरकार के खिलाफ बढ़ गए। अजित सिंह ने भले फैसला नहीं लिया। पर जाएंगे सरकार के साथ ही। अजित सिंह-देवगौड़ा आखिरी दिन फैसला करेंगे। पर देवगौड़ा के तेवर कुछ ठीक नहीं। उनने मनमोहन की मुकेश अंबानी से मुलाकात का कड़ा ऐतराज किया। यह लेफ्ट के साथ जाने का इशारा। पर यह मोल-भाव बढ़ाने का तरीका भी हो सकता है। शिबू सोरेन तो सारा हिसाब-किताब चुकता करने के मूड में। रामलखन यादव बनने की फिराक में। मनमोहन को धन्नासेठों की कमी तो है नहीं। अमेरिका से रिएक्टर बेचने वाले तो आ ही पहुंचे। उनने दोनों अंबानी भाईयों को भी बुलाया। सरकार बचाने की गुफ्तगू किस हद तक हुई। अपन नहीं जानते। पर अमर-मुलायम सौदेबाजी का नतीजा दिखने लगा। यों अंबानी घराने में दखल से मनमोहन मुसीबत में फंस गए। अग्नि परीक्षा से ठीक पहले धन्नासेठों को पीएमओ में पहले किसी ने नहीं बुलाया था। लेफ्ट का लाल-पीला होना जायज। लेफ्ट लाल-पीला हुआ, तो पीएमओ से संजय बारू ने सफाई दी। यानी मनमोहन अपने बचाव पर उतर आए। दिल की धड़कन भले ही बढ़ चुकी हो। पर मनमोहन किसी को शक नहीं होने दे रहे। मंगलवार को चैनल एडिटरों को बुलाकर जीत का गणित समझाया। मनमोहन जब गणित समझा रहे थे। रामविलास पासवान तब लेफ्ट से पुनर्विचार की गुहार लगा रहे थे। हवा के रुख को पासवान से ज्यादा कोई नहीं जानता। हवा किधर जा रही है- सूंघकर वक्त से पहले फैसला लेने के माहिर। तभी तो यूएफ, एनडीए, यूपीए सब सरकारों में मंत्री रहे। तेरह-चौदह साल और कोई गैर कांग्रेसी केंद्र में मंत्री नहीं रहा। पासवान की हवा खिसकने का मतलब समझिए। और नहीं तो मुंबई में शेयर मार्केट गिरने का मतलब समझिए। मंगलवार को 654 अंक गिर गया। पर अपन बात करें जमा-घटाओ की। कांग्रेस को बीएसपी के बागी उमाकांत यादव पर बड़ी उम्मीद। मायावती भी कम नहीं। उनने मंगलवार को जेल में जाकर यादव से मुलाकात की। जब सपा-आरजेडी अपने उम्र कैदी सांसदों को वोट के लिए बुला रहे हों। जब एक-एक सांसद जरूरी हो। तो गिले-शिकवे दूर करने में क्या हर्ज। कांग्रेस की मुसीबतें कम होने का नाम नहीं ले रही। अब करुणानिधि के सताए दयानिधि मारन के एबस्टेन रहने का खतरा। इस जमा-घटाओ के बीच जुबानी जंग भी जारी। आडवाणी ने अपने सुधींद्र कुलकर्णी के लेख का जुमला क्या कसा। अमर सिंह को अपनी मूछ में तिनका दिखने लगा। कुलकर्णी ने लिखा था- 'कांग्रेस पहले कहती थी- लाल सलाम। अब कहती है- दलाल सलाम।' अब किसी ने भी अमर सिंह को दलाल नहीं कहा। पर वह बोले- 'आडवाणी ने यह मेरे लिए कहा है।' अब अमर सिंह दाड़ी तो रखते नहीं। सो चोर की मूछ में तिनका हुआ।
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