अपन ने कल यूपीए का ताजा आंकड़ा 268 बताया था। कांग्रेस के एक केंद्रीय मंत्री ने इसी को ठीक बताया। बोला- 'वैसे भी तब सदन में 535 से ज्यादा सांसद नहीं होंगे। हमारे पास 268-270 का पक्का जुगाड़।' अपन कोई ज्योतिषी नहीं। जो ज्योतिष लगाकर बताएं। चुनावों से डरकर इक्का-दुक्का सांसद सरकार बचा दें। तो अलग बात। वरना सांसदों का आंकड़ा हर रोज घटने लगा। अपन ने यूपीए के 268 सांसद बताए थे। उनमें मुलायम के बेनी-बब्बर समेत 37 गिने थे। पर अब मुलायम के 35 सांसद रह गए। सो अपना ताजा आंकड़ा 266 का। इसमें अपन ने जेडीएस का बागी विरेंद्र कुमार, बीएसपी का बागी उमाकांत, टीआरएस का बागी ए. नरेंद्र जोड़ लिया। मुस्लिम लीग ने शुक्रवार को करार का विरोध कर दिया।
मुस्लिम लीग के दो सांसद। करार की मुखालफत के बाद भी सरकार को वोट करेंगे। पर करार होते ही ई. अहमद इस्तीफा दे देंगे। यह रणनीति केरल की राजनीतिक मजबूरी की वजह से। केरल की बात चली तो बता दें। केरल एसेंबली ने शुक्रवार को करार के खिलाफ प्रस्ताव पास किया। केरल की एसेंबली भी लाजवाब। इससे पहले कोयंबटूर बम धमाकों वाला प्रस्ताव याद होगा। आडवाणी जब फरवरी 1998 में कोयंबटूर के दौरे पर थे। तो एक साथ कई जगह बम धमाके हुए। करीब चालीस लोग मारे गए। केरल के अब्दुल नासिर मदनी बम धमाकों के आरोप में धरे गए थे। केरल एसेंबली ने मदनी की रिहाई के लिए प्रस्ताव पास किया। तब कांग्रेस और वामपंथी एक साथ थे। सो अब कांग्रेस किस मुंह से ऐसे प्रस्ताव को संविधान विरोधी बताएगी। पर अपन बात कर रहे थे मुस्लिम लीग की। जो केरल में कांग्रेस के साथ। यूपीए सरकार में भी शामिल। बात यूपीए की चली। तो बताते जाएं। हैदराबाद वाले ओवेसी यूपीए में शामिल। पर शुक्रवार को यूपीए की मीटिंग से नदारद थे। मुस्लिम लीग की तरह वह भी खुल्लम-खुल्ला करार के खिलाफ। सो आप बाकी मुस्लिम सांसदों को करार का समर्थक मत समझिए। मुलायम के एक-दो सांसद और भी खिसके। तो अपन को हैरानी नहीं होनी। पर अपन ने यूपीए के जो 266 सांसद बताए। उनमें झारखंड मुक्तिमोर्चा के पांचों को भी पक्का न मानिए। भले ही हेमराज मुरमु मीटिंग में आए। पर शिबू सोरेन की गैरहाजिरी से अपने तो कान खड़े हुए। मुरमु यूपीए मीटिंग में कोई वादा करके नहीं गए। शिबू सोरेन बोकारो स्टील सिटी में बोले- 'फैसला वक्त आने पर करेंगे।' सोचो, एनडीए से झारखंड सरकार बनाने का सौदा हो गया। तो मनमोहन सरकार का क्या होगा। तब आप 266 में से पांच और घटा दीजिए। वैसे अभी आने वाले दस दिनों में और भी उतार-चढ़ाव होंगे। डीएमके-पीएमके के रिश्ते तो टूट ही चुके। पीएमके को चुनाव में नया गठजोड़ तो चाहिए ही होगा। चुनाव नवंबर में न हुए। तो क्या हुआ, अप्रेल में तो होंगे ही। सो पीएमके अभी खिसककर जयललिता से जा मिला। तो छह सांसद और घटा लीजिए। एनडीए से ममता बनर्जी भले ही यूपीए के साथ जाए। पर अकालियों के बारे में सोचते हों। तो दिल बहलाने के लिए सिर्फ ख्याल ही अच्छा है। इससे ज्यादा कुछ भी नहीं। सो आप अंदाज लगाइए। अब निर्दलीयों की कीमत कितनी बढ़ी होगी। एक-एक, दो-दो सांसदों वाली पार्टियों का भाव कितना बढ़ा होगा। देवगौड़ा-अजित सिंह राजनीतिक कीमत क्यों न वसूलेंगे। कौन कब किस खेमे में जाए। कौन जाने। अभी तो दस दिन बाकी। बयानबाजी पर मत जाइए। करात भी उमर अब्दुल्ला-देवगौड़ा के संपर्क में। राजनीतिक उठा-पटक ही काफी नहीं। घोड़ामंडी भी अपना रंग दिखाएगी। इस बार घोड़ामंडी का रेट नरसिंह राव के जमाने वाला नहीं। तब घोड़ामंडी में महंगा से महंगा घोड़ा एक करोड़ में बिका था। अबके घोड़ों की कीमत दस करोड़ तक जा पहुंची। आखिर मुद्रास्फीति भी तो दिन-प्रतिदिन बढ़ने लगी। इस हफ्ते का ताजा आंकड़ा देखा आपने। ताजा मुद्रास्फीति 11.89 पर आ गई। जब तक चुनाव होंगे। तब तक तो और बढ़ेगी।
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