संसद से भी हो गया धोखा अब सिख पीएम की दुहाई

Publsihed: 11.Jul.2008, 06:23

अपन मौजूदा एटमी करार के हिमायती कभी नहीं रहे। अपन ने बीजेपी-लेफ्ट से पहले करार की खामियां निकाली। तीन अगस्त 2007 को वन-टू-थ्री का ड्राफ्ट जारी हुआ। तो अपन ने 'अपनी सुरक्षा और ऊर्जा अमेरिका की मोहताज बताई थी।' अपन ने वे नुक्ते भी गिना दिए थे। जो काबिल-ए-ऐतराज थे। आईएईए सेफगार्ड के ड्राफ्ट में उन नुक्तों से मुक्ति नहीं। भले ही ड्राफ्ट में इस बात का जिक्र नहीं। अपन ने एटमी विस्फोट किया। तो क्या होगा। हां, ड्राफ्ट में यह साफ लिखा है- 'अगर विदेशी ईंधन की सप्लाई में बाधा आए। तो भारत सुधारवादी उपाय कर सकता है।' इसका एक मतलब तो यह हुआ- भारत को यूरेनियम का भंडार करने का हक।

ताकि सनद रहे सो अपन याद करा दें। अपन ने सत्ताईस जून को जब अल बरदई की मदद का जिक्र किया। तो अपन ने लिखा था- सेफगार्ड ड्राफ्ट में 'नए प्रतिबंधों के बाद भारत को वैकल्पिक ईंधन का बंदोबस्त करने का हक होगा।' ड्राफ्ट में हू-ब-हू वही निकला। ताकि सनद रहे सो एक और बात याद करा दें। अपन ने उन्नीस जून को लिखा था- 'ड्राफ्ट में लिखा है- भारत के लिए सेफगार्ड बुश-मनमोहन समझौते के कारण तय हुए।' बुधवार की आधी रात के बाद अपने हाथ ड्राफ्ट आया। तो उसके दूसरे ही पेज पर लिखा था- 'इस करार की जरूरत भारत-अमेरिका के 18 जुलाई 2005 के साझा बयान से पैदा हुई।' अपन मतलब की बात पर आएं। अमेरिका से होने वाले वन-टू-थ्री की खामियां जस-की-तस। हां, आईएईए सेफगार्ड ड्राफ्ट बुरा नहीं। इसीलिए जो प्रकाश करात बुधवार की रात ड्राफ्ट पर आशंकित थे। उनने गुरुवार को चुप्पी साध ली। मोटे तौर पर वही है। जो होना था। अपने सारे एटमी ऊर्जा प्लांट आईएईए की निगरानी में होंगे। जो ड्राफ्ट में नहीं। सो बता दें। निगरानी के लिए अपन को हर साल आठ सौ चालीस करोड़ देना होगा। प्लांट बढ़ेंगे, तो हर प्लांट पर साठ करोड़ का निगरानी खर्चा। पर बात सेफगार्ड के बढ़िया होने की नहीं। मनमोहन सिंह ने जो तौर-तरीका अपनाया। वह लोकतांत्रिक कतई नहीं। न उनने राजनीतिक दलों की सहमति ली। न संसद की सहमति ली। आधी रात को सेफगार्ड ड्राफ्ट आईएईए गवर्निंग बोर्ड को भेज दिया। प्रणव मुखर्जी ने आठ जुलाई को कहा था- 'सरकार संसद में बहुमत साबित किए बिना आगे नहीं बढ़ेगी।' मनमोहन सिंह ने नौ जुलाई को बुश के साथ नाश्ता क्या किया। संसद से बहुमत हासिल करने का वादा भूल गए। अपन इसे संसद से धोखा न कहें। तो क्या कहें। मनमोहन ने संसद की परवाह नहीं की। अमेरिकी राष्ट्रपति बुश के इशारे पर फैसला किया। सो अब बात एटमी करार के होने, न होने की नहीं। बात देश की स्वतंत्र विदेश नीति के दांव पर लगने की। बात लोकतंत्र अमेरिका के हाथ में गिरवी रखने की। मनमोहन सरकार रहे, न रहे। पर एटमी करार का ऑपरेशनालाइजेशन शुरू हो चुका। सेफगार्ड ड्राफ्ट जारी होते ही अमेरिका एनएसजी देशों को पटाने के लिए जैसे एक्टिव हुआ। अमेरिका का मुनाफा उसी से समझ लेना चाहिए। अमेरिकी राजदूत मलफोर्ड एनएसजी देशों से पैरवी करने लगे। यों आईएईए मीटिंग 28 जुलाई को संभव। अब मनमोहन का इरादा संसद से बचने का। वैसे बचना इतना आसान भी नहीं होगा। अपन ने पिछले दो दिन बहुमत का जमा-घटाओ बताया। गुरुवार को गाड़ी जरा आगे नहीं सरकी। अपना पिछला आंकड़ा 269 का था। पर उसमें अपन ने भजन लाल के बेटे कुलदीप को जोड़ लिया था। उसे घटाकर अब 268 समझें। कांग्रेस को अब सिर्फ अकाली दल पर उम्मीद। पहले सिख प्रधानमंत्री को बचा लें। अकाली भी गंभीर दुविधा में। देश का पहला सिख प्रधानमंत्री बचाएं। या अकाल तख्त पर हमलावर पार्टी का बताकर बोले सो निहाल कर दें।

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