अपन को लगता था- जून में गिरेगी सरकार। महंगाई ने फन न फैलाए होते। तो चौदहवीं लोकसभा का राम-नाम-सत्य इसी महीने होता। जून तय करने की अपने पास वजह थी। आईएईए चीफ अल बरदई जुलाई के आखिर में रिटायर होंगे। आईएईए से सेफगार्ड के लिए बरदई सबसे मुफीद। सो मनमोहन चाहते हैं- बरदई के रहते सेफगार्ड तय हो जाएं। यों तो आईएईए की जनरल बॉडी मीटिंग 29 सितंबर से चार अक्टूबर तक। तभी बोर्ड ऑफ गवर्नर की मीटिंग भी होगी। ताकि सनद रहे। सो अपन बता दें। अपन बाकी 143 देशों की तरह आईएईए की जनरल बॉडी के मेंबर। पर अपन 35 सदस्यीय बोर्ड ऑफ गवर्नर के मेंबर नहीं।
आप हैरान होंगे- पाकिस्तान और चीन बोर्ड ऑफ गवर्नर के मेंबर। सो बोर्ड ऑफ गवर्नर में सेफगार्ड इतने आसान भी नहीं। फिर भी अल बरदई अपने हिमायती। अल बरदई ने खुद एटमी करार में दिलचस्पी दिखाई। वह भारत आकर मनमोहन से मिले। लेफ्ट को पटाने का फार्मूला भी बता गए। फार्मूला था- 'रूस-चीन का समर्थन हासिल करो। लेफ्ट एटमी करार का विरोध छोड़ देगा।' अल बरदई की मानकर मनमोहन रूस गए। सोनिया चीन गईं। लेफ्ट को इसी बात का मलाल। पीएम जब रूस गए। तो रिएक्टर का सौदा सिरे क्यों नहीं चढ़ाकर आए। पीएम बोले- 'बिना सेफगार्ड करार कैसे करते।' पर अपन बात कर रहे थे अल बरदई की। यों सेफगार्ड का खुलासा अभी नहीं हुआ। पर अपन को कूटनीतिक जानकार ने बताया- 'अल बरदई ने भारत को दो रियायतें दिलवाई।' अपन उन रियायतों का खुलासा भी कर दें। पहली- 'अगर किसी हालत में भारत पर नए प्रतिबंध लगे। तो भारत को सभी चौदह न्यूक्लियर रिएक्टरों की निगरानी बंद कराने का हक होगा।' दूसरी- 'नए प्रतिबंधों के बाद भारत को वैकल्पिक ईंधन का बंदोबस्त करने का हक होगा।' ऐसे अल बरदई के रहते सेफगार्ड तय हों। तो फायदा होगा। ऐसा मनमोहन-प्रणव का अंदाज। सो रणनीति थी- 'जून के आखिर में बोर्ड ऑफ गवर्नर की मीटिंग के लिए चार हफ्ते का नोटिस दिया जाए। जुलाई के आखिर में बोर्ड की मीटिंग होगी। तो अल बरदई मददगार होंगे।' यों भी सितंबर में अमेरिकी कांग्रेस ने वन-टू-थ्री ओके न किया। तो नवंबर की कांग्रेस मीटिंग में मुश्किल। तब तो बुश सरकार आखिरी सांस गिन रही होगी। सो बकौल एक केबिनेट मंत्री रणनीति थी- 'जुलाई में आईएईए। अगस्त में एनएसजी। सितंबर में अमेरिकी कांग्रेस।' अब अल बरदई के जाने के बाद तो मुश्किल होगी। सो प्रणव दा ने गुरुवार को फिर कोशिश की। सीताराम येचुरी की लल्लो-चप्पो की। सुनते हैं प्रणव दा ने कहा- 'जेसे दस महीने निकाल लिए। आप किसी तरह दो महीने और निकाल लो। हमें एनएसजी तक जाने दीजिए। तब तक मुद्रास्फीति भी थोड़ा गिर जाएगी। तब समर्थन वापस लीजिए।' यानी मनमोहन चाहते हैं- आईएईए-एनएसजी पार हो जाए। तब तक लेफ्ट गीदड़ भभकियां देता रहे। अपन भरोसेमंदों पर भरोसा जारी रखें। तो उनने अपन को बताया- 'बुधवार की मीटिंग में करार पर कम बात हुई। चुनाव के वक्त पर ज्यादा हुई। कांग्रेस दो महीने की मोहलत मांगती रही।' कांग्रेस फरवरी में चुनाव के हक में। यह कोई अपनी अटकलबाजी नहीं। सोनिया से मुलाकात के बाद गुरुवार को राजशेखर रेड्डी ने बताया। सोनिया चुनावी तैयारियों में जुट चुकी। विलासराव, हुड्डा, शीला दीक्षित, गुलाम नबी के बाद गुरुवार को रेड्डी की बारी थी। यों भी आंध्र के चुनाव लोकसभा के साथ कराने की तैयारी। कांग्रेस ही नहीं। सरकार भी तैयारियों में जुट गई। मनमोहन ने तीन नए गवर्नर बना दिए। ओबीसी का बैकलॉक भरने का फैसला किया। अपन को तो मानसून सत्र होने पर भी शक। पर लेफ्ट-कांग्रेस में गुप्त समझौता हो गया। तो दोनों अगस्त के आखिर तक नूराकुश्ती करेंगे। इस बीच बीजेपी की तैयारियां भी शुरू। आडवाणी समेत छह उम्मीदवारों का ऐलान तो हो भी गया।
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