सोनिया अब मंदिरों में घंटियां बजाने लगी। शिरडी के साईं बाबा से निपटी। तो उज्जैन में भोले भंडारी के दरबार में पहुंची। महाकालेश्वर को सोने का छत्र चढ़ाने की मन्नत मानी। बंगाल के लेफ्टिए भले ही दुर्गा पूजा में धोती पहनकर आरती करें। पर केरल के लेफ्टिए मोटे तौर पर नास्तिक। सो प्रकाश करात घंटियां बजाने से चिढ़ न गए हों। अपन को तो यही खतरा। सोनिया ने किसलिए पूजा की। किसलिए मन्नत मानी। राजनीतिक गलियारों में चुटकलेबाजी चलती रही। पर बुधवार को आंखें दिखाने वाले करात शुक्रवार को नरम दिखे। बोले- 'हम चाहते हैं, सरकार अपना वक्त पूरा करे।'
मनमोहन सिंह की जान में जान आई होगी। वरना उनने तो गुरुवार को ही बिस्तर पकड़ लिया था। खबरचियों ने पूछा। तो अभी छोड़कर नहीं गए संजय बारू ने हामी भरी। बोले- 'हां, बीमार पड़ गए हैं।' शायद मनमोहन की बीमारी का असर रहा हो। जो प्रकाश करात नरम दिल दिखे। पवार ने करात से मिलकर नाजुक हालत की खबर दी। प्रणव दा शुक्रवार रात विएना जाने से पहले फिर करात-मनमोहन से मिले। पवार को अपने पीछे से बात संभालने का जिम्मा भी दिया। पवार ने भी करात से मुलाकात कर मनमोहन को रपट दी। यों तो मनमोहन की मेल-मुलाकातें सारी बंद। पर अमेरिकी करार के लिए दरवाजे हमेशा खुले। यों शुक्रवार को एटमी करार से ज्यादा महंगाई छाई रही। सोनिया की पूजा-अर्चना सिर्फ करार संकट पर नहीं। सोनिया की फिक्र महंगाई को लेकर ज्यादा। वह ऐतिहासिक शुक्रवार आ ही गया। जिसका अंदेशा अपन ने पांच जून को जताया था। जब अपन ने लिखा- 'मनमोहन महंगाई का अपना रिकार्ड तोड़ेंगे।' तो अपन ने लिखा था- 'जून के आखिर में अपनी मुद्रास्फीति नौ के पार होगी। तब मनमोहन तेरह साल पुराना अपना ही रिकार्ड तोड़ेंगे। सितंबर 1995 में मनमोहन ने बनाया था रिकार्ड।' अपन ने जब महंगाई के तेरह जून के तेवर देखे। तो अपन ने चौदह जून को यहीं पर छापा था- 'ताकि सनद रहे सो बता दें। जुलाई आते-आते मुद्रास्फीति दस फीसदी से पार न हो। तो अपन को कहना।' जुलाई तो अभी दस दिन दूर। मुद्रास्फीति अभी ग्यारह फीसदी से ऊपर हो गई। लगातार दो महीनों से बढ़ रही है महंगाई। मनमोहन सिंह की सारी डाक्टरी धरी रह गई। चिदंबरम के सारे दावे काफूर हो गए। शुक्रवार को चिदंबरम आंकड़ेबाजी करते रहे। पर आंकड़ों से पेट नहीं भरता। पेट भरने वाली सभी चीजों के दाम डेढ सौ फीसदी बढ़ गए। चार साल में जैसा विकास हुआ। वह भी किसी से छिपा नहीं। बात विकास की चली। तो बताते जाएं। सोनिया उज्जैन में विकास का डंका बजाती दिखी। पर दस साल दिग्गी राजा का विकास मध्यप्रदेश ने खूब देखा। बिपासा का ही जादू सिर चढ़कर बोला था। तभी कांग्रेस धराशाही हुई। बिपासा अपनी आधे-अधूरे कपड़ों वाली हीरोइन नहीं। बि-पा-सा यानी बिजली, पानी, सड़क। पिछली बार कांग्रेस को बिजली, पानी, सड़क ने ही हरवाया। पर बात मौजूदा मुद्रास्फीति की। जो सारे रिकार्ड तोड़ चुकी। कांग्रेस शुक्रवार को बदहवास, घबराई सी दिखी। अपने शकील अख्तर ने मुख्यमंत्रियों की मीटिंग बुलाने की सलाह दी। जब अदना सा राज्यमंत्री प्रधानमंत्री को सलाह दे। तो समझो, अब कांग्रेस की नजर में मनमोहन कितने अनाड़ी। पर अपन याद करा दें। यही सलाह बीजेपी पहले ही दे चुकी। शुक्रवार को बीजेपी-कांग्रेस के बयान एक जैसे रहे। राजनाथ सिंह बोले- 'हम विकास दर बढ़ा रहे थे। मनमोहन सिंह महंगाई बढ़ा रहे हैं।' उनने अपनी भड़ास लेफ्टियों पर भी निकाली। बोले- 'कम्युनिस्टों को भारत की नहीं। अलबत्ता फिक्र चीन की। महंगाई पर कम्युनिस्टों का विरोध सिर्फ दिखावटी। न महंगाई पर समर्थन वापस लेंगे। न एटमी करार पर।' राजनाथ की तरह ही वीरप्पा मोइली बोले- 'विकास दर की बात छोड़िए। आप तो महंगाई रोकिए।'
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