अपन बिना लाग-लपेट फिर से बता दें। अपन ऐसे एटमी करार के कतई हिमायती नहीं। जो अपन को एटमी ताकत बनने से रोके। मनमोहन की दिलचस्पी अपन को एटमी ताकत बनाए रखने की नहीं। अलबत्ता अमेरिका से एटमी ईंधन करार की। अपने हाथ भले बंध जाएं। पर अमेरिका के न्यूक्लियर रिएक्टर बिकने चाहिए। अमेरिका का एटमी ईंधन आना चाहिए। फिर भले ही चोर दरवाजे से एनपीटी अपन पर लागू हो जाए। इंदिरा-वाजपेयी ने दुनिया का मुकाबला किया। तब जाकर अपन को एटमी ताकत बनाया।
यों नरसिंह राव भी टेस्ट करना चाहते थे। यह राज खुद राव ने अटल बिहारी के सामने खोला था। तेईस दिसंबर 2004 को राव इस दुनिया से विदा हुए। तो वाजपेयी ने खुलासा किया- 'जब मैं 1996 में पहली बार पीएम बना। तो नरसिंह राव ने मुझे फाइल दी थी। कहा था- जो मैं नहीं कर सका, अब तुम करो।' वाजपेयी भी कैसे करते। सलाहकारों का कहना था- 'बहुमत साबित करने से पहले न्यूक्लियर टेस्ट करना गलत होगा।' पर 1998 में वाजपेयी पीएम बने। तो सबसे पहला काम देश को एटमी ताकत बनाने का किया। अपने नटवर सिंह भले ही अब बीजेपी के करीब दिखाई दें। पर जब वह मनमोहन के विदेश मंत्री थे। तो उनने कोरिया में जाकर कहा- 'जो गलती भारत ने की, वह आप मत करिए।' यानी वाजपेयी की जगह राजीव या मनमोहन सरकार होती। तो 1998 का न्यूक्लियर टेस्ट नहीं होता। मनमोहन तो ऐसे वन-टू-थ्री समझौते को मचल रहे हैं। जिसमें हाईड एक्ट के तहत अपन पर भविष्य में टेस्ट पर रोक। यही हाईड एक्ट अब वन-टू-थ्री एग्रीमेंट में बाधा। यों अमेरिका में भी बुश-मनमोहन एटमी करार के विरोधी। विरोधी कहते हैं- 'जब तक भारत एनपीटी पर दस्तखत न करे। तब तक एटमी ईंधन न दिया जाए।' यह तो शुकर है, जो लेफ्टिए अमेरिका विरोधी। करार अपने हक में होता। तब भी लेफ्टिए विरोध करते। मनमोहन की सरकार लेफ्टियों की मोहताज न होती। तो अब तक आईएईए से सेफगार्ड तय हो जाते। एनएसजी में बात चल रही होती। आईएईए से बात अब आखिरी मोड़ पर। जून में सेफगार्ड तय न हुए। तो करार की भैंस गई पानी में। पर लेफ्टिए मंगलवार की रात तक नहीं माने। प्रणव मुखर्जी आखिरी कोशिश करने गए थे। अपने एनएसए नारायणन ने भी करात से गुहार लगाई। येचुरी सोनिया से मिले। बात नहीं बनी। सो बुधवार की मीटिंग रद्द करनी पड़ी। जब नतीजा ही नहीं दिखा। तो मीटिंग का क्या फायदा होता। मीटिंग होती, तो आर-पार होता। अपने कपिल सिब्बल मीटिंग के लिए विदेश से लौटे। सिब्बल-प्रणव गुफ्तगू भी हुई। प्रणव दा सोनिया से भी मिले। सब खाली थे, खलबली मची थी। पर बताया गया- 'मीटिंग विदेशी मेहमान सीरिया के राष्ट्रपति की मौजूदगी के कारण रद्द हुई।' पर यह तो बहानेबाजी। यह वजह होती, तो प्रणव दा बौखलाए मुलाकातें न कर रहे होते। हफ्तेभर बाद मीटिंग में भी क्या होगा। पच्चीस जून का दिन वैसे भी अपन को कभी नहीं भूलता। उस दिन इंदिरा गांधी ने देश पर इमरजेंसी लगाई थी। पर बात लेफ्ट-यूपीए में नए टकराव की। सुनते हैं बात आईएईए ड्राफ्ट की मांग पर अटकी। प्रणव दा ड्राफ्ट दिखा दें। तो पोल खुल जाएगी। ड्राफ्ट में लिखा है- 'भारत ने एनपीटी पर दस्तखत नहीं किए। भारत गैर एटमी देश। भारत के लिए सेफगार्ड बुश-मनमोहन समझौते के कारण तय हुए।' यानी इंदिरा-वाजपेयी की मेहनत पर ही पानी नहीं। देश के वैज्ञानिकों के किए-धरे पर भी मिट्टी। प्रणव दा ने लेफ्ट को चारा डाला- 'आईएईए से सेफगार्ड तय होने दो। एनएसजी से छूट मिलने दो। पहले करार रूस से करेंगे।' पर अब तक अड़े लेफ्टिए अब अपना उगला कैसे निगलें। सो अब घड़ी आ गई। या तो करार खत्म। या सरकार खत्म। अपन बता दें- करार विरोधी अमेरिकियों ने तो बुधवार को करार की मौत का जश्न मना लिया। यूपीए खेमे में मातम दिखाई दिया।
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