अपन को जून पहले से फैसलाकुन लगता था। जो अपन गाहे-ब-गाहे लिखते रहे। जून में आईएईए से करार न हुआ। तो अमेरिकी कांग्रेस की मियाद भी खत्म। बुश के रहते तो एटमी करार की भैंस गई पानी में। सो मनमोहन सिंह की धुकधुकी बढ़ गई। सरकार हो या कांग्रेस। मुसीबत की घड़ी आए। तो कुंडी खटकती है प्रणव दा की। महिला आरक्षण पर मुश्किल में फंसे। तो प्रणव दा हल निकालें। एटमी करार की घुंडी फंसे। तो प्रणव दा घुंडी निकालें। अपन एटमी करार पर तो बात करेंगे ही। पहले महिला आरक्षण की बात।
सोनिया ने पहले शिवराज पाटिल को जिम्मा सौंपा। हुआ वही, जो होना था। पाटिल के जिम्मे कोई काम लगे। वह पूरा हो जाए, हो ही नहीं सकता। सो आखिर जिम्मा प्रणव दा को सौंपा गया। तो प्रणव दा ने एआईसीसी में मीटिंग बुलाई। आधा दर्जन मंत्री, साथ में सारी महिला नेता। सलाह-मशविरे के बाद ऑन रिकार्ड बोले- 'कांग्रेस स्टेंडिंग कमेटी में तैंतीस फीसदी पर ही जोर देगी।' पर निकला कुछ और। प्रणव दा ने जो चिट्ठी लिखी। उसमें तैंतीस फीसदी की बात नहीं। अलबत्ता स्टेंडिंग कमेटी से आम सहमति बनाने की गुजारिश। कहा गया- 'स्टेंडिंग कमेटी ओबीसी, अल्पसंख्यक सब कोटे-अनुपात पर फैसला करे। कोई आम सहमति वाला हल निकाले।' महिला आरक्षण में यही दो फच्चर। जो पिछले दस साल से नहीं निकले। तो अब कैसे निकलेंगे। अपन नहीं जानते। पर कांग्रेस की नियत में अपन को खोट दिखा। कांग्रेस ओबीसी-मुस्लिम की नाराजगी क्यों झेले। सो कांग्रेस ने भी फैसला स्टेंडिंग कमेटी पर छोड़ दिया। पहले कांग्रेस का स्टेंड यह नहीं था। कांग्रेस का स्टेंड सिर्फ तैंतीस फीसदी आरक्षण का था। राजनीति के अनाड़ी भी जानते हैं। जब लोकसभा में ओबीसी-मुस्लिम आरक्षण नहीं। तो महिला सांसदों-विधायकों में आरक्षण कैसे होगा। आप ओबीसी-मुस्लिम औरतों को आरक्षण देंगे। तो ओबीसी-मुस्लिम मर्दों का क्या कसूर। पूरा संविधान बदलना पड़ेगा। ताकि सनद रहे, सो बता दें। संविधान सभा में नेहरू-अंबेडकर ऐसे आरक्षण के खिलाफ थे। अब बात अनुपात की। यानी तैंतीस फीसदी पर भी अब कांग्रेस की वैसी जिद नहीं। खबर तो यहां तक आई- 'प्रणव दा ने लालू यादव से बीस फीसदी पर सहमति मांगी।' यों अपन चलते-चलते एनडीए राज की याद दिला दें। प्रमोद महाजन जब पार्लियामेंट्री अफेयर मिनिस्टर थे। अरुण जेटली जब लॉ मिनिस्टर थे। तो एक ऑल पार्टी मीटिंग हुई थी। उस मीटिंग में मुलायम ने आठ-दस फीसदी पर सहमति दी थी। पर बात स्टेंडिंग कमेटी की। मंगलवार को हुई मीटिंग में लेफ्ट तैंतीस फीसदी पर ही अड़ा रहा। लेफ्ट ने एटमी करार पर भी स्टेंड नहीं बदला। बुधवार को यूपीए-लेफ्ट की एक और मीटिंग होगी। सोमवार की रात प्रणव दा ने फिर कोशिश की। प्रकाश करात से गुहार लगाई। जैसा अपन को शुरू से लगता था। यूपीए सरकार ने रूस को ढाल बनाया। करात से प्रणव दा बोले- 'आईएईए से सेफगार्ड समझौता होने दो। रूस-फ्रांस से एटमी ईंधन का रास्ता खुलेगा।' पर प्रकाश करात ने दो टूक कह दिया- 'आपने जब आईएईए से बात शुरू की। तो वन-टू-थ्री करार को सिरे चढ़ाने के लिए थी। तब आपने रूस-फ्रांस की बात नहीं की। आप तो अलबत्ता रूस और फ्रांस हो भी आए। वहां तो उनसे एटमी करार नहीं किया। रूस में तो एटमी करार होना था। आप ने जान-बूझकर नहीं किया।' यानी करात ने खरी-खरी सुना दी। मंगलवार को करात ने एबी वर्धन को प्रणव दा से हुई बात बताई। तो बाहर निकलते वर्धन बोले- 'हमारे रुख में कोई बदलाव नहीं।' यानी आज की मीटिंग भी फैसलाकुन नहीं होगी। मनमोहन सरकार ने मंगलवार को आखिरी दांव खेला। जब अपनी राजनीति में विदेशी दखल शुरू हुआ। रूस के राजदूत प्रेस कांफ्रेंस करके बोले- 'अमेरिका से एटमी करार भारत के लिए मुनाफे का सौदा। देर-सबेर करार पर दस्तखत होंगे ही। करार में भारत-अमेरिकी ही नहीं। अलबत्ता पूरी दुनिया की दिलचस्पी। भारत जितना जल्दी दस्तखत करे। उतना अच्छा।'
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