नरेंद्र मोदी से फिर उलझ गई कांग्रेस। गांवों में एक कहावत है- 'मोटे-तगड़े आदमी से बार-बार मार खा रहा एक बंदा हार मानने को तैयार नहीं था। जरा सा संभलता, तो चुनौती देकर कहता- अब के मार। इस पर मोटा तगड़ा आदमी एक झापड़ और देता। मार खाने वाला संभलकर फिर कहता- अबके मार।' गुजरात से बार-बार मार खा रही कांग्रेस का यही हाल। वह हर बार मोदी से कहती है- अबके मार। अपने मनीष तिवारी जिस तरह मोदी से भिड़ गए। अपन को तिवारी के लिए इससे बढ़िया कहावत और नहीं मिली। सबसे पहले तो अपन मोदी का वड़ोदरा वाला दस जून का भाषण बताएं।
बोले- 'केंद्र में हिम्मत हो, तो एक साल गुजरात को कुछ न दे। गुजरात से कुछ न ले। गुजरात केंद्र को हर साल चालीस हजार करोड़ देता है। बदले में केंद्र उसका ढाई फीसदी देता है।' इस पर ग्यारह जून को मनीष तिवारी खूब तिलमिलाए। बोले थे- 'नरेंद्र मोदी पर देशद्रोह का मुकदमा चलना चाहिए।' तो अपने नरेंद्र भाई ने पंद्रह जून को सूरत में चुनौती कबूल की। बोले- 'केंद्र सरकार में हिम्मत हो। तो देशद्रोह का मुकदमा चलाए, देर न करे, मुझे फांसी पर चढ़ा दें। पर कांग्रेस सरकार ऐसा कैसे करेगी। वह तो संसद पर हमला करने वाले अफजल को फांसी नहीं दे रही।' अपन को तो यह मोदी की अफजल से तुलना नहीं लगी। सिर्फ कटाक्ष लगा। पर तिवारी को यह कटाक्ष समझ नहीं आया। बोले- 'वह खुद की अफजल से तुलना करें। तो हम क्या कहें।' यानी तिवारी को अफजल और मोदी में फर्क नहीं लगता। पर असल बात देशद्रोह के मुकदमे की। जो उनने छोटा मुंह, बड़ी बात की थी। अब मोदी की चुनौती पर बोले- 'राष्ट्रहित में जो भी जरूरी होगा, किया जाएगा।' यानी राष्ट्रद्रोही कहा है, तो राष्ट्रहित में मुकदमा चलाया जाएगा। ताकि सनद रहे, सो अपन याद करा दें। यही बात एक बार माधव राव सिंधिया ने संसद में कही थी। वह भी तब, जब वह राव सरकार में मंत्री थे। पर बाद में शब्द वापस लिए, माफी भी मांगी। पर यह तू-तू, मैं-मैं संसद के बाहर की। जिसमें तू-तड़ाक के सिवा कुछ नहीं निकलना। सो फिलहाल बात गुजरात से केंद्र को टैक्सों के हिस्से की। केंद्र से गुजरात को अनुदान की। मनीष तिवारी ने उस दिन ताल ठोकी- 'केंद्र के पास राज्यों से मिलने वाले टैक्सों का कोई ब्योरा नहीं होता। नरेंद्र मोदी पता नहीं कहां से लाए।' अपन ने तब तिवारी से बहस की थी। अपन ने कहा था- 'योजना आयोग के पास इनकम टेक्स का ब्योरा तो होता है।' वह नहीं माने। पर सोमवार को खुद डायरेक्ट टेक्स का ब्योरा ले आए। इनडायरेक्ट टेक्स के बारे में बोले- 'एफ एम ने नौ मार्च 2007 को संसद में कहा था- इनडायरेक्ट टेक्स का राज्यवार ब्योरा नहीं होता।' खैर मतलब की बात। तिवारी ने 2001 से 2007 तक के आंकड़े परोसे। इसमें से 2005-06 का हिसाब दिया। बताया- 'गुजरात से आए 6187 करोड़। केंद्र ने गुजरात को दिए 3372 करोड़।' अब इन आंकड़ों का जवाब तो मोदी देंगे। पर ये आंकड़े आम आदमी के पल्ले नहीं पड़ने। कौन भरोसा करेगा- गुजरात ने केंद्र को सिर्फ 6187 करोड़ रुपए दिए होंगे। अगर यही डायरेक्ट टेक्स। तो इनडायरेक्ट टेक्स पांच गुना तो होगा ही। पर अपन इस बहस में नहीं पड़ते। मनीष तिवारी के सवाल भी राजनीतिक नूरा-कुश्ती जैसे। जिसमें से निकलना कुछ नहीं। तिल का ताड़ बनाकर कांग्रेस मोदी से नहीं जूझ सकती। जैसा वेंकैया नायडू ने कहा- 'मोदी ने केंद्र के भेदभाव के कारण ही ऐसा कहा।' पर मनीष तिवारी को वेंकैया की बात नहीं जंची। बोले- 'भेदभाव का आरोप भी गलत।' वैसे मनीष तिवारी शायद जानते नहीं। एनडीए के मुख्यमंत्री भेदभाव का लेखा-जोखा केंद्र को दे चुके। यूपीए सरकार आज तक सफाई नहीं दे पाई।
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